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कौन हैं उपेंद्र कुशवाहा? जिन्होने फिर नीतीश कुमार का छोड़ा साथ और कर दिया नई पार्टी का ऐलान, जानें इस शख्सियत के बारे में सब कुछ

बिहार की सियासत में एक बार फिर बड़ी राजनीतिक उठापटक देखने मिली। विपक्ष को एक जुट करने की कवायद के बीच बिहार के सीएम नीतीश कुमार को बड़ा झटका लगा है। जो नीतीश कुमार विपक्ष को एकजुट करने में लगे हैं। वही नीतीश कुमार अपनी पार्टी को नहीं संभाल पा रहे हैं।

बिहार की सियासत में एक बार फिर बड़ी राजनीतिक उठापटक देखने मिली। विपक्ष को एक जुट करने की कवायद के बीच बिहार के सीएम नीतीश कुमार को बड़ा झटका लगा है। जो नीतीश कुमार विपक्ष को एकजुट करने में लगे हैं। वही नीतीश कुमार अपनी पार्टी को नहीं संभाल पा रहे हैं। तो फिर विपक्ष कैसे एक जुट होगा ये बड़ा सवाल है। क्योकि अब उनकी ही पार्टी के उपेंद्र कुशवाहा ने बगावत का बिगुल फूंक दिया है। जनता दल यूनाइटेड यानि JDU संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी राह अलग कर ली है। उन्होने JDU से इस्तीफा देकर अपनी नई पार्टी का ऐलान कर दिया है। उन्होने अपनी नई पार्टी का नाम राष्ट्रीय लोक जनता दल राख है।उपेंद्र कुशवाह अपनी नई पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे। 18 साल में ये तीसरी बार है, जब उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश का साथ छोड़ा है। और दूसरी बार उन्होंने अपनी नई पार्टी बनाई है। वही उपेंद्र कुशवाह ने कहा है कि में जल्द ही विधान परिषद के सभापति से मिलकर एमएलसी पद से भी इस्तीफा दे दूंगा। क्योकि हम जमीन बेचकर अमीर नहीं बन सकते हैं। उपेंद्र कुशवाहा ने ये भी कहा है कि नीतीश के साथ शुरुआत आच्छी थी,लेकिन अंत बुरा। दरअसल विधानसभा चुनाव के बाद मार्च 2021 में कुशवाहा ने अपनी पार्टी का जेडीयू में विलय करके नीतीश कुमार का दामन थामा था, लेकिन पार्टी में दो साल भी नहीं रह सके। और फिर नीतीश से उनका मोहभंग हो गया है। और अब एक बार फिर से जेडीयू को अलविदा कह दिया है। ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा जेडीयू में क्या लेकर आए थे और अब क्या हासिल करने जा रहे हैं। ये बड़ा सवाल है।

कैसा रहा कुशवाहा का अब तक का सफर?

उपेंद्र कुशवाहा अपने साढ़े तीन दशक के सियासी सफर में कई उतार-चढ़ाव भरे दौर देख चुके हैं। इस दौरान कुशवाहा दो बार जेडीयू छोड़कर नई पार्टी बना चुके हैं, लेकिन दोनों बार सियासी हिट-विकेट हो गए और अब तीसरी बार नई राजनीतिक पारी खेलने के मूड में हैं। कुशवाहा अपने पूरे राजनीतिक जीवन में विधानसभा और लोकसभा के नजरिए से सिर्फ दो ही बार चुनाव जीत सके हैं। पहली बार वे 2000 में समता पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर वैशाली की जंदाहा विधानसभा सीट से जीतकर विधायक बने थे और दूसरी बार 2014 लोकसभा चुनाव में काराकाट सीट से सांसद चुने गए थे। इसके अलावा हमेशा विधान परिषद और राज्यसभा सदस्य ही चुने जाते रहे हैं, जिसके चलते उनको चारों सदनों का सदस्य होने का गौरव प्राप्त हुआ।

संसद,विधानसभा में नहीं एक भी सदस्य

कुशवाहा ने एनडीए का साथ छोड़ने के बाद आरजेडी से सटे, लेकिन विधानसभा सीट बंटवारे को लेकर उनकी बात नहीं बनी। इसके बाद तब उन्होंने बीएसपी, एआईएमआईएम एसजेडीपी, ओपी राजभर की पार्टी के साथ मिलकर ग्रैंड डेमोक्रिटिक सेक्युलर फ्रंट के नाम से तीसरा मोर्चा बनाकर चुनाव लड़ा और खुद गठबंधन के सीएम फेस बने। कुशवाहा की पार्टी 99 सीटों पर चुनाव लड़ी और एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हुई, जबकि ओवैसी की पार्टी सिर्फ 20 सीटों पर चुनाव लड़कर 5 सीटें जीतने में सफल रही और बसपा के भी एक विधायक बने। कुशवाहा की पार्टी का वोट शेयर गिरकर दो फीसदी से भी कम रह गया।

जेडीयू में क्या लेकर आये थे कुशवाहा?

