जहां मर्जी न होने के बाद भी सेक्स के लिए इंकार नहीं कर सकतीं औरतें

मैथिली शरण गुप्त (Maithilee sharan Gupt)) को भला कौन नहीं जानता। अमर कवि. विचारक और संवेदनाओं के सशक्त प्रतिनिधि के तौर पर गुप्त हमेशा याद रखे जाएंगे। इन्हीं गुप्त की एक रचना, ‘अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में पानी’ बहुत चर्चित रही है। हालांकि राष्ट्रकवि गुप्त ने ही ‘उर में था देशानुराग और आज न अबला नाम रहा था’ भी लिखा। उनकी इन पंक्तियों को समाज में नारी के लिए बदलते हालात के रूप में लिया गया, किन्तु क्या वाकई आधी आबादी की पूरी दशा में कोई उल्लेखनीय सुधार हुआ है? कम से कम एक ताज़ा रिपोर्ट को पढ़कर तो ऐसा नहीं लगता है।
जी हाँ, संयु्क्त राष्ट्र (UN) की एक रिपोर्ट में बुधवार को कहा गया कि 57 विकासशील देशों में आधे से कम महिलाओं को अपने साथियों के साथ यौन सबंध बनाने के लिये “नहीं” कहने के अधिकार से वंचित रखा गया है । उन्हें गर्भ निरोधक (Contraceptive) का इस्तेमाल करने अथवा चिकित्सीय सलाह लेने के बारे में भी फैसला करने का अधिकार नहीं है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की इस रिपोर्ट में कहा गया कि यह आंकड़े दुनिया के केवल एक चौथाई देशों के हैं, केवल आधे से अधिक अफ्रीका (Africa) के।
भविष्य के बारे में चुनाव करने की शक्ति नहीं
लेकिन ये परिणाम,“ लाखों महिलाओं और लड़कियों की शारीरिक स्वायत्तता की स्थिति की चिंताजनक तस्वीर सामने रखती है” जिन्हें बिना डर या हिंसा के अपनी देह और अपने भविष्य के बारे में चुनाव करने की शक्ति नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया कि 57 देशों में महज 55 प्रतिशत महिलाएं एवं लड़कियां यह तय कर पाती हैं कि उन्हें यौन संबंध बनाना है या नहीं, गर्भनिरोध का इस्तेमाल करना है या नहीं और यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं संबंधी चिकित्सीय सलाह कब लेनी है।
कोष की कार्यकारी निदेशक, डॉ नतालिया कानेम (Natalia Kalem) ने कहा, ‘‘शारीरिक स्वायत्तता न देना महिलाओं एवं लड़कियों के मौलिक मानवीय अधिकारों का उल्लंघन है जो असामनता को बढ़ावा देने के साथ ही लैंगिक भेदभाव के कारण होने वाली हिंसा को जारी रखता है।” उन्होंने कहा, ‘‘हमारे शरीर पर अपना ही हक न होने के इस तथ्य से हम सभी को गुस्सा आना चाहिए।”