भोपाल। भोपाल एम्स में ट्यूमर, हृदय रोग या न्यूरोलॉजिकल डिसआॅर्डर की जांच से लेकर इलाज की सबसे आधुनिक तकनीक की शुरूआत टल गई है। वजह यह कि अब तक 58 करोड़ के इस सेंटर का सिविल वर्क तक पूरा नहीं हो सका है। माना जा रहा है कि यह सुविधा इस साल दिसंबर माह तक शुरू हो सकेगी। हालांकि इसे शुरू करने के लिये पहले छह जून की तारीख तय थी। यानि अब यह करीब छह महीने आगे सरक गई है। हालांकि पीईटी सिटी स्कैन की दूसरी बार और गामा नाइफ की पांचवी बार डेड लाइन आगे बढ़ाई गई है।
हालांकि प्रबंधन अब तक नई डेड लाइन निर्धारित नहीं कर सका है। दरअसल भोपाल के एम्स में बन रहे 58 करोड़ 28 लाख के इस सेंटर के निर्माण की जिम्मेदारी एचएलएल इंफ्रा टेक सर्विसेज लिमिटेड की है। वहीं, कॉन्ट्रैक्ट अग्रवाल जगदीश कंस्ट्रक्शन कंपनी के पास है। अब एम्स प्रबंधन इन सभी जिम्मेदारों के साथ बैठक करेगा। जिससे जल्द नई डेड लाइन तय की जा सकें। यह दोनों प्रोजेक्ट ऐसे हैं जिनकी केंद्र (दिल्ली) से मॉनिटरिंग की जा रही है। बताया जाता है कि ब्रेन कैंसर, ब्रेन ट्यूमर जैसी घातक बीमारियों के इलाज के लिए गामा नाइफ सबसे एडवांस तकनीक है। साल 2019 में इसके लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा गया था। तब से ही इसके शुरू होने का इंतजार हो रहा है।
कोरोना के चलते अटक गया था काम
कोरोना के चलते दो साल काम अटक गया था। देखा जाए तो यह सुविधा आने में 7 साल लग रहे हैं। इसका उपयोग ज्यादातर नसों में मौजूद छोटे ट्यूमर खासकर ब्रेन ट्यूमर के लिए किया जाता है। इसमें रेडिएशन केवल ट्यूमर पर दिया जाता है, जो कैंसर सेल के अंदर मौजूद डीएनए को नष्ट कर देता है। यह 99 फीसदी कारगर है। हालांकि एम्स के निदेशक डॉ. अजय सिंह का कहना है कि गामा नाइफ और पीईटी सिटी स्कैन, दोनों प्रोजेक्ट के लिए जरूरी सिविल वर्क तेजी से किया जा रहा है। जल्द ही यह सुविधा शुरू होगी। यह दोनों बड़े प्रोजेक्ट हैं।
इसलिए फायदेमंद होगा सेंटर
यह सेंटर शुरू हो गया तो मरीजों को अब इलाज के लिए दिल्ली मुंबई का बार-बार सफर नहीं करना होगा।जांच और इलाज की लागत निजी अस्पतालों की तुलना में काफी कम होगी तथा सही और समय पर जांच से बीमारी की गंभीरता कम की जा सकेगी। यह आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को बड़ी राहत होगा।