
समीर चौगांवकर।
बिहार में बीजेपी सिंगल लार्जेस्ट पार्टी मतलब सबसे बड़ी पार्टी बनने जा रही है। बीजेपी की पीठ पर सवार नीतीश दूसरे नंबर की पार्टी बनने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं। फ़िलहाल तेजस्वी की आरजेडी दूसरे नंबर पर दिख रही है।
नीतीश कुमार दूसरे नंबर पर रहे या तीसरे नंबर पर, सम्मान उन्हें पहले नंबर से ज़्यादा मिलना तय है।
ढाई दशकों में नीतीश कुमार नौ बार बिहार के सीएम बन चुके हैं। सात बार वे बीजेपी के साथ और दो बार तेजस्वी यादव की आरजेडी के साथ।
नीतीश कुमार दसवीं बार मुख्यमंत्री बनने के लिए कमर कसकर तैयार हैं। तूफानी प्रचार करके नीतीश बाबू ने आरजेडी से ज़्यादा बीजेपी को चौकाया है। तेजस्वी और राहुल गांधी के युवा जोश के सामने ज़्यादा जोशीले और फुर्तीले नीतीश नज़र आए।
आख़िर नीतीश की राजनैतिक टिकाऊ शक्ति कहाँ से आती है।ज़ाहिर है नीतीश के दोनों हाथों में लड्डू हैं और वे जिसके साथ चाहे सरकार बना सकते हैं। नीतीश का विकल्प किसी के पास नहीं है क्योंकि नीतीश कुमार के पास सभी विकल्प उपलब्ध हैं।
बिहार की जनता को नीतीश से नाराजगी हो सकती है, लेकिन जैसे ही नीतीश के विकल्प पर विचार होता है, जनता नीतीश पर लौट आती है।
यही नीतीश के आकर्षण का विरोधाभास है। शिकायतें है,पर भरोसा भी उन्ही पर है। इसी कारण बीजेपी ने मुख्यमंत्री के नाम पर पहले नीतीश से दूरी बनाई लेकिन पहले चरण के मतदान से पहले नीतीश पर लौट आई।
20 साल से नीतीश के मकड़ जाल में उलझी हुई बिहार की राजनीति क्या इस बार अपने राजनैतिक इतिहास का नया अध्याय खोलने जा रही है?
नीतीश “कमल का फूल, कभी ना भूल” का नारा लगाएंगे या लालू के लाल के साथ लालटेन थामेंगे?
नीतीश फिनिश होंगे या नीतीश का तीर फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर सटीक लगेगा?
देखने के लिए 14 नवंबर तक इंतिज़ार कीजिए।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं



