सियासी तर्जुमा

कहाँ हो तुम मेरे जनसेवकों…!

कहाँ हो तुम  महान आत्माओं! दिवंगत शरीरों की हुतात्माएं (Soul) तुम्हें पुकारते-पुकारते इस दुनिया से कूच कर गयीं। मगर उन्हें अंतिम दम तक तुम नहीं दिखे। जबकि इससे पहले तक तुम सर्वत्र व्याप्त थे। प्रमुख सार्वजनिक स्थानों पर तुम्हारे बैनर/पोस्टर दिखते थे। जिनमें तुम्हारे अनन्य समर्थक तुम्हें ‘भैया’ ‘दीदी’ ‘भाभी’ ‘मुन्ना राजा’ या ‘दादा भैया’ जैसे संबोधन देते थे। नीचे तुम्हारे नाम के साथ लिखे स्लोगन्स के जरिये बताते थे कि तुम किस कदर समाजसेवा करने के लिए बिलबिला रहे हो। बस एक चुनाव का टिकट मिल जाए तो जीत के साथ ही तुम मतदाता की सेवा करने की अपनी ‘हवस’ को पूरा करने में जुट जाओगे। और फिर गलियों सहित ज़रा भी आड़ वाले स्थानों में तो इस दृश्य में जैसे चार चाँद लग जाते थे।

दीवार पर ऊपर चिपका पोस्टर पर तुम्हारा चेहरा शोहरत का रसपान  करता दिखता था और उसके ठीक नीचे की दीवार पर ‘यहां पेशाब करना मना है’ की पंक्तियों को ‘स्नान’ कराते लोगों की सतत एक के बाद एक मौजूदगी ये यकीन दिला देती थी कि तुम्हारे चेहरे की सर्वाधिक सुकून भरी विवरशिप (Vieweship) के लिए उससे बेहतर और कोई स्थान हो ही नहीं सकता। न जाने क्यों ये चलन सार्वजनिक शौचालयों (Public Toilet) तक  लागू नहीं किया गया। सोचिये, पूरे सुकून से हलके होते लोग वहाँ लगी आपकी तस्वीर देखकर और गहरी विचार प्रक्रिया में डूबने के सुख का भी अनुभव हासिल कर सकते थे। और फिर वहाँ तो तुम्हारे पोस्टर के नीचे ‘यहां  मल/मूत्र का त्याग करना वर्जित है’ भी नहीं लिखा होता। यानी थोथे दावों और मिथ्या  भावों से भरे पोस्टरों के बावजूद आप पर पीछे बताये गए ‘त्याग’ से संबंधित प्रतिबंधों  के उल्लंघन का आरोप  नहीं लगता।





मेरी राय में सार्वजनिक शौचालयों के ‘बैठक कक्षों’ का बहुत छोटा आकार इस प्रयोग की शुरूआत होने में सबसे  बड़ी बाधा है । क्योंकि उनकी बेहद सकरी दीवार में आपके विराट व्यक्तित्व को दर्शाता आपका छायाचित्र भला किस  तरह समा पाएगा। खैर, हालात सुधरने दीजिये। फिर इस  दिशा में भी हम क्रांतिकारी बदलाव कर देंगे। व्यवस्था ने श्मशान स्थलों में कम  जगह में ज्यादा मुर्दे जलाने का बंदोबस्त कर दिया है। अस्पतालों में बिस्तरों की बीमार संख्या के मुकाबले बहुत अधिक मरीजों को दाखिल करने का कीर्तिमान पहले ही बनाया  जा चुका है। कोरोना (Corona) निपट जाने दीजिये, इसे तरह का विस्तारवादी प्रयोग सार्वजनिक शौचालयों की दीवारों के लिए भी लागू कर  दिया जाएगा।

हाँ तो कोरोना से याद  आया कि आप सभी की बहुत याद आ रही है। मगर आप हैं कि कहीं दिखते ही नहीं। उस भीड़ में नहीं, जो कोरोना के इस भीषण काल  में भी अपनी जान पर खेलकर लोगों की मदद कर रहे हैं. आप उन कोरोना वारियर्स या चिकित्सा स्टाफ के आसपास तक नहीं दिख रहे, जिन्होंने वैश्विक महामारी के इस दौर में भी अपने भीतर के सेवा भाव को ईमानदारी के साथ ज़िंदा रखा है। जबकि इससे पहले तो आप हर कभी और हर कहीं दिख जाते थे। कोई छोटे से लेकर बड़ा चुनाव नजदीक आया और आप ‘मौसमी’ कुकुरमुत्तों की तरह बैनर/पोस्टर पर लोगों को दर्शन देने लगते थे। इस मामले में आपकी सक्रियता ने तो लाला रामस्वरूप रामनारायण एंड संस (Lala Ramswaroop Ramnarain and Sons) वालों को भी पीछे छोड़ रखा था। वो बेचारे तो कैलेंडर की एक तारीख पर  किसी एक ही पर्व की जानकारी दे पाते हैं और तुम हो कि एक ही पोस्टर पर ईद (Eid) से लेकर दीपावली (Deepawali) और क्रिसमस (Christmas) तक की बधाइयाँ ‘लुटाते’ चले जाते हो।





मगर कई दिन से तुम्हारी कोई खबर नहीं है। तुम किसी गलीनुमा स्थान पर किसी धार्मिक आयोजन के मुख्य अतिथि बने हुए भी नहीं नजर आ रहे हो। जनता की सेवा की विशिष्ट ‘सुलगन’ तो तुम्हारा पीछा छोड़ने से रही तो फिर ऐसा क्या हुआ है कि तुम कोरोना से सुलगते जिस्मों और बिलखती आँखों की तरफ से आँखें मूंदकर कर बैठ गए हो? आओ ना सेवा करने के लिए। अस्पतालों में बिस्तर सहित ऑक्सीजन (Oxygen) और दवाएं नहीं हैं। मुर्दों को दफनाने सहित उनके दाह संस्कार के भी इंतजाम कम पड़ने लग गए हैं। संक्रमण के डर से हजारों शवों को कांधा तो दूर, दो बूँद आंसू तक नसीब नहीं हो पा रहे।

सोशल मीडिया पर किसी के जन्मदिन के लिए डाली गयी उसकी तस्वीर देखकर भी कई लोग झोंके में ‘आरआईपी’ (RIP) लिखने लग गए हैं। ये सब हो रहा है, मगर तुम्हारा होना नहीं हो पा रहा है। अब आ भी जाओ। समाज को तुम्हारी लत लग चुकी है। कोरोना काल में जनता को अपनी सच्ची सेवा करने के लिए आने वालों से एलर्जी होने लगी है। वह तुम्हारे नकलीपन, फरेब और मक्कारी की अफीम चाटकर कोरोना के डर से परे नशे में डूब जाना चाहती है। तुम वापस आ जो कि जलती चिताओं के पास श्रद्धांजलि सभा की ‘अध्यक्षता’ करने वाले तुम्हारे हुनर की बहुत कमी महसूस हो रही है। और कुछ नहीं तो कम से कम कोरोना प्रभावितों के घर के बाहर अपने वो पोस्टर ही लगवा दो। अस्पतालों और अंतिम कर्म स्थलों के बाहर भी ऐसा ही कर दो। कम से कम ऐसा तो कर दो। ताकि लोगों के बीच यह विश्वास गाढ़ा हो जाए कि यदि उसने अपने आसपास तुम्हारी उपस्थिति के बावजूद सुरक्षित रहने वाली एंटीबाडी विकसित कर ली है तो फिर कोरोना का वायरस उनका भला क्या बिगाड़ लेगा।

 

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