शख्सियत

NCP अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले पवार को क्यों कहा जाता है राजनीति का असली ‘चाणक्य’

शरद पवार को यूं ही भारतीय राजनीति का मंझा हुए खिलाड़ी नहीं कहा जाता। शरद पवार का कद किसी बड़े राजनेता से कम नहीं है।

शरद पवार को यूं ही भारतीय राजनीति का मंझा हुए खिलाड़ी नहीं कहा जाता। शरद पवार का कद किसी बड़े राजनेता से कम नहीं है। महाराष्ट्र के साथ देश की सियासत में उनकी हैसियत काफी ज्यादा है। यही कारण है कि एनसीपी अध्यक्ष पद से इस्तीफा की घोषणा करके शरद पवार ने महाराष्ट्र से दिल्ली तक हलचल मचा दी है। विपक्ष के नेता भी सोच-सोचकर परेशान है कि आखिर ऐसा करके शरद पवार आगे क्या बड़ा करने वाले हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले उनका ये इस्तीफा कई सवाल खड़े कर रहा है। लेकिन इन सबके बीच शरद पवार के सियासी सफर को देखें, तो आज भी अहम भूमिका हैं। वे पार्टी लाइन से हटकर रिश्ते बनाने वाले नेताओं में से एक है। साथ ही राजनीति में पवार अक्सर अपने सियासी मास्टर स्ट्रोक के लिए भी जाने जाते हैं। ऐसे में ये जानना जरुरी हो जाता है कि आखिर शरद पवार ने कब-कब नये दांव चलकर महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि देश की सियासत में भी अपना एक अलग ही कद बना रख है

छात्र राजनीति से शुरु किया सियासी सफर

महाराष्ट्र से लेकर सत्ता के केंद्र दिल्ली तक में शरद पवार की राजनीति की हनक महसूस की जाती रही है। पांच दशकों से ज्यादा समय का राजनीतिक करियर रखने वाले पवार की सियासी सफर छात्र राजनीति से शुरू हुआ था। 1956 में शरद पवार ने गोवा के स्वतंत्र होने पर महाराष्ट्र के प्रवरनगर एक प्रदर्शन मार्च निकाला था, जो उनके सियासी सफर की ओर पहला कदम था। 1958 में शरद पवार कांग्रेस की युवा इकाई में शामिल हो गए और पार्टी के लिए अपना समर्थन जाहिर किया। कांग्रेस में शामिल होने के चार साल बाद 1962 में ही उन्हें पुणे जिले में युवा इकाई का अध्यक्ष बना दिया गया। आने वाले कई सालों तक कांग्रेस की युवा इकाई में पवार के पास बहुत से अहम पद रहे और पार्टी में उनकी जड़ें गहराती गईं।

वो मौके जब पवार ने साबित किया की वो हैं राजनीति के असली चाणक्य

शरद पवार का कद कितना बड़ा है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि एनसीपी ही नहीं, विपक्ष के नेता भी उनसे इस्तीफे पर फिर से विचार करने को कह रहे हैं। राजनीति में कई ऐसे मोड़ आए हैं, जब पवार अपनी ‘पावर पॉलिटिक्स’ के जरिए ना केवल सियासी धारा को बदलने में सफल रहे हैं, बल्कि उसे अंजाम तक भी पहुंचाया है। तो आइए आपको बताते हैं कि वो कौन से मौकों थे जब पवार ने साबित किया कि वही असल में राजनीति के चाणक्य हैं।

इंदिरा गांधी तक से बगावत कर चुके पवार

कांग्रेस से अपनी राजनीति शुरू करने वाले पवार ने आपातकाल के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तक से बगावत करते हुए कांग्रेस छोड़ दी। 1978 में उन्होंने जनता पार्टी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाई और खुद सीएम बने। 1980 में जैसे ही इंदिरा सरकार ने वापसी की तो पवार सरकार को बर्खास्त कर दिया गया। 1983 में उन्होने कांग्रेस पार्टी सोशलिस्ट के नाम से नए दल का गठन किया और इसके सिंबल पर बारामती से सांसद भी बने। 1985 में पवार की पार्टी ने राज्य विधानसभा में 54 सीटें जीतीं और पवार लोकसभा से इस्तीफा देकर राज्य की राजनीति में आ गए और नेता प्रतिपक्ष बने।

सोनिया गांधी से भी भिड़ गए थे पवार

राजीव गांधी की सरकार के दौरान 1987 में पवार फिर से कांग्रेस में वापस आ गए। इसके बाद वह 1988 में फिर से महाराष्ट्र के सीएम बने और कुछ समय बाद केंद्र में मंत्री बन गए।1990 के विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस को 288 सीटों में 141 सीटें मिली तो पवार ने 12 निर्दलीय विधायकों को अपने पाले में कर लिया और फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बन गए। 1999 को अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार मात्र एक वोट से गिर गई और इसके साथ ही 13वें लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो गई। इसी बीच सीताराम केसरी की जगह सोनिया गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया और उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी घोषित करने की बातें होनी लगीं। सब वजहों से कांग्रेस में बगावत हो गई।  इस बगावत के तीन अहम किरदार- शरद पवार, तारिक अनवर और पीए संगमा, तीनों ने सोनिया गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। तीनों ने सोनिया गांधी के ‘विदेशी मूल’ होने पर सवाल उठाया। उनका कहना था कि एक विदेशी मूल के व्यक्ति को भारत का प्रधानमंत्री कैसे बनाया जा सकता है? सोनिया गांधी के खिलाफ बगावत ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी की नींव रखी। शरद पवार ने तारिक अनवर और पीए संगमा के साथ मिलकर 10 जून 1999 को एनसीपी का गठन किया। उसी साल अक्टूबर में महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुए। एनसीपी का ये पहला विधानसभा चुनाव था। पार्टी ने राज्य की 288 सीटों में से 223 पर अपने उम्मीदवार खड़े किए। कांग्रेस जहां 75 सीटें जीतने में सफल रही तो एनसीपी के हिस्से में 58 सीटें आईं। बाद में दोनों दलों ने मिलकर सरकार बनाई।

