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वित्त मंत्री सीतारमण के बजट में आखिर कहां से आए सप्तर्षि और भारत की नींव को आखिर कैसे देंगे मजबूती

ये है केंद्र का सेवन पाइंट बजट, इन सात पाइंट को वित्त मंत्री ने माना है सप्तर्षि, सातों ऋषियों के सहारे कैसे दिखेगा भारत में बदलाव

BHOPAL. अगले साल लोकसभा चुनाव होना है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के दूसरे कार्यकाल का अंतिम पूर्ण बजट बुधवार को सदन में पेश किया। वित्त मंत्री सीतारमण ने अगले 25 सालों का ब्लू प्रिंट बताते हुए अपने इस बजट में विकास के लिए सप्तर्षि का बार-बार उल्लेख किया है। आखिर क्या है और कहां से आया है यह सप्तर्षि कॉनसेप्ट। समाज के किस वर्ग के विकास से नाता रखते हैं ये ऋषि। यहां हम आपको बता रहे हैं केंद्र सरकार के सप्तर्षि के सात पद और किन ऋषियों को वित्त मंत्री ने बनाया है विकास आधार।

सदन में पेश किए गए अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री सीतारमण ने जिसे स​प्तर्षि बताते हुए हर वर्ग के विकास का आधार बताया है। उसमें सात क्षेत्रों को सात अलग-अलग वर्ग में विभाजित किया है। इसमें गरीब, गांव, शहर, महिलाओं, युवाओं, कर्मचारियों, वृद्धजनों, कर्मचारियों के साथ ही कृषि, किसान के लिए भी अलग वर्ग बनाकर विकास के प्रावधान किए गए हैं। वहीं योजननाओं के लिए वित्तीय प्रावधान भी अलग पाइंट में किए गए हैं तो क्षमता विकास पर भी जोर दिया गया है।

ये हैं सप्तर्षि के सात पद –

1 – समावेशी विकास
2 – वंचितों को वरीयता
3 – बुनियादी ढांचे और निवेश
4 – क्षमता विस्तार
5 – हरित विकास
6 – युवा
7 – वित्तीय क्षेत्र

अब उन सप्तर्षियों का परिचय जो हैं सरकार के कॉनसेप्ट का आधार

भारत की सनातन संस्कृति में सात ऋषियों का विशेष स्थान प्राप्त है। सातों के अपने अलग-अलग कर्म क्षेत्र हैं तो इनके योगदान भी विशिष्ट हैं। हम बताते हैं सरकार को कहां से मिला सप्तर्षि का विचार। हालांकि मान्यता है कि अगस्त्य, कष्यप, अष्टावक्र, याज्ञवल्क्य, कात्यायन, ऐतरेय, कपिल, जेमिनी, गौतम आदि सभी ऋषियों ने भी उक्त सात ऋषियों के कुल में जन्म लिया है। इसके कारण इन्हें भी वही दर्जा प्राप्त है, जो भारतीय संस्कृति में सप्त ऋषियों को प्राप्त है।

वशिष्ठ: रामचरित मानस के मुताबिक राजा दशरथ के कुलगुरु ऋषि वशिष्ठ थे। राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न को इन्होंने ही शिक्षित किया था। इन्हीं के कहने पर श्रीराम ने कई राक्षसों का वध किया था।

विश्वामित्र : धर्म ग्रंथों के मुताबिक विश्वावित्र राजा बाद में ऋषि बन गए थे। मान्यता है कि कामधेनु गाय की चाहत में इन्होंने ऋषि वशिष्ठ से युद्ध किया था, लेकिन पराजित हुए थे। इसी हार के बाद उन्होंने घोर तपस्या की और महान ऋषि बने। माना जाता है कि विश्वामित्र जिस जगह पर तपस्या करते उस स्थान पर स्वर्ग जैसा माहौल बन जाता था।

कण्व : यह वैदिक काल के ऋषि माने जाते हैं। मान्यता है कि इन्हीं के आश्रम में राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके बेटे भरत का पालन-पोषण हुआ था। इसी भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत है।अब सरकार ने भारत को चमकते हुए सितारे के समान वैश्विक स्तर पर अपनी ताकत बढ़ाने के लिए योजनाएं बनाई हैं।

भारद्वाज: इनके बारे में कहा जाता है कि यह रामायण काल से भी पहले ऋषि रहे हैं। हालांकि ऐसा भी कहा जाता है कि श्रीराम वनवास के वक्त भारद्वाज ऋषि के आश्रम में कुछ दिन रुके थे। भारतीय समाज में भारद्वाज ऋषि का उच्च स्थान माना जाता है। इनके बारे में कहा जाता है कि इन्होंने ‘यन्त्र-सर्वस्व’ नामक बृहद् ग्रन्थ की रचना की थी। सरकार ने अपने कामगारों को विश्वकर्मा मानते हुए

अत्रि : अत्रि ऋषि किसानों के गुरु माने जाते हैं। मान्यता है कि इस देश में कृषि कार्य शुरू करने में अत्रि ऋषि का विशेष योगदान रहा है। मान्यता है कि ऋषि अत्रि पर अश्विनीकुमारों की विशेष कृपा थी। सरकार का हरित विकास पाइंट का आधार यही है और खेती, किसानी और किसानों के विकास की योजनाओं को आकार दिया गया है। बागवानी, डेयरी आदि की नई योजनाएं बजट में शामिल की गई हैं।

वामदेव : इस महान ऋषि के बारे में कहा जाता है कि इन्होंने भारतवर्ष को सामगान (गीत-संगीत) दिया है। यानी वामदेव ने इस देश को संस्कृति प्रदान की है। केंद्र सरकार ने पर्यटन को बढ़ावा देते हुए अपने देश को पहचाने जैसी योजनाएं बनाई हैं।

शौनक : शौनक ऋषि युवाओं के गुरु माने जाते हैं। इन्होंन शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए 10 हजार युवाओं को अपने सानिध्य में शिक्षित किया ताकि भारवर्ष के समाज में शिक्षा की अलख जग सके। सरकार ने भी युवाओं के लिए एमएसएमई को बढ़ावा देते हुए विशेष भत्ते, कौशल विकास व प्रशिक्षण का प्रावधान करते हुए योजनाएं तैयार की हैं। वहीं नए एकलव्य स्कूल खोलने की बजट में घोषणा की गई हैं।

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