नज़रिया

क्यों रामेश्वर शर्मा की इस स्कीम का फायदा नहीं उठा रहे मुनव्वर राणा ?

भोपाल – तालिबान(Taliban) में अफगानिस्तान(Afghanistan)  का राज हो गया है, यह खबर तेजी के साथ टीवी(tv), अखबार(news paper), रेडियो, फेसबुक(facebook), ट्वीटर और व्हाट्सएप पर ट्रेन की रफ्तार से दौड़ रही है, जैसे हर भारतीय के रिश्तेदार अफगानिस्तान में रहते हो या फिर उनकी अफगानिस्तान में जमीन जायदाद हो जिस पर अब तालिबान का कब्जा हो गया हो। हर गली मोहल्ले में चाय की चुस्की के साथ वो लोग अफगानिस्तान के हालातों पर चर्चा कर रहे है जिन्होंने अपने शहर से बाहर कदम न रखा हो। वो इस मामले के विशेषज्ञ बने बैठकर सलाह दे रहे है कि अमेरिका की गलती के कारण अफगानिस्तान का काम लग गया ! भारत का इस मामले में क्या रुख रहेगा ! पाकिस्तान और चीन की अर्थव्यवस्था अब कैसे मजबूत हो जाएगी ! जैसे सलाह देने वालों अफगानिस्तान में कुछ दिन रहकर आए हो…

मुनव्वर राणा हो क्या गया है ?
ये तो आम उन विशेषज्ञों की बात जो हर गली मोहल्ले में नजर आ रहे है, लेकिन अब जरा बात अपनी शायरी से कम अपने बयानों से ज्यादा विवादों में रहने वाले शायर मुनव्वर राणा साहब की भी कर लेते हैं, क्योंकि इन साहब को लगता है कि भारत में तो पहले से तालिबान से ज्यादा क्रूरता है, इसलिए भारत के अल्पसंख्यकों को डरने को कोई जरूरत नहीं है। अब राणा साहब या तो अपने अनुभव से इस बात को कह रहे हैं या फिर राणा साहब तालिबान के साथ कुछ वक्त बिता कर आएं और तालिबान पर उनकी पीएचडी पूरी हो चुकी है। तभी तो शायर हिंदुस्तान में रहकर कह रहे कि “सब सुन लो तालिबान से ज्यादा डरो मत हिंदुस्तान में जैसा माहौल है वैसा ही तो अब अफगानिस्तान में हो गया है”। अगर ऐसा ही और तो फिर मध्यप्रदेश की हुजूर विधानसभा से विधायक रामेश्वर शर्मा तो उनका अफगानिस्तान का टिकट कटवा ही रहे हैं, लगे हाथ रामेश्वर शर्मा की पेशकश मानकर फ्री का टिकट लेकर अफगानिस्तान निकल जाना चाहिए क्योंकि अभी तो वहां तालिबान के राज में बहुत स्कोप है। वैसे भी अमेरिकी सेनाओं के चलते तालिबानी आतंकवादियों ने बहुत दिन से कोई शायरी का प्रोग्राम नहीं देखा होगा तो शायर वहीं पर अपनी दर्द भरी शायरी फरमाए और तब दाद के रूप में बन्दूक की गोलियां चले तो खुश हो जाए। लेकिन सौ फीसदी मुनव्वर राणा बीजेपी विधायक(BLP MLA) रामेश्वर शर्मा(Rameshvar Sharma) की बात को नहीं मानेंगे…. अरे भाई मानेंगे भी क्यों ?…. क्योंकि भारत में बयान देकर मुनव्वर राणा(munawwar rana) को जो एजेंडा सेट करना था वो उन्होंने कर दिया लेकिन तालिबान में उनका एजेंडा नहीं उनकी ही सेट कर दिया जाएगा. अब ये मत पूछना है कि तालिबान में कैसे सेट करते है, बिलकुल उसी तरह से सेट करते है जिसके डर से अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी को देश छोड़कर जाना पड़ा था।

ये अधिकार हिंदुस्तान ने ही दिया है –
वैसे दर्द भरी शायरी करने के लिए कुछ ज्यादा ही मशहूर मुनव्वर राणा को तालिबान पर इतना प्यार क्यों उमड़ रहा है, है, क्यों बीस साल बाद जब अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान छोड़कर अपने देश वापस चले गए तब उन्हें भारत की क्रूरता की याद आ रही है। वो इसलिए याद आ रही है साहब को भारत के संविधान ने सबको इतनी आजादी दी है कि भारत में लोग भारत के खिलाफ भी बोल लेते हैं, नहीं तो इस्लामिक देशों में खिलाफत में बोले गए एक शब्द की सजा भी मौत ही होती है। और हमारे यहां तो देश के खिलाफ कुछ बोलो तो शाम को टीवी चैनलों में डिबेट का विषय बन जाता है। यहां से सुबह को बोलो शाम को भूल जाओ, लेकिन काश तालिबानी जैसी क्रूरता जिसकी बात मुनव्वर राणा कर रहे है वैसी यहां होती तो सुबह को बोलो और शाम को अपने आप को भूल जाओ जैसी तस्वीर होती… खैर यहीं तो हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती है जिसने हमें ये मौका दिया है कि हम अपने ही देश में उसके खिलाफ बोल सकें।

जय हिंद

वैभव गुप्ता

वैभव गुप्ता मध्यप्रदेश की पत्रकारिता में जाना-पहचाना नाम हैं। मूलतः ग्वालियर निवासी गुप्ता ने भोपाल को अपनी कर्मस्थली बनाया और एक दशक से अधिक समय से यहां अनेक प्रतिष्ठित संस्थानों में उल्लेखनीय सेवाएं दी हैं। वैभव गुप्ता राजनीतिक तथा सामाजिक मुद्दों पर भी नियमित रूप से लेखन कर रहे हैं।

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