“हंगामा है क्यों बरपा!
ममता बनर्जी की सिखाई महुआ मोइत्रा पुलवामा के आतंकी को लड़ाका, प्रधानमंत्री को ग्लैडियेटर, देश के लिए सुसु रिपिब्लिक, पत्रकार को बीच वाली उंगली दिखाना और महिला कॉन्स्टेबल पर हाथ उठाने जैसे काम कर चुकी है, तो संसद के माननीय सदस्य को हरामी कहना महुआ मोईत्रा के लिए कोई बड़ी बात थोड़े ही ना है।

भोपाल – “हंगामा है क्यों बरपा!” हेडिंग को देखकर आप भी सोच रहे होंगे कि हंगामा है किस बात को लेकर। अरे भाई हंगामा बरपाने की कोई खास वजह होती है क्या? हंगामा ही तो है, कभी भी कहीं भी बरप जाए, उसका क्या! कभी-कभी तो हंगामा बैठे-ठाले ही बरप जाता है, बिलकुल वैसे ही जैसे बैठे-ठाले सोशल मीडिया पर युद्ध हो जाया करते हैं। फिर यह भी सोचिए कि अगर हंगामा नहीं बरपा होता तो क्या अकबर इलाहाबादी जी इतना शानदार गीत “हंगामा है क्यों बरपा!” लिख पाते? खैर भारत जनसंख्या के लिहाज से विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है और यहां हंगामा न हो तो फिर कहा होगा और फिर इस बार जहां हंगामा हुआ है वहां तो हंगामा होना आम बात है। दरअसल सदन की कार्यवाही में चमचागिरी, चेला, तानाशाह, तानाशाही, जुमलाजीवी, दोहरा चरित्र, बाल बुद्धि, शकुनि, जयचंद, खालिस्तानी, विनाश पुरुष, खून की खेती, नौटंकी, ढिंढोरा पीटना, बहरी सरकार और निकम्मा जैसे शब्दों को प्रतिबंधित कर दिया है। लेकिन TMC सांसद महुआ मोइत्रा “हरामी” शब्द का इस्तेमाल कर हंगामा बरपा रहीं है। पहले काली माता के विवादित पोस्टर को लेकर विवादित बात – “मेरे लिए काली का मतलब मांस और शराब स्वीकार करने वाली देवी” कहकर हंगामा मचाने महुआ मोइत्रा की शायद ये हताशा ही है। इससे पहले ममता बनर्जी की सिखाई महुआ मोइत्रा पुलवामा के आतंकी को लड़ाका, प्रधानमंत्री को ग्लैडियेटर, देश के लिए सुसु रिपिब्लिक, पत्रकार को बीच वाली उंगली दिखाना और महिला कॉन्स्टेबल पर हाथ उठाने जैसे काम कर चुकी है, तो संसद के माननीय सदस्य को हरामी कहना महुआ मोईत्रा के लिए कोई बड़ी बात थोड़े ही ना है।
संसद को लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर के लिए नियमावली भी बनाई गई है। असंसदीय शब्दों को सदन की कार्यवाही से विलोपित भी कर दिया जाता है। लेकिन जिस तरह से महुआ मोइत्रा जैसे माननीय सदन की परंपरा को तोड़ने के लिए नए नए शब्दों का इस्तेमाल करते रहेंगे तो इस नियमावली का क्या मतलब है? महुआ के सदन के सम्मानित सदस्य को हरामी कहे जाने पर लोकसभा में हंगामा भी हुआ। सोशल मीडिया पर महुआ मोईत्रा के साथ राहुल गांधी और हरामी शब्द भी खूब ट्रेंड हुआ। भाजपा ने माफी की मांग भी की, लेकिन महुआ ने भी साफ कर दिया है कि वे संतरे को संतरा ही कहेंगी सेब नहीं। साफ है कि काली माता को लेकर विवादित बयान देकर अपनी बात को सही ठहराने वाले टीएमसी सांसद इस बात को मान रही है कि उन्होंने सदन में हरामी कहा था और इस बात को भी मान रही है कि उन्होंने सही कहा था। तो फिर क्यों सदन की कार्यवाही के लिए संसदीय और असंसदीय शब्दों की अलग से लिस्ट अलग से बनाई गई है? जब सदन के सदस्य ही उसे मानने के लिए तैयार नहीं है तो फिर ऐसा करने की जरूरत ही क्या है? जिसका जो मन है उसे बोलने दीजिए।
पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर से सांसद महुआ मोइत्रा को विवाद पसंद हैं। खुद से जुड़े विवादों की फेहरिस्त को बढ़ाकर ही तो वे ममता बनर्जी के सामने खुद ही ब्रांडिग कर पाएंगी। कभी आम आदमी का सिपाही बनकर राहुल गांधी के सामने अपने नंबर बढ़ाकर टीएमसी सांसद बनने तक का सफर तय करने वाली महुआ मोईत्रा वैसे तो बंगाली हिन्दू ब्राह्मण परिवार से आती है, जहां उनकी परवरिश बहुसांस्कृतिक परिवेश में हुई है। लेकिन राजनीति में अपनी ब्रांडिंग करने के लिए महुआ मोइत्रा ने नई राह पकड़ ली है। सदन की कार्यवाही के बीच अपनी बात पर्याप्त समय लेकर खत्म करने के बाद महुआ मोइत्रा को दूसरे सदस्य हरामी कहना पड़ रहा है। महुआ सदन में कहती है कि “दोपहर तक बिक गया बाजार हर एक झूठ और मैं एक सच और मैं एक सच को लेकर शाम तक बैठी रही”। अगर महुआ को लगता है तो वो सच बोल रही है उनके पीछे कोई नहीं है तो फिर ये गुस्सा, ये हताशा और ये हंगामा मचाने वाला शब्द हरामी किस लिए।