निहितार्थ

अब कंगना की प्रतिक्रिया का इंतजार..

तरुण चटर्जी अब जीवित नहीं हैं। छत्तीसगढ़ भी अब मध्यप्रदेश का हिस्सा नहीं है। अविभाजित मध्यप्रदेश में तरूण चटर्जी कांग्रेस से रायपुर के महापौर थे। खेर, दलीय निष्ठाओं में बदलाव की गरज से एक दिग्गज नेता को चटर्जी ने सनाके की स्थिति में ला दिया। नेताजी रायपुर पहुंचे। मीडिया ने उनसे चटर्जी के ‘बदले-बदले से मेरे सरकार नजर आते हैं’ वाले रुख पर सवाल पूछ लिया। नेताजी भीतर से भरे हुए जरूर थे, लेकिन उनके अंदर राजनीतिक चातुर्य भी कूट-कूटकर भरा हुआ था। चटर्जी से जुड़े तमाम सवालों पर उन्होंने एक ही ब्रह्मास्त्र चला, ‘कौन तरुण चटर्जी?’ तरुण के अस्तित्व को गुमनामी की दीवार में चुनवाकर नेताजी रवाना हो गए।

बगैर यह जाने कि अभी सुरंग का दूसरा छोर सामने आना बाकी है। चटर्जी के नए ठिकाने वाली जगह के एक आला नेता रायपुर पहुंचे। जनसभा में तरुण से बोले की उन्हें ‘कौन तरुण चटर्जी?’ वाली बात का बुरा नहीं मानना चाहिए। क्योंकि जिसने ऐसा कहा है, उसका भूलने के मामले में कोई सानी नहीं है। वह तो किसी दिन अपनी पत्नी का नाम सुनकर भी पूछ लेगा कि ये कौन है? तो क्रिया की प्रतिक्रिया वाले भौतिकी शास्त्र के सिद्धांत का राजनीति में चलन बहुत ही लोकप्रिय है। अब एक क्रिया हुई है। अब भोपाल में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से अभिनेत्री कंगना रनौत को लेकर सवाल पूछा गया। सिंह बोले, ‘कौन कंगना रनौत?’ अब जाहिर है कि देश के स्तर पर कांग्रेस का रह-रहकर पानी उतार देने वाली कंगना के लिए दिग्विजय भी भीतर से भरे हुए ही होंगे। लेकिन उनके अंदर भी सियासी चतुराई समायी हुई है। एक महिला को लेकर अपने गुस्से का इजहार कर देते तो मुमकिन है कि बाल की खाल वाली गैंग उलटा दिग्विजय पर ही पिल पड़ती। वैसे भी पूर्व मुख्यमंत्री ‘टंच माल’ के बाद से छाछ भी फूंक-फूंककर ही पी रहे हैं। इसलिए उन्होंने एक वाक्य से कंगना को चित करने की कोशिश की। लेकिन अखाड़ों के बाहर भी मानसिक दांव-पेंच लगते ही हैं।

तो यही दिमाग आज बरसों पीछे चला गया। दीपा मेहता भले ही उम्दा किस्म की फिल्मकार न हों, लेकिन चर्चा बटोरना उन्हें खूब आता है। यह 1995 के आसपास की बात है। दीपा अपनी फिल्म ‘फायर’ की बनारस में शूटिंग कर रही थीं। इसमें हिन्दुओं की दो आराध्य विभूतियों के नाम वाले किरदारों को समलैंगिक बताया गया था। इसके चलते फिल्म का वहां जमकर विरोध हुआ। दिग्विजय से पत्रकारों ने इस पर सवाल किये। तत्कालीन मुख्यमंत्री ने एक से अधिक बार कहा कि दीपा इसी पटकथा के साथ फिल्म की मध्यप्रदेश आकर शूटिंग करें। प्रदेश की सरकार उन्हें पूरा संरक्षण/ सुरक्षा प्रदान करेगी। मजे की बात यह कि उस समय तक दीपा ने केवल तीन फिल्में (जो अंग्रेजी में थीं और जिनका भारत में ना के बराबर ही जिक्र हुआ था) बनायी थीं, लेकिन दिग्विजय उनके प्रति ऐसे सजग दिखे, गोया कि दीपा से उनकी बतौर फिल्मकार लंबी वाकफियत हो। इधर बेचारी कंगना हैं। वो आजकल अपनी फिल्म ‘धाकड़’ की मध्यप्रदेश में ही शूटिंग कर रही हैं। जिस समय दिग्विजय उन्हें पहचान नहीं पा रहे हैं, तब तक कंगना फिल्मों के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तीस अवार्ड हासिल कर चुकी हैं। इसके बावजूद दिग्विजय का इस अभिनेत्री को न पहचानना कम चौंकाता है।

