धर्म

इन चीजों के बिना अधूरी है वट सावित्री की पूजा, जानें पूजन विधि

हर साल ज्येष्ठ मास (Jyeshtha month) के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि (Krishna Amavasya Tithi) के दिन सुहागन महिलाओं द्वारा वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat ) किया जाता है। हिंदू धर्म में वाट सावित्री व्रत का ख़ास महत्त्व है। इस दिनसुहागन महिलाएं (Suhagan women) पति की दीर्घायु (Long life of husband)और उनके उज्जवल भविष्य व सुख-समृद्धि तथा ऐश्वर्य की कामना के लिए पूरा दिन निर्जल-निराहार रहकर वट वृक्ष और सवित्री-सत्यवान (Vat tree And Savitri-Satyavan) की पूजा (Puja) करती हैं। कई स्थानों पर यह व्रत ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से शुरू होकर अमावस्या तिथि तक यह व्रत किया जाता है। इस बार वट सावित्री की पूजा 10 जून को की जाएगी।  ऐसे में आप अपनी पूजा सामग्री में इन खास चीजों को शामिल करना बिल्कुल भी ना भूलें।  क्योंकि इसके बिना आपकी पूजा अधूरी रहेगी।  जानिए वट सावित्री पूजा के लिए वो खास सामग्री क्या क्या हैं।

ऐसे करें वट सावित्री की पूजा
सबसे पहले सुबह स्नान करके पूरे सोलह श्रृंगाह कर दुल्हन की तरह सजकर तैयार हो जाएं। इसके बाद एक थाली में सभी पूजा सामग्री को सजा लें। अब पूजा की थाली लेकर और बांस का एक हाथ का पंखा लेकर बरगद पेड़ के नीचे जाएं.वट सावित्री की पूजा बरगद के पेड़ के नीचे की जाती है। पेड़ की जड़ में जल , कुमकुम, प्रसाद चढाकर धुप, दीपक जलाएं और कच्चे धागे से या मोली को बरगद पर घुमाते हुए परिक्रमा करें। सभी महिलाएं मिलतक वट सावित्री की कथा साथ सुनें। अब पति की लंबी आयु की और स्वास्थ्य के लिए कामना करें। बता दें कि इस दिन वट वृक्ष के साथ ही सत्यवान और यमराज की भी पूजा की जाती है। पंखे से वट वृक्ष को हवा करें और सावित्री माँ से आशीर्वाद लें ताकि आपका पति दीर्घायु हो। इसके बाद बरगद के पेड़ के चारो ओर कच्चे धागे से या मोली को 7 बार बांधे और प्रार्थना करें। घर आकर जल से अपने पति के पैर धोएं और आशीर्वाद लें। उसके बाद अपना व्रत खोल सकते है।

वट सावित्री पूजा विधि (Vat Savitri Puja Method)

करवा चौथ की तरह ही इस व्रत को सुहाग की लंबी आयु केी कामना से रखा जाता है। इस दिन वट वृक्ष ,यानि बरगद का पूजन किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, वट सावित्री व्रत में पूजन सामग्री विशेष महत्व रखती है। इस व्रत में कुछ नियमों व कुछ ऐसी चीजें बताई गई हैं जिनका पूजा में इस्तेमाल करना बहुत ही शुभ होता है।

वट वृक्ष (Banyan Tree)
इस व्रत में वट वृक्ष का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि, वट वृक्ष के नीचे ही देवी सावित्री ने अपने पति व्रत के प्रभाव से मृत पड़े सत्यवान को पुन: जीवित कर दिया था। अगर आप घर से दूर वट वृक्ष की पूजा के लिए नहीं जा सकती तो इसके लिए वट वृक्ष की एक डाल अपने घर लाकर इस विधिवत पूजास्थल पर रखकर इसकी पूजा कर सकती हैं।

भीगे हुए चने (soaked chickpeas)
इस व्रत में चने का भी खास महत्व है। काले चने को एक रात पूर्व भिगों दिया जाता है और अगले दिन पूजा में प्रसाद के रूप में इन्ही चनों का प्रयोग किया जाता है। मान्यता है कि यमराज (Yamraj) ने चने के रुप में ही उसके पति सत्यवान के प्राण लौटाए थे। इसीलिए इस व्रत में चने को प्रसाद के रूप में ग्रहण करने की परंपरा काफी प्रचलित है।

कच्चा सूत (raw yarn)
वट सावित्री व्रत में पूजा के समय बरगद के पेड़ पर कच्चा सूत लपेटने की भी परंपरा है। शास्त्रों के अनुसार, सुहागन महिला इस दिन बरगद के पेड़ के चारों ओर कच्चा सूत या मौली को कम से कम सात बार अवश्य बांधना चाहिए। मान्यता है कि, सावित्री ने भी कच्चे धागे से चट वृक्ष को बांधकर ही सत्यवान के शरीर को सुरक्षित रखने की प्रार्थना की थी।

सिन्दूर (vermilion)
सिन्दूर को सुहाग का प्रतीक माना जाता है और वट सावित्री व्रत सुहाग की दीर्घायु के लिए ही किया जाता है। इसीलिए इस व्रत में सोलह श्रृंगार का भी खास महत्व है। पूजा में सिन्दूर को वट वृक्ष पर लगाया जाता है ताकि सुहागन महिलाओं को पति समेत लंबी आयु का वरदान प्राप्त हो सके।

बांस का पंखा (bamboo fan)
वट सावित्री व्रत में अन्य चीजों की तरह ही बांस के पंखे का खास महत्व होता है। इस दिन महिलाएं पूजा के समय बरगद के वृक्ष को बांस के पंखे से हवा करती हैं और फिर घर आकर उसी पंखे से पति को हवा करती हैं। शास्त्रों के अनुसार, बरगद के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवों का वास माना जाता है। इसीलिए इस दिन बरगद वृक्ष की पूजा से महिलाओं को शुभ फल प्राप्त होते हैं।

 

 

 

Web Khabar

वेब खबर

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button