बिहार विधानसभा चुनाव के बाद उपेंद्र कुशवाहा खाली हाथ रह गए थे और 14 मार्च 2021 को अपनी पार्टी आरएलएसपी का जेडीयू में विलय कर दिया था। नीतीश ने जिस वक्त उन्हें लिया था, उस समय उपेंद्र कुशवाहा की राजनीतिक हैसियत काफी कमजोर हो चुकी थी। उनके पास न तो लोकसभा में कोई सीट, न विधानसभा में। उनकी पार्टी के जिला स्तर के लोग भी आरजेडी में शामिल हो चुके थे। आरएलएसपी में कुशवाहा ही अकेले बचे हुए थे और वो जेडीयू में वापसी कर गए। जिस दिन यह कार्यक्रम होना था, उस दिन कुशवाहा से पहले ही नीतीश कुमार पार्टी दफ्तर पहुंच गये थे। जेडीयू के दूसरे दर्जे के नेता कुशवाहा की आगवानी करने बाहर खड़े थे। उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पार्टी का जेडीयू में विलय करते वक्त इसे राज्य और देश हित में बताया था। तब उन्होंने कहा था, ‘नीतीश कुमार मेरे बड़े भाई की तरह हैं और मैं व्यक्तिगत रूप से उनका सम्मान करता हूं।वहीं, नीतीश कुमार ने भी कुशवाहा को गले लगाया और उन्हें राज्यपाल कोटे से एमएलसी बना दिया गया। इस तरह उपेंद्र कुशवाहा बिहार के उन नेताओं में शुमार हो गये, जिन्हें चारों सदनों का सदस्य होने का गौरव प्राप्त है। चारों सदनों का सदस्य रहने वाले वे बिहार के चौथे नेता हैं। इससे पहले नागमणि, लालू प्रसाद यादव और सुशील मोदी को भी यह गौरव मिला।

कुशवाहा को उम्मीदों के मुताबिक नहीं मिला पद

लेक्चरर की नौकरी छोड़ कर पॉलिटिक्स में आए उपेंद्र कुशवाहा को राजनीतिक पहचान नीतीश कुमार के सहारे मिली। पहली बार विधायक भी नीतीश की पार्टी से बने, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी से लेकर राज्यसभा सदस्य तक जेडीयू से बने। मार्च 2021 में जेडीयू में अपनी पार्टी का विलय किया तो नीतीश ने उपेंद्र कुशवाहा को जेडीयू के संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया और बाद में बिहार विधान परिषद का सदस्य बनाया, लेकिन उनकी एक बार फिर ‘पद से जुड़ी’ राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने ही नीतीश कुमार से दूरी की वजह माना जा रहा है। जेडीयू में एंट्री करने के बाद उपेंद्र कुशवाहा को उम्मीद थी कि नीतीश कैबिनेट में उन्हें मंत्री के तौर पर शामिल किया जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। कुशवाहा ने जब विलय किया था तो नीतीश कुमार एनडीए के साथ थे, लेकिन अब महागठबंधन का हिस्सा हैं। बीजेपी का साथ छोड़ नीतीश जब महागठबंधन के साथ चले गए, तब कुशवाहा के मंत्री बनने की प्रबल संभावना थी, पर, यहां भी भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया। ऐसे में कुशवाहा खुद को सूबे में उपमुख्यमंत्री के तौर पर देख रहे थे और इस सवाल पर उन्होंने कहा था कि वह संन्यासी तो नहीं हैं। कुशवाहा के डिप्टी सीएम बनाए जाने की चर्चा तेज हो गई थी, लेकिन नीतीश कुमार ने उससे भी इनकार कर दिया। नीतीश कुमार ने बिना पूछे डिप्टी सीएम के मुद्दे पर बयान दिया था कि उनकी ऐसी कोई योजना नहीं है और बिहार में तेजस्वी यादव के अलावा दूसरा उपमुख्यमंत्री नहीं होगा। यह उपेंद्र कुशवाहा को नीतीश की तरफ से सीधा इशारा था। इसके बाद उपेंद्र कुशवाहा के लिए जेडीयू में तब तक किसी बड़े पद की उम्मीद पर पानी फिर गया जब राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह को जेडीयू का दूसरी बार अध्यक्ष बना दिया। इस तरह से कुशवाहा को न तो मंत्री बनाया गया, न ही डिप्टी सीएम की कुर्सी मिली और न ही जेडीयू की कमान हाथ आई। ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा एक बार फिर जेडीयू के भीतर खुद को असहज महसूस करने लगे थे

जेडीयू से क्या लेकर बाहर गए कुशवाहा?

जेडीयू में करीब दो साल रहने के बाद एक बार फिर से उपेंद्र कुशवाहा का नीतीश कुमार से सियासी मोहभंग हो चुका है और उन्होने जेडीयू से बाहर जाने का फैसला कर लिया, जिसकी घोषणा सोमवार को उन्होने कर दी है। साथ ही अपनी नई पार्टी के नाम की घोषणा भी कर दी है। कुशवाहा के पास न तो नेता बचे हैं और न ही जेडीयू का कोई विधायक-सांसद आए हैं। आरएलएसपी से सांसद रहे अरुण कुमार भी अब उनके साथ नहीं है। कुशवाहा के साथ जुड़े रहे तमाम नेता भी साथ छोड़ चुके हैं। इस तरह कुशवाहा दो साल पहले जेडीयू में खाली हाथ आए थे और दो साल बाद अब पार्टी को अलविदा कह कर खाली हाथ ही वापस चले गए।, क्योंकि जेडीयू से कोई बड़ा नेता उनके साथ खड़ा दिखाई नहीं दिया।इतना ही नहीं कुशवाहा के साथ उनके जाति कोइरी समुदाय के भी नेता साथ नहीं दिखे। ऐसे में कुशवाहा को 2014 की तरह बीजेपी भाव देगी, इसमें संदेह लगता है।

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