क्यों किया जाता है भगवान शिव की आरती के साथ कर्पूरगौरं मंत्र का पाठ? जानिए
सोमवार का दिन भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन भगवान शिव का विधी विधान से पूजा अर्चना की जाती है और पूजा के विधान में पूजा के दौरान मंत्रों के उच्चारण का विशेष महत्व माना गया है। ऐसी मान्यता भी हैं की मंत्र के उच्चारण के बिना पूजा पाठ के आयोजन अधुरे माने जाते हैं । इसलिए पूजा के बाद होने वाली आरती के समपन्न होते ही इस मंत्र का उच्चारण करना ही चाहिए । शास्त्रों में इस मंत्र को भगवान शिव जी की अति प्रिय मंत्र बताया गया हैं, और वह मंत्र हैं- कर्पूरगौरं करुणावतारं मंत्र ।
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि ।।
– इस अलौकिक मंत्र के प्रत्येक शब्द में भगवान शिवजी की स्तुति की गई हैं । इसका अर्थ इस प्रकार है- कर्पूरगौरं- कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले । करुणावतारं- करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं । संसारसारं- समस्त सृष्टि के जो सार हैं । भुजगेंद्रहारम्- इस शब्द का अर्थ है जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं । सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि- इसका अर्थ है कि जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है ।
अर्थात- जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है ।
देवी-देवता की आरती के बाद कर्पूरगौरम् करुणावतारं मंत्र ही क्यों बोला जाता है, इसके पीछे बहुत गहरे अर्थ छिपे हुए हैं । भगवान शिव की ये स्तुति शिव-पार्वती विवाह के समय विष्णु द्वारा की गई थी । ये स्तुति इसीलिए गाई जाती है कि जो इस समस्त संसार का अधिपति है, वो हमारे मन में वास करे, शिव श्मशान वासी हैं, जो मृत्यु के भय को दूर करते हैं । ऐसे शिवजी हमारे मन में शिव वास कर, मृत्यु का भय दूर करें, औऱ हमारी सभी मनोकामनाओं को पूरा करें ।
आरती के बाद इस मंत्र का जाप क्यों करते हैं?
शिवपुराण के अनुसार शिवजी की इच्छा मात्र से ही इस सृष्टि की रचना ब्रह्माजी ने की है। भगवान विष्णु इसका संचालन कर रहे हैं। इसी वजह से शिवजी को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। सभी देवी-देवताओं की पूजा में इनका ध्यान करने से पूजा सफल होती है और सभी देवी-देवता प्रसन्न होते हैं।
यही मंत्र क्यों
1. भगवान शिव की ये स्तुति शिव-पार्वती विवाह के समय भगवान विष्णु द्वारा गाई हुई मानी गई है।
2. शिव शमशानवासी हैं। उनका स्वरुप अघोरी है।
3. ये स्तुति बताती है कि उनका स्वरुप बहुत दिव्य है।
4. शिव सृष्टि के अधिपति हैं। वे मृत्युलोक के देवता हैं।
5. उन्हें पशुपतिनाथ भी कहा जाता है, पशुपति का अर्थ है संसार के जितने भी जीव हैं (मनुष्य सहित) उन सबका अधिपति।
6. वह आद्यान्त हैं। त्रिपुरारी हैं। बहुत शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं।
7. उनकी कृपा सहज और सुलभ प्राप्त हो जाती है।
ये स्तुति इसी कारण से गाई जाती है कि जो इस समस्त संसार के अधिपति हैं, वो हमारे मन में वास करें। हम पर कृपा बनाएं।
8. शिव कल्याण के देव हैं। सृष्टि का कल्याण हो, जन-जन का कल्याण हो, इसलिए भी आरती के बाद इस मंत्र को बोला जाता है।