कांग्रेस ने 10 महीने पहले ही शुरू की तैयारी: तीन दशक से नहीं जीत सकी है विंध्य की चार लोकसभा सीटें
भाजपा यहां पिछले कई चुनावों से अजेय है तो कांग्रेस एक सीट में तीन दशक से ज्यादा समय से जीत के लिए तरस रही है, तो एक में पिछले दो दशक से ज्यादा समय से हार रही है। जबकि दो सीटें तो ऐसी हैं जहां 2007 और 2009 के बाद से कांग्रेस को जीत की तलाश है।
सतना। साल के अंत में होने वाले विधानसभा और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियां कांग्रेस ने साथ-साथ शुरू कर दी हैं। विधानसभा चुनाव के लिए जहां अलग- अलग समितियों का गठन किया गया है, वहीं लोकसभा चुनाव के लिए शीर्ष नेतृत्व ने अभी से हर लोकसभा सीट के लिए अलग-अलग पर्यवेक्षक नियुक्त किए हैं। इसी कड़ी में विंध्य की चारों लोकसभा सीटों के लिए भी पर्यवेक्षक नियुक्त किए गए हैं। अगर विंध्य की लोकसभा सीटों के चुनावी मिजाज की बात करें तो फिलहाल यहां की चारों सीटों पर भाजपा का कब्जा है।
भाजपा यहां पिछले कई चुनावों से अजेय है तो कांग्रेस एक सीट में तीन दशक से ज्यादा समय से जीत के लिए तरस रही है, तो एक में पिछले दो दशक से ज्यादा समय से हार रही है। जबकि दो सीटें तो ऐसी हैं जहां 2007 और 2009 के बाद से कांग्रेस को जीत की तलाश है। कांग्रेस की तलाश को ये पर्यवेक्षक कहां तक पूरा कर पाते हैं यह तो आने वाला वक्त बताएगा लेकिन विधानसभा के साथ ही लोकसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर कांग्रेस ने यह संदेश तो जरूर दे दिया है कि आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मुकाबला आसान नहीं होने वाला।
1991 के बाद से नहीं जीती कांग्रेस
विंध्य की सतना लोकसभा सीट कांग्रेस के लिए किसी अबूझ पहेली से कम नहीं है। 1991 के बाद से सतना सीट को कांग्रेस नहीं जीत पाई है। सतना से कांग्रेस के आखिरी सांसद कुंवर अर्जुन सिंह थे। इसके बाद से हुए सात चुनावों में से एक बार बसपा तो 6 बार भाजपा को जीत मिली है। दो बार भाजपा से रामानंद सिंह तो पिछले चार बार से गणेश सिंह को सांसद बनने का मौका मिल रहा है। सतना सीट जीतने के लिए हर जतन कर चुकी कांग्रेस हाथ सिर्फ पराजय ही लगी है। अब 2024 में होने जा रहे लोकसभा चुनाव के लिए पार्र्टी ने दस माह पहले से ही तैयारियां करते हुए सतना के लिए पर्यवेक्षक नियुक्त किए हैं। कांग्रेस के सतना सीट के लिए पर्यवेक्षक के रूप में ललित कगातरा की नियुक्ति की है।
2 लाख से ज्यादा वोटों से मिली थी पराजय
अगर सतना के पिछले लोकसभा चुनाव के परिणाम की बात करें तो 2019 में कांग्रेस को 2 लाख 31 हजार 473 मतों से पराजय का सामना करना पड़ा था। कांग्रेस के राजाराम त्रिपाठी को कुल पड़े मतों का 32.08 फीसदी मत मिले थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में मिले मतों के मुकाबले ये मत 8.05 फीसदी कम थे।
1999 में जीते थे सुंदरलाल
सतना की तरह ही रीवा संसदीय सीट में भी कांग्रेस का यही हाल है। यहां 1999 में आखिरी बार कांग्रेस से सुंदरलाल तिवारी सांसद चुने गए थे। इसके बाद से हुए चार चुनावों में से लगातार कांग्रेस को पराजय मिली है। जबकि तीन बार भाजपा व एक बार बसपा को जीत मिली है। पिछले दो चुनावों से लगातार भाजपा के जनार्दन मिश्रा रीवा से सांसद चुने जा रहे हैं।
जितने वोट मिले नहीं उससे ज्यादा की पराजय
यदि पिछले चुनाव के परिणाम की बात करें तो यहां कांग्रेस को तीन लाख बारह हजार आठ सौ सात मतों से पराजय मिली थी। कांग्रेस के सिद्धार्थ तिवारी को 2 लाख 70 हजार 938 मत मिले थे। रीवा लोकसभा सीट में पड़े कुल मतों में से सिद्धार्थ तिवारी को 26.74 फीसदी मत मिले थे। पिछले दो दशक से ज्यादा समय से रीवा सीट में पराजय का सामना कर रही कांग्रेस ने इस बार हर हाल में यह सीट जीतने की कवायद शुरू कर दी है। अपनी इसी कवायद को अंजाम देने के लिए कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने रीवा संसदीय सीट के लिए इन्द्रजीत सिंह सिन्हा को अभी से अपना पर्यवेक्षक नियुक्त किया है।
सीधी और शहडोल में भी चल रहा हार का सिलसिला
सतना और रीवा की तरह विंध्य की दो अन्य लोकसभा सीटें सीधी और शहडोल में भी लगातार कांग्रेस को पराजय मिल रही है। सीधी में 2007 में हुए एक उपचुनाव समेत अब तक चार चुनाव हो चुके हैं जिसमें सिर्फ एक में कांग्रेस को विजय मिली है और पिछले तीन चुनावों से पराजय का सामना करना पड़ रहा है। यही हाल शहडोल लोकसभा सीट का है, यहां भी 2016 में हुए एक उपचुनाव समेत 2009 से अब तक चार चुनाव हो चुके हैं जिनमे से 2009 में कांग्रेस की राजेश नंदनी सिंह को विजय हासिल हुई थी। इसके बाद से यहां कांग्रेस को जीत का इंतजार है।