निहितार्थ: देश की अदालतें पंथ निहार-निहार कर थक गयी हैं। उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh) के पुलिस थानों में रोजनामचा वाले कागज़ पूरी बेचैनी से फड़फड़ा रहे हैं। कलम को ज़ंग लगने का डर सता रहा है। लेकिन ऐसे किसी भी ठिकाने या पड़ाव पर अब तक संजय सिंह (Sanjay Singh) या पवन पांडेय (Pavan Pandey) के श्रीचरण नहीं पहुँच सके हैं। आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) के सांसद संजय सिंह और समाजवादी पार्टी (Samajvadi Party) के पूर्व विधायक पांडेय ने राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट (Ram Janmbhumi Teerth Kshetr Trust) पर मंदिर के लिए जमीन खरीदी में करोड़ों के घपले का आरोप लगाया है।
चार दिन होने आ रहे हैं, जब ये आरोप लगाए गये। लेकिन न सिंह और न ही पांडेय, अब तक इस संबंध में पुलिस या अदालत में गए हैं। वह कांग्रेस भी ऐसा नहीं कर रही है, जिसने एक बार फिर उधार का आरोप लेकर अपनी राजनीतिक खुराक बनाये रखने का प्रयास किया है। जो लोग मीडिया या सोशल मीडिया में इन आरोपों की पुरजोर तरीके से पैरवी कर रहे हैं, वे भी बस शोर-गुल मचाने तक ही सिमट कर रह गए हैं। मामला बहुत गंभीर है। राम मंदिर निर्माण के करोड़ों प्रबल समर्थकों की आस्था से जुड़ा हुआ है। यदि पवन पांडेय या संजय सिंह के पास इस बारे में कोई सबूत हैं तो भला वे क्यों अदालत या पुलिस की कार्रवाई के लिए पहल नहीं कर रहे हैं? कांग्रेस के लिए तो यह सुनहरा मौक़ा है।इस दल ने साफ़ कहा था कि राम का कोई अस्तित्व ही नहीं था।तो जिस राम का वजूद भी आपको स्वीकार नहीं है, उसी राम के भक्तों पर इस तोहमत को कानूनी रूप देने में वह दल क्यों हिचक रहा है? अरविन्द केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को तो चाहिए था कि अपने सांसद से मामले की फाइल लेकर अयोध्या की तरफ कूच कर देते, किन्तु न जाने क्यों वे भी अपने पांवों में मेहंदी लगी होने जैसा आचरण कर रहे हैं। हो तो यह भी सकता था कि दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) इस घोटाले की जांच की मांग के लिए पाकिस्तान (Pakistan) से किसी आयोग के गठन की अपील कर देते, मगर वह भी ट्विटर (Twitter) पर उछल-कूद मचाकर ही शांत हो गए।
राम मंदिर ट्रस्ट तो सक्रिय है। उसने संजय सिंह पर मानहानि का मुकदमा करने की बात कह दी है।उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने जमीन की डील से जुड़े सभी ब्यौरे बुलवा लिए हैं। उम्मीद की जाना चाहिए कि आम आदमी पार्टी सहित कांग्रेस (Congress) और अन्य भाजपा-विरोधी दल भी अब पलटवार के लिए पूरी आक्रामकता के साथ सामने दिखेंगे। हालाँकि न तो ऐसा होता दिख रहा है और न ही उसकी कोई ख़ास गुंजाइश ही है। लेकिन जो गुंजाइश है, उसमें गोता लगाने से कोई नहीं चूका। और यही इस खेल का सबसे गौर करने वाला पहलू है। सिंह और पांडेय ने जो आरोप लगाए, उनमें राम मंदिर निर्माण, उसके लिए हुई कोशिशों और मंदिर के समर्थकों की आस्था, इन सभी को एक झटके में लपेटे में ले लिया गया। मंदिर की जमीन की कीमत चंद पलों में करोड़ों रुपये अधिक हुई हो या न हुई हो, लेकिन इस आरोप को एक एजेंडे के तहत,एक ही झटके में हिन्दू आस्था पर तोहमत जड़ने का हथियार बना दिया गया। गौर से देखिये इन आरोप लगाने वालों को। ये वही हैं, जिन्होंने देश में हिंदुत्व की अवधारणा का हमेशा से विरोध किया