रीवा। किसी बुजुर्ग के शारीरिक रूप से फिट होकर युवाओं के लिए प्रेरणा बनना निश्चित तौर पर सुखद बात है लेकिन जब कोई बुजुर्ग किसी संस्था में वेतन भोगी के रूप में नौकरी कर रहे हों तो यह चिंतनीय बात बन जाती है। उस पर यदि संबंधित व्यक्ति द्वारा महाविद्यालय में अध्ययन करने वाले कानून के छात्र-छात्राओं को परेशान करे तो फिर विरोध के सुर उठना स्वाभाविक है।
कुछ ऐसा ही मामला शहर के लॉ कॉलेज का सामने आया है जिसमें 60-62 नही बल्कि 84 वर्ष के एक बुजुर्ग को दैनिक वेतन भोगी के रूप में पदस्थ किया गया है जो लॉ कॉलेज की गंभीरता पर एक बड़ा सवालिया निशान लग रहा है। जिस कॉलेज में कानून का पाठ पढ़ाया जा रहा हो, उसी कॉलेज में यदि कानून को ठेंगा दिखाया जाए तो इसे आप क्या कहेंगे। सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार लॉ कॉलेज में रामसजीवन शुक्ला की पीपीओ में जन्मतिथि 15.12.1941 दर्ज है। जिससे साफ जाहिर है कि संबंधित की आयु उस मापदण्ड की परिधि से बाहर है जो मध्यप्रदेश शासन द्वारा कर्मचारियों की सेवा के लिए बनाया गया है।
क्या है सामान्य प्रशासन विभाग मंत्रालय का नियम
किसी भी व्यक्ति के सेवानिवृत्त होने के पश्चात अथवा दैनिक वेतन भोगी के रूप में सेवारत रहने को लेकर मध्यप्रदेश शासन सामान्य प्रशासन विभाग मंत्रालय भोपाल द्वारा 9 नवम्बर 2012 को एक आदेश सभी विभागों के लिए जारी किया गया था। जिसमें दैनिक वेतन पर नियोजित व्यक्तियों से काम लेने की अधिकतम आयु सीमा का निर्धारण किया गया है। निर्देश के मुताबिक उपरोक्त परिप्रेक्ष्य में राज्य शासन द्वारा निर्णय लिया गया है कि तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी तथा इनके समकक्ष पदों पर दैनिक वेतन पर नियोजित व्यक्तियों से काम लेने की अधिकतम आयु सीमा 60 एवं 62 वर्ष निर्धारित की जाए। अर्थात राज्य शासन के समस्त विभागों में तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी तथा इनके समकक्ष पदों पर दैनिक वेतन पर नियोजित व्यक्तियों से अधिकतम 60 एवं 62 वर्ष की आयु पूर्ण होने तक ही कार्य लिया जा सकेगा। उक्त प्रावधान यह आदेश जारी होने के दिनांक से प्रभावशील भी किया गया है। ऐसे में साफ जाहिर है कि कानून का पाठ पढ़ाने वाले लॉ कॉलेज में कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।