सुरा को लेकर साध्वी प्रज्ञा का सियासी सुर

0
156
blur proofreading sheet on table with red pen and laptop

रूमानी तबीयत वालों के बीच शराब को लेकर एक तथ्य बेहद चर्चित है। वह यह कि जिसे इश्क में मायूसी हाथ लगती है, वह दिल के ऊपर वाले गले से लेकर पेट तक दारू का प्रवाह कर ग़म गलत करने का प्रबंध कर सकता है। लेकिन कुछ उदाहरण ऐसे भी हैं, जिनमें सियासी तबीयत बिगड़ने का भी शराब से ताल्लुक तो है, मगर यहां शराब पीने के बजाय शराब पर जहर उगलने वाले इलाज का सहारा लिया जाता है। दिवंगत सुभाष यादव उप मुख्यमंत्री रहते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से खफा हुए, तो उन्होंने प्रदेश में नशाबंदी की मांग की आड़ में अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। हालांकि यह तथ्य भी है कि उसी समय एक चुनाव के सिलसिले में मैंने यादव के गृह जिले खरगौन का दौरा किया था और देखा था कि किस तरह वहां सार्वजनिक स्थानों पर धड़ल्ले से देशी शराब बिकने और उसका सेवन करना बेहद सामान्य प्रक्रिया की तरह बदस्तूर चल रहा था।

शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में उमा भारती की सियासी नैया डगमगाई तो साध्वी ने शराब की नदी में कश्ती चलाने जैसा जतन कर दिखाया। उन्होंने भोपाल में शराब की दुकान पर पत्थर फेंका। राज्य में नशे की बढ़ती प्रवृत्ति को लेकर उमा अपनी ही पार्टी की सरकार पर निशाना साधने से नहीं चूकी थीं। इसी कड़ी में अब नया नाम भाजपा की सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर का सामने आया है। ठाकुर मंगलवार को सीहोर में थीं। वहां उन्होंने अवैध शराब के एक ठिकाने का ताला तोड़ दिया। कुछ मात्रा में शराब नष्ट भी की। फिर सार्वजनिक रूप से आरोप लगाया कि स्थानीय भाजपा विधायक सुदेश राय के संरक्षण में क्षेत्र में अवैध शराब का कारोबार चल रहा है। सीहोर साध्वी के संसदीय क्षेत्र भोपाल का हिस्सा है। तो ऐसा क्या हो गया कि अपने सांसद वाले कार्यकाल में साढ़े चार साल से अधिक समय तक प्रज्ञा को अपनी नाक के ज़रा आगे, भोपाल के सबसे नजदीकी जिले सीहोर में चल रहे इस कारोबार की भनक भी नहीं लगी? इससे भी बड़ा सवाल यह कि बतौर सांसद अपने अंतिम दिन गिन रहीं साध्वी को अचानक ऐसा गुस्सा क्यों आ गया?

क्या यह क्रोध इस बात से जुड़ा हुआ है कि भाजपा ने आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए प्रज्ञा का पत्ता काटकर उनकी जगह आलोक शर्मा को प्रत्याशी बना दिया है? अब ऐन चुनाव के समय भाजपा के ही विधायक को अवैध शराब का कारोबारी बताकर ठाकुर ने भले ही और कुछ हासिल न किया हो, लेकिन खुद को दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंकने वाली भाजपा के लिए उन्होंने असहज स्थिति तो पैदा कर ही दी है। हालांकि मामला ‘चाय के प्याले में तूफान’ की तरह है। ऐसा कहने की दो प्रमुख वजह हैं। अव्वल तो खुद प्रज्ञा ने अपने कई बयानों से मतदाता के बीच स्वयं की गंभीर जनप्रतिनिधि वाली छवि पहले ही खंडित कर दी थी।

बात सिर्फ यह नहीं कि उन्होंने नाथूराम गोड़से की तारीफ की। यह निजी विचार वाला विषय है। बात यह भी कि प्रज्ञा ने ‘मैं नाली साफ़ करने के लिए सांसद नहीं बनी हूं’ जैसी बात कहकर भी अपनी अपरिपक्वता का स्वयं ही परिचय दिया था, जो किसी भी जनप्रतिनिधि के लिए निश्चित ही आत्मघाती कदम है। दूसरी वजह यह भी कि यह उस भोपाल संसदीय क्षेत्र का मामला है, जहां भाजपा की जड़ें इतनी मजबूत हो चुकी हैं कि इस तरह का कोई घटनाक्रम पार्टी के लिए कोई नुकसान वाली स्थिति का सबब नहीं बन सकता है। फिर भी साध्वी के लिए एक लाभ की बात हो सकती है। जब भी वह बतौर सांसद अपनी उपलब्धियों की बात करेंगी, तो प्रमुखता से यह कह सकेंगी कि ‘मैंने शराब की बुराई मिटाने के लिए कानून हाथ में लेने और अपनी ही पार्टी का विरोध करने में भी संकोच नहीं किया।’ यकीनन प्रज्ञा के लिहाज से यह बड़ी उपलब्धि कही जाएगी, क्योंकि सांसद के रूप में अपनी सफलताएं गिनाने के लिए प्रज्ञा के पास महज ऐसे छिट-पुट मुद्दे ही हैं, जिनके आगे सीहोर का घटनाक्रम ‘अंधों में काना राजा’ की हैसियत वाला हो गया है। खैर, सुरा को लेकर ऐसा एक और सियासी सुर भी रोचक बन पड़ा है।