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लोगों के दिलों में ये शिवराज

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सालों पुरानी बात है। किसी कवरेज के सिलसिले में राज्य के एक ठेठ देहाती इलाके में जाना हुआ। वहां रहने वाले एक अधेड़ से बात हुई। वह सिर से लेकर पांव तक देहातियत में लिपटा था। उसका सामान्य ज्ञान परखने की समयकाटू गरज से मैंने उससे देश के कुछ प्रमुख चेहरों के बारे में पूछा। वह किसी को भी नहीं जानता था। हां, एक नाम सुनकर उसकी अज्ञानता में समझदारी के कुछ अंकुर फूटने लगे। वह उस शख्सियत को नाम से पहचान गया। मैंने उसे कुरेदा तो पता चला कि वो उस विभूति के पद या कद किसी से भी वाकिफ नहीं था। फिर भी उसकी सभा सुनने अपने गांव से कई मील दूर पैदल चला गया था। क्योंकि उसे बताया गया था कि उस शख्सियत की नाक प्लास्टिक की बनी हुई है। वो नितांत गंवई व्यक्तित्व किसी वीआईपी के नाम या काम नहीं, बल्कि केवल उसकी नाक से प्रभावित था।

सूचना और जानकारी की सहज और व्यापक उपलब्धता के लिहाज से मौजूदा वक्त बहुत एडवांस है। लेकिन एक बात मैं पूरे यकीन के साथ कह सकता हूं। आप राज्य के किसी निपट देहाती क्षेत्र में चले जाएं। वहां जागरूकता/जानकारी के लिहाज से पूरी तरह बंजर किसी शख्स से भी शिवराज सिंह चौहान के बारे में पूछ लीजिए। वह तुरंत उन्हें पहचान जाएगा। चाहे वो गांव का कोई समृद्ध किसान हो या फिर गाय भैंस चराने वाला। ऐसे मुख्यमंत्री के रूप में, जिसकी कभी कोई एक खास बात उसके दिमाग में घर कर गई हो। कोई बताएगा कि मुख्यमंत्री होने के बावजूद शिवराज उसके सामने भीड़ के बीच जमीन पर बैठकर लोगों से बातें कर रहे थे, तो कोई इस बात का जिक्र करेगा कि शिवराज ठेठ गांव की जुबान में उससे रूबरू हुए। आपको बहुत बड़ी संख्या में लोगों की वह याद मिल सकती है, जिसने उन्हें इस बात के लिए हैरत में डाल दिया होगा कि आजादी के बाद से पहली बार शिवराज के रूप में कोई मुख्यमंत्री उसके गांव पहुंचा।

ऐसा सब इसलिए होगा कि शिवराज ने बीते तीन और मौजूदा रनिंग चौथे कार्यकाल तक के बीच मुख्यमंत्री और आम आदमी के बीच की सीमा रेखा का बखूबी और बहुत ही सकारात्मक रूप में अतिक्रमण कर लिया है। आखिर कोई ऐसे ही तो जगत मामा नहीं बन जाता। फिर जब भी मामला आवाम के बीच होने का हो, तब तो शिवराज के भीतर किसी सीएम वाला प्रोटोकॉल ढूंढने से भी नजर नहीं आ पाता है। सीधी में वह बस हादसे के पीड़ितों के बीच चले गए। इससे पहले पेटलावद के बारूदी धमाकों और मंदसौर के गोली चालन के बाद भी शिवराज बेखटके प्रभावितों की गम और गुस्से से भरी भीड़ के बीच तक चले गए थे। राज्य के इतिहास में ऐसा करने का साहस और कोई भी मुख्यमंत्री आज तक नहीं जुटा सका है। किसी भी बड़ी घटना के बाद प्रशासन के चतुरसुजान अफसर किसी मुख्यमंत्री को कानून और व्यवस्था का डर दिखाकर मौके पर जाने से रोक लेते हैं। निश्चित ही सीधी से लेकर पेटलावद और मंदसौर मामले में शिवराज को भी जनता के गुस्से का भय दिखाया गया होगा, लेकिन वह रुके नहीं।

इसे अतिश्योक्ति कहने से पहले राज्य के इतिहास में झांक लें। शिवराज से पहले कोई भी मुख्यमंत्री राज्य की गली-गली तक इस तरह नहीं पहुंचा है। बाढ का हवाई सर्वेक्षण करते तो कई मुख्यमंत्री देखे गए हैं। लेकिन जनता के गम, तकलीफ और गुस्से के बीच ऐसे हर मौके पर आम लोगों के बीच एक न एक ऐसा बहुत आम व्यवहार शिवराज ने किया है कि लोग अभिभूत होकर रह गए हैं। उत्तरप्रदेश के कई जाट परिवार आज अपनी परंपरागत सोच से कोसों आगे निकल चुके हैं, लेकिन उनसे चौधरी चरण सिंह का नाम भर ले लीजिये। श्रद्धा और स्मृतियों से उनकी आंखें चमक उठती हैं। कई तो यही याद कर के निहाल हो जाते हैं कि सिंह ने कभी उनके ठिकाने पर एक कप चाय पी थी। ये याद किसी पूर्व प्रधानमंत्री से ज्यादा एक बहुत लोकप्रिय चेहरे के लिए है। शिवराज ने भी ऐसा ही मुकाम लोगों के दिलों में बना लिया है। अब तो वे अपने हर दौरे पर किसी आम आदमी के घर खाना खाने भी जा रहे हैं। शिवराज की यही वो विशेषता है, जो आने वाले नेताओं के लिए, चाहे वे भाजपा के हों या कांग्रेस के, सबसे बड़ी चुनौती होगी। आखिर चौदह साल से एक शख्स प्रदेश की जनता को इसका आदी बना चुका है। शिवराज की यह खासियत उनकी कई कमियों को भूला देती है।

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