सहने की उम्मीद बहुसंख्यकों से ही क्यों?
अंग्रेजों के समय से शुरू की गयी फूट डालने वाली इस नीति को आज तुष्टिकरण के रूप में आगे बढ़ाया जा रहा है । अब तो ऐसा लगता है कि बहुसंख्यक वर्ग ने इस बात का अपना प्रारब्ध ही समझ लिया है कि गलती हमारी ही है।
भोपाल – रामनवमी के दिन मध्यप्रदेश के खरगोन में निकाले जा रहे जुलूस पर पत्थर फेंक गए थे, उसके बाद हुई हिंसा में कई लोगों की मौत हो गई थी। दिल्ली के शाहीन बाग में अतिक्रमण को हटाने गए जेसीबी की कार्रवाई को लेकर विवाद हुआ, कोर्ट ने कार्रवाई को रोकने के आदेश दिए। इन दोनों मामलों को लेकर समाज के प्रबुद्ध वर्ग जिसमें लेखक,पत्रकार, समाजसेवी, अधिकारी कर्मचारी, नेता और न्यायाधीश लगभग सभी शामिल हैं। इस वर्ग को हमेशा ऐसा ही क्यों लगता है कि बहुसंख्यक समुदाय ही उपद्रव कर सकता है और क्यों हमेशा पीड़ित पक्ष अल्पसंख्यक वर्ग ही होता है। क्या इस देश के कानून को मानने की जिम्मेदारी केवल एक वर्ग की ही है। और दूसरा वर्ग कानून को तोड़ना अपना मौलिक अधिकार समझता है, तो इस वर्ग को कोई दिक्कत क्यों नहीं होती है। खरगोन मामले को लेकर सवाल खड़ा करने की कोशिश की गई कि जानबूझकर एक वर्ग को परेशान करने का प्रयास किया जा रहा है, जबकि उस वर्ग की कोई गलती नहीं है और दूसरे वर्ग को ऐसा दिखाने की कोशिश की गई जैसे उसे धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में उसे मजा आता हो। कुछ इसी तरह के सवाल शाहीन बाग में एमसीडी की कार्रवाई को लेकर भी खड़े किए गए थे, जबकि कार्रवाई अतिक्रमण हटाने को लेकर हो रही थी उसमें गलत क्या था। अंग्रेजों के समय से शुरू की गयी फूट डालने वाली इस नीति को आज तुष्टिकरण के रूप में आगे बढ़ाया जा रहा है । अब तो ऐसा लगता है कि बहुसंख्यक वर्ग ने इस बात का अपना प्रारब्ध ही समझ लिया है कि गलती हमारी ही है।
गलत को गलते कहने से डरना क्यों ??
केंद्र में मोदी की सरकार आने से पहले अधिकांश नेता तो यहीं सोचते थे कि अल्पसंख्यक वर्ग को लेकर कुछ गलत न बोलें फिर भले ही बहुसंख्यक वर्ग को लेकर कुछ उल्टा सीधा निकल जाए तो कोई परेशानी नहीं है। क्यों हिन्दू बहुसंख्यक देश में हिन्दुओं को लेकर योजनाएं बनाने को दिक्कत होती है ? क्यों कानून तोड़ने का मौलिक अधिकार समझने वालों को यह नहीं समझाया गया कि कानून तोड़ने के लिए बल्कि उनका पालन करने के लिए बनाए गए हैं ? क्यों देश की बहुसंख्यक आबादी से ही यह उम्मीद की जाती है कि वो ही सभी कानूनों का पालन करें ? क्या उसके लिए कानून पालन करने के लिए बनाए गए हैं और दूसरे वर्ग खुलेआम क़ानूनों को तोड़ें कुछ गलत नहीं ? देश में मोदी सरकार आने से पहले ये व्यवस्था ऐसे ही चली आ रही थी। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस व्यवस्था को सिर के बल खड़ा कर दिया। मोदी के ऐसा करने के बाद तो जैसे अंधे को हाथी दिखाई देने लगा। समाज की दिशा दिखाने की काल्पनिक बातें करने वाले इस प्रबुद्ध वर्ग को तो ऐसा लगा कि देश किसी दूसरी दिशा में चलने लगा है। पीएम मोदी की असली ताकत बहुत ज्यादा पढ़े लिखे लोग न हो, लेकिन उनकी असली ताकत देश का आम आदमी है, जिसे सरकार पर भरोसा है। वे मोदी के साथ हैं। इसी भरोसे ने मोदी विरोधियों की हवा निकालकर रख दी । जिन्हें देश में सारी समस्याएं जो इससे पहले नजर नहीं आती थी लेकिन मोदी ने व्यवस्था परिवर्तन या कहें कि “गलती करने वालों ही सजा देने की पहल की शुरुआत की थी” तो उन्हें सब समस्याएं नजर आने लगी। जबकि इससे पहले गलती करने वालों को नहीं, गलती को सहने वालों को सजा दी जाती थी।
आरोपी है तो कार्रवाई तो होगी
खरगोन में रामनवमी के जुलूस पर पत्थर फेंकने वालों पर शिवराज सरकार ने कार्रवाई की, जो ये सवाल उठे कि यह कार्रवाई बदले की भावना से वर्ग विशेष को देखकर की जा रही है। इसका दूसरा पक्ष भी तो था कि इन घरों से निकले पत्थर जुलूस में शामिल लोगों पर मारे गए थे। लेकिन सवाल पूछा गया कि ऐसी कार्रवाई एकतरफा है, तो सवाल खड़ा करने वाले के अनुसार क्या जिन्हें पत्थर पड़े थे क्या वे ही आरोपी थे। खैर जो आरोपी थे शिवराज सरकार ने उनके खिलाफ कार्रवाई की। सवालों का क्या सवाल तो खड़े होते रहेंगे। वहीं देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में क्या कभी ऐसी कल्पना भी की जा सकती है कि ईद और रमजान के दिन कुछ नहीं होगा। शांति से घरों में नमाज पढ़ी जाएगी। लाउडस्पीकर लगाने वाले खुद उन्हें उतार लेंगे। यूपी में सीएम योगी ने कानून का पालन कानूनी तरीके से करवाना शुरू कर दिया है। यूपी सरकार ने बस एक साफ संदेश दिया कि कानून तोड़कर बेखौफ घूमने के दिन गए। कानून तोड़ेंगे तो कार्रवाई होगी। पहले की तरह संतुलन के नाम पर दोनों वर्ग के लोगों पर कार्रवाई होने का वक्त गया। अब तो जो करेगा वही भरेगा। यही तो कानून है और यही तो संविधान के मूल अवधारणा है।
यही है संविधान की असली जीत
इस विशाल देश में हर शहर में हर राज्य में शाहीन बाग है, लेकिन यह शाहीन बाग बना क्यों और किसने उसे संरक्षण दिया था। ये सवाल हो सकता है लेकिन न्यायपालिका को भी यह सोचना होगा कि जब वहां जेसीबी जाने और कार्रवाई को रोकने का आदेश वो दे सकती है, तो फिर उसे ये भी पूछना चाहिए कि शाहीन बाग में सड़क किसके कहने पर घेरी गई थी। न्यायपालिका का यह भी कर्तव्य है कि देशहित में कानून केवल बना न दिए जाए बल्कि उन कानूनों का सड़क पर पालन करते हुए भी देखा जाए। यही तो भारत के संविधान की असली जीत है।