एक औरत को उसके पति की हत्या के जुर्म में उम्रकैद की सजा सुनायी गई। सजा का ऐलान होते ही उसके समर्थक एकजुट हो गए। उन्होंने दलील दी कि एक बेचारी विधवा को इतनी बड़ी सजा दिया जाना उचित नहीं है। तो कुछ ऐसा ही दिशा रवि के मामले में हो रहा है। टूलकिट मामले की आरोपी दिशा रवि के सच-झूठ का फैसला तो अदालत कर देगी, लेकिन उसे लेकर जिस किस्म का वातावरण बनाया जा रहा है, वह शुरू में लिखे गए लतीफे जैसा ही है। समर्थकों की दलील है कि दिशा केवल 21 साल की है, इसलिए उसके खिलाफ इतनी कठोर कार्यवाही गलत है।
तो फिर उस समय भी ऐसी ही बात की जाना चाहिए थी, जब निर्भया काण्ड के बाद किशोर अपराधी पर मुकदमा चलाने का आधार उसकी उम्र की बजाय उसके कृत्य को माना गया था। इस मामले में कांग्रेस का रवैया तो और भी विरोधाभासों से भरा हुआ है। भाई लोग पंजा हिला-हिलाकर अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई दे रहे हैं। जिस दल का नेतृत्व अपने कुछ नेताओं के पार्टी सुधार को लेकर लिखे गए एक आलोचनात्मक चिट्ठी को नहीं पचा पाया, उन्हें टूलकिट जैसे संगीन मामले में भी फ्रीडम आफ एक्सप्रेशन की गुंजाइश दिखाई दे रही है। याद करने वाले याद कर सकते हैं कि ‘किस्सा कुर्सी का’ से लेकर व्हाया ‘आंधी’ होते हुए ‘मैं नाथूराम गोडसे बोल रहा हूँ’ जैसे सफर को, नहीं भी याद आए तब भी ढेरों प्रसंगों (जिनमें से अधिकतर इस पार्टी के लिए हंसने का कारण बन चुके हैं) के जरिये ये याद ताजा की ही जा सकती है कि कांग्रेस में अभिव्यक्ति की आजादी सहित और भी कई मामलों में अलग-अलग मापदंड अपनाये जाते हैं। ऐसा ही एक बार फिर टूलकिट मामले में भी होता दिख रहा है।
अब यदि आप ग्रेटा थंबर्ग के उपासक हों तो फिर आपसे कुतर्क की ही उम्मीद की जा सकती है। क्योंकि थंबर्ग का भला भारतीय किसानों से क्या लेना-देना हो सकता है? मगर जब मामला एक साजिश भरी सोच के विस्तार के कुचक्रों तक फेला हो तो फिर इसकी परिणिती कहीं अरुंधति राय तो कहीं रिहाना,मियां खलीफा और दिशा रवि के रूप में सामने आ जाती है।
टूलकिट मामला सामान्य नहीं है। इस सिलसिले में हुई बैठक को लेकर जो तथ्य सामने आये हैं, यदि उन पर यकीन करें तो लगता है कि यह देश के खिलाफ बहुत बड़ी साजिश का हिस्सा था। वो मंसूबे, जो पाकिस्तान सहित हरेक भारत विरोधी के होते हैं और उन्हें इसी देश की सरजमीं पर बैठकर अंजाम देने की साजिश रची गई। किसी आरोपी को जमानत मिल जाने से उस पर लगे आरोप गलत साबित नहीं हो जाते हैं। इसलिए जो लोग इस काण्ड में शामिल आरोपी की जमानत को लेकर पूरे सिस्टम पर लांछन लगाने का काम कर रहे हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि अभी अदालत का फैसला बाकी है।
भारत के खिलाफ हिंसक रूप से सक्रिय ताकतों के आपसी संवाद कोड वर्ड के जरिये होते हैं। वे बम सहित अन्य हथियारों के अन्य स्वरूपों के लिए फल सहित गुलाब और गेंदे जैसे शब्द प्रयुक्त करते हैं। आतंकी साजिश को निकाह और दुल्हन की रुखसती जैसे शब्द का जामा पहनाते हैं। ऐसा इसलिए होता है, ताकि यदि ये सन्देश लीक हो जाए, तब भी उसका खुलासा न हो सके। तो फिर ऐसे में यह कैसे मान लिया जाए कि दिशा रवि टूलकिट को अशांति और उपद्रव फैलाने के तमाम उपायों के लिए उन्हीं शब्दों के साथ आगे बढ़ा देगी? इसलिए जो लोग टूलकिट को बेहद मासूम गाइडलाइन के तौर पर बता रहे हैं, उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि मामला कोड वर्ड वाला होने की पूरी-पूरी गुंजाइश मौजूद है। और भारतीय अदालतों पर अविश्वास कैसे कर सकते हैं, आखिर वे दिशा रवि को भी तो न्याय दे ही रही है। तो फिलहाल उसे संदेही मान कर अदालत के अंतिम फैसले का इंतजार तो कर ही लेना चाहिए।