है। इनमें वो हिन्दू भी शामिल हैं, जिन्हें इस समुदाय में अपनी पैदाइश पर या तो शर्म है या शायद शक । इस मामले को भयानक शोर के साथ तूल दिया जा रहा है। इतना कोलाहल कि उसके बीच मंदिर ट्रस्ट द्वारा पेश किये गए तथ्यों को सुनना भी मुश्किल हो गया है। अफवाहों की इतनी धूल उड़ाई जा रही है कि सच नजर ही नहीं आ पा रहा है। ये ‘तथ्य’ या ‘सच’ लिखने का आशय यह नहीं कि मैं ट्रस्ट को क्लीन चिट दे रहा हूँ, ये शब्द इसलिए इस्तेमाल किये गए कि इन आरोपों को वास्तविकता के नजदीक दिखाने वाला भी कोई सबूत अब तक पेश नहीं किया गया है। जूही चावला को लगी 20 लाख की चपत सभी को याद है। शायद यही वजह है कि जमीन को लेकर हमलावर हुए लोग कानून-व्यवस्था वाले ठिकानों की तरफ जाने का साहस नहीं दिखा पा रहे हैं।
इन विवादों का सच अभी किसी को पता नहीं है। लेकिन एक बहुत बड़ा बदलाव आप देख सकते हैं। सोशल मीडिया पर एक गुस्सा और उससे जुड़ा जूनून साफ़ दिखने लगा है। उन लोगों के रूप में जो लिख रहे हैं कि मंदिर के लिए उन्होंने चन्दा दिया है और इस मामले में यदि कोई गड़बड़ है, तब भी उन्हें इसकी कोई शिकायत नहीं है। वे खुलकर ऐसी बाते लिख रहे हैं। इस तरह की पोस्ट को शेयर और फॉरवर्ड कर रहे हैं। रैंडमली देख लीजिये ऐसे दस नामों को, जिन्हें आप पहले से पहचानते हैं। आप पाएंगे कि भले ही उनका हिंदुत्व (Hinduism) के लिए बहुत प्रबल आग्रह न रहा हो, लेकिन अब इस मसले पर ट्रस्ट के बचाव में वे प्रचंड रूप से बात रख रहे हैं। सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफॉर्म्स पर ट्रस्ट को घेरने वालों का वे विरोध कर रहे हैं। उनमें से अधिकाँश सौम्य हैं, लेकिन आज वे ‘रामजनों का पैसा, हरामजनों को क्यों हो तकलीफ’ जैसे कटु वाक्यों को लाइक कर रहे हैं। रीट्वीट कर रहे हैं। इस बदलाव को समझना होगा।
खासतौर पर इस मसले को लेकर राजनीति करने वालों को। उनको भी, जो इस मामले को लेकर सामाजिक समरसता वाले फैक्टर की धज्जियां उड़ाने के अभियान में एक बार फिर सक्रिय हैं। इन सभी को यह अहसास होना चाहिए कि हिन्दू अपनी आस्था से जुड़े विषयों पर इस अनाचार का अब प्रतिरोध करने पर उतर आया है। उसकी सहनशक्ति कम होती जा रही है। और इसका सीधा असर यह होता दिख रहा है कि एक बार फिर भाजपा के पक्ष में हिन्दुओं का मानसिक ध्रुवीकरण तेज हो गया है। बहुसंख्यकों के इस धैर्य के पूर्व में टूटने का ही असर रहा कि फिर कभी कांग्रेस केंद्र में अकेली अपने दम पर सरकार नहीं बना सकी। यह इस धैर्य के क्षरण की ही परिणीति थी कि लगातार दो आम चुनावों में भाजपा को इतनी सीटें मिल गयीं कि वह केवल अपने ही दल की सरकार बना सकती थी। मंदिर को लेकर जिस तरह से हिंदुत्व को आहत करने का खेल शुरू किया गया है, उसने वह प्रतिक्रियावाद सामने ला दिया है, जो देश की राजनीति को निर्णायक तरीके से प्रभावित करेगा। तुष्टिकरण की राजनीति के खिलाफ उठा यह समूह एजेण्डाबद्ध लोगों के लिए ‘असहिष्णु’ (Intolerance) हो सकता है, लेकिन सच यह है कि अब सहिष्णुता (Tolerance) और कायरता के बीच अंतर को ये लोग समझ गए हैं। छद्म सेक्यूलर्स (Pseudo Seculars) के खिलाफ यह फिलहाल असहयोग आंदोलन जैसा विरोध है। यह आंदोलन भारत में ही हुआ था और इसी आंदोलन के दौर में, इसी देश में चौरी-चौरा कांड (Chauri-chaura case) भी हुआ है, हिंदुत्व पर प्रहार करने वाले इस तथ्य को समझ लें तो शायद उनका ही कुछ भला हो सके।