ज्यादा चौंकाता तो यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री उस शख्सियत से अनभिज्ञ होने की बात कर रहे हैं, जो लंबे समय से उनकी पार्टी को पानी पी-पीकर कोसती आ रही है। जिससे हलाकान होकर प्रदेश कांग्रेस के लोग उसके खिलाफ पुलिस में शिकायत भी दर्ज करवा चुके हैं। तो क्या यह मान लें कि दिग्विजय ने एक शख्सियत द्वारा अपनी पार्टी की लगातार की जा रही छीछालेदर को भी नजरंदाज कर दिया है? कंगना को भी अभिव्यक्ति की वैसी ही आजादी है, जैसी दिग्विजय उस समय दीपा मेहता के लिए देख रहे थे। कंगना उस आजादी का उसी मंच पर बखूबी इस्तेमाल भी कर रही हैं, जहां दिग्विजय सिंह भी खासे सक्रिय हैं। लेकिन अब वे गांधीजी के वो बन्दर बन गए हैं, जो आंखों के सामने खिलती धूप को भी न देखने का दावा कर रहा है। दिग्विजय यदि रनौत के लिए वाकफियत जैसी बात कह देते, तब भी अदाकारा के जीवन में कोई क्रांतिकारी बदलाव नहीं आ जाता। न ही ‘कौन कंगना’ से इस तारिका की लोकप्रियता/स्वीकार्यता पर कोई बुरा असर होना है।

हां,कांग्रेस के वह लोग जरूर इस घटनाक्रम से ठगे हुए महसूस कर रहे होंगे, जो यह मानकर चल रहे थे कि अपनी पार्टी के सम्मान की खातिर इस अभिनेत्री से उलझने की उनकी कोशिशों को दिग्विजय जैसे दिग्गज नेता का एक्टिव सहयोग जरूर मिलेगा। दिग्विजय की क्रिया की भी प्रतिक्रिया हो गयी है और अब यह सिलसिला थमने वाला नहीं है, यह तय है। क्योंकि उनका सामना उस बिंदास बाला से है, जो एक हुकूमत से टकराने से नहीं डरी, फिर भला अनिश्चित अवधि के लिए विपक्ष की श्रेणी में जा बैठे किसी दल के उम्रदराज नेता से वह भला क्यों खौफ खाने लगी? कंगना बोलेंगी और वह प्रतिक्रिया सुनना यकीनन रोचक होगा। फिर जब मामला बोलने की आजादी को लेकर सर्वथा परस्पर विरोधी रवैये के एक्सपोज हो जाने का हो तो फिर प्रतिक्रिया का बहुत तीखा होना भी तय ही मानिए।

प्रकाश भटनागर

मध्यप्रदेश की पत्रकारिता में प्रकाश भटनागर का नाम खासा जाना पहचाना है। करीब तीन दशक प्रिंट मीडिया में गुजारने के बाद इस समय वे मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश में प्रसारित अनादि टीवी में एडिटर इन चीफ के तौर पर काम कर रहे हैं। इससे पहले वे दैनिक देशबंधु, रायपुर, भोपाल, दैनिक भास्कर भोपाल, दैनिक जागरण, भोपाल सहित कई अन्य अखबारों में काम कर चुके हैं। एलएनसीटी समूह के अखबार एलएन स्टार में भी संपादक के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। प्रकाश भटनागर को उनकी तल्ख राजनीतिक टिप्पणियों के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है।

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