धर्म

पितरों के लिए क्यों है महत्वपूर्ण पिठोरी अमावस्या,जानें तिथि, शुभ मुहूर्त

हिन्दी पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि को पिठोरी अमावस्या या कुशग्रहणी अमावस्या कहा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार कुशोत्पाटिनी का अर्थ है कुशा को उखाड़ना अथवा उसका संग्रहण करना होता है। भाद्रपद अमावस्या पर पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए किए जाने वाले धार्मिक कार्यों में कुश का प्रयोग होता है, इस वजह से इसे कुशग्रहणी अमावस्या कहते हैं। इस साल पिठौरी अमावस्या 7 सितंबर 2021, सोमवार को मनाई जाएगी। इस अमावस्या पर पितृ तर्पण आदि धार्मिक कार्यों में कुश का प्रयोग किया जाता है, इसलिए इसे कुशाग्रहणी अमावस्या भी कहा जाता है। जिन लोगों को पितृ दोष लगता है। उनके घर में कोई मांगलिक कार्य नहीं हो पाता है। संतान के विकास में बाधा आती है। साथ ही घर में क्लेश की स्थिति बनी रहती है। संतान उत्पत्ति में रुकावट होती है। कार्यक्षेत्र में रुकावटें आने लगती हैं। व्यापार, नौकरी आदि में उन्नति नहीं हो पाती है। इन सभी समस्याओं से निजात पाने के लिए अमावस्या का दिन उत्तम माना जाता है। आइए जानते हैं आमवस्या तिथि, मुहूर्त एवं महत्व के बारे में।

पिठोरी अमावस्या तिथि (Pithori Amavasya Date)
भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि का प्रारंभ 06 सितंबर को सुबह 07 बजकर 38 मिनट से हो रहा है। इसका समापन 07 सितंबर को प्रात: 06 बजकर 21 मिनट पर हो रहा है। स्नान दान आदि के लिए उदया तिथि मान्य होती है, इसलिए पिठोरी अमावस्या या कुशग्रहणी अमावस्या इस वर्ष 07 सितंबर दिन मंगलवार को है।

पिठौरी अमावस्या पूजा विधि (Pithori Amavasya Pujan Vidhi)
भादो महीने में अमावस्या का व्रत रखने का काफी महत्व है। इस दिन महिलाएं और माताएं ही व्रत रख सकती हैं। ये व्रत कुंवारी महिलाओं के लिए नहीं होता। इस दिन सुबह उठकर स्नान करें (हो सके तो पवित्र नदी में), संभव हो तो पानी में गंगाजल डालकर छिड़क लें। स्नान के बाद साफ कपड़े पहन लें और व्रत का संकल्प लें। पीठ का मतलब होता है आटा. इसलिए इस दिन 64 देवियों की आटे से प्रतिमा बनाने का विधान है। उनकी वस्त्र पहनाकर उनकी पूजा की जाती है। मूर्तियों के गहने बनाने के लिए बेसन का आटा गूंथकर उससे हार, मांग टीका, चूड़ी, कान और गले के बनाकर देवी को चढ़ाएं. सभी देवताओं को एक प्लेट में रखकर उन पर पुष्प चढ़ाएं।

इतना ही नहीं, पूजा के लिए गुझिया, शक्कर पारे, गुज के पारे और मठरी बनाएं और देवी-देवताओं को भोग लगाएं. पूजा के बाद आटे से बनाए देवी-देवताओं की आरती करें। पूजा-अर्चना करने के बाद पंडिज जी या घर के किसी बड़े को पकवान देकर उनके पैर छुएं. पंडित को खाना खिलाएं और दान-दक्षिणा देकर विदा करें। इस तरह से किए गए व्रत को ही पूर्ण माना जाएगा और व्रत लाभ मिलेगा।

अमावस्या का महत्व (importance of new moon)
अमावस्या को पितरों का तर्पण करने से घर में सुख-शांति आती हैं। यह अमावस्या भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। इस दिन मां दुर्गा की पूजा करने का भी प्रावधान है। इस दिन महिलाएं मां दुर्गा की उपासना करती हैं और अपने पुत्रों की लंबी आयु की प्रार्थना करती हैं। इस दिन दान करने का भी बहुत महत्व माना गया है। गरीबों को दान करने से पूर्वज प्रसन्न होते हैं। भादप्रद अमावस्या के दिन किसी नदी के तट पर जाकर पितृ तर्पण करना चाहिए। उसके बाद गरीबों को भोजन करवाना चाहिए, और दान करना चाहिए। इससे पूर्वज प्रसन्न होते हैं और पितृ दोष से आने वाली बाधाएं दूर होती हैं। नौकरी और कार्य क्षेत्र में उन्नति होती है। संतान सुख प्राप्त होता है। घर और परिवार के सदस्यों की सेहत सही रहती हैं मान-सम्मान में वृद्धि होती है।

 

 

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