महाराष्ट्र के सबसे युवा सीएम

1967 में शरद पवार केवल 27 साल की उम्र में महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में बारामती से कांग्रेस प्रत्याशी घोषित किए गए। शरद पवार ने चुनाव जीता और कई सालों तक लगातार बारामती से चुनाव जीतते रहे। ग्रामीण अंचल की राजनीति करने वाले विधायक पवार ने महाराष्ट्र में सूखे के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। इसके साथ ही सहकारी शुगर मिल और अन्य सहकारी समितियों मे होने वाली राजनीतिक गतिविधियों में भी पवार खूब शामिल रहे। 1969 में राष्ट्रपति के चुनाव के बाद जब कांग्रेस पार्टी से इंदिरा गांधी को निकाल दिया गया। इसके बाद शरद पवार ने यशवंतराव चव्हाण के साथ इंदिरा गांधी के गुट वाली कांग्रेस का दामन थाम लिया। 1975-77 में पवार महाराष्ट्र की शंकरराव चव्हाण सरकार में गृह मंत्रालय संभाल रहे थे। कुछ सालों बाद कांग्रेस पार्टी में फिर दोफाड़ हो गया। इस दौरान शरद पवार कांग्रेस (यू) के पाले में खड़े रहे। 1978 में महाराष्ट्र में कांग्रेस (आई) और कांग्रेस (यू) ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। हालांकि, चुनाव के बाद दोनों धड़ों ने मिलकर वसंतदादा पाटिल की सरकार बनवाई। इस सरकार में पवार के पास उद्योग मंत्रालय और श्रम मंत्रालय रहा। 38 साल की उम्र में ही शरद पवार ने कांग्रेस (यू) का साथ छोड़कर जनता पार्टी के साथ सरकार बना ली। इसके साथ ही 1978 में पवार महाराष्ट्र के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बन गए। हालांकि, 1980 में इंदिरा गांधी के सत्ता में वापस आने के बाद ये सरकार अल्पमत में आ गई। 1983 में पवार को महाराष्ट्र में कांग्रेस (आई) का अध्यक्ष बना दिया गया और वो बारामती लोकसभा सीट से सांसद बन गए। 1985 में पवार ने एक बार फिर से बारामती से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। उन्होंने महाराष्ट्र की राजनीति में ही रहने की इच्छा जाहिर की और लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।

कैसे कट्टर हिंदूवादी पार्टी शिवसेना को एनसीपी के साथ जोड़ा ?

कोई सोच भी नहीं सकता था कि शिवसेना जैसी कट्टर हिंदूवादी पार्टी कांग्रेस-एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बना सकती है और ऐसा 2019 में हुआ।  महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद बीजेपी-शिवसेना गठबंधन टूट गया। इसके बाद बीजेपी ने रातों-रात अजित पवार के साथ मिलकर सरकार बना ली,  लेकिन यहां पवार ने एनसीपी विधायकों को एकजुट करते हुए एक भी विधायक को अजित पवार के पाले में नहीं जाने दिया और परिणाम ये हुआ कि सरकार महज कुछ घंटों में गिर गई। इसके बाद शरद पवार ने न केवल तत्कालीन शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को मनाया बल्कि दो विपरीत विचारधारा वाली पार्टियों को एक पाले में लाकर महाविकास अघाड़ी का गठन कर उद्धव ठाकरे के नेतृत्व  में सरकार बना दी। पवार को यहां तीन पार्टियों- कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना को मिलकर बने महाविकास अघाड़ी का अध्यक्ष बनाया गया। इसके बाद जब- जब अघाड़ी सरकार पर संकट आया, तो पवार एक पिलर बनकर सरकार के बचाव में खड़े रहे।

विपक्षी नेताओं में पवार पीएम मोदी के काफी नजदीक

प्रधानमंत्री मोदी विपक्ष के कुछ गिने-चुने नेताओं के ही करीबी माने जाते हैं, जिनमें पवार का नाम सबसे ऊपर है। जुलाई 2021 में जब पवार ने पीएम मोदी से मुलाकात की तो राजनीतिक अटकलों का बाजार गर्म हो गया। हालांकि इससे पहले 2019 में भी पवार इसी तरह पीएम मोदी से मिले थे और तब भी कई तरह की अटकलें लगाई थी। खुद पीएम मोदी कई बार शरद पवार की खुले मंच से तारीफ कर चुके हैं। 2016 में पवार ने पीएम मोदी की तारीफ करते हुए कहा, ‘मैं मोदी के काम करने के तरीके से हैरान हूं। कल वह जापान में थे और सुबह वह गोवा गए। दोपहर में मोदी बेलगाम आए और अभी वीएसआई में हैं। मुझे नहीं पता कि वह रात में कहां जा रहे हैं।यह देश के लिए उनकी कुल प्रतिबद्धता को दर्शाता है। मतबल साफ है कि शरद पवार जो भी बोलते हैं, उसका बड़ा गहरा मतलब होता है। अगर कोई फैसला लेते हैं तो विपक्ष नेता भी मंथन करने लगते हैं। ऐसा ही इस बार हुआ है। जब शरद पवार ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफे का ऐलान किया तो विपक्ष के नेता भी उनके इस फैसले से हैरान हैं।

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