
नज़रिया : समान नागरिक संहिता को लेकर इस वक्त देशभर में बहस चल रही है। खास तौर से मुस्लिम भाई-बंधु इस कानून को लेकर अपना विरोध दर्ज करा रहे है। माना जा रहा है कि संसद के मानसून सत्र में इस बिल को सरकार द्वारा पेश किया जा सकता है। इन सबके बीच अब भी मुस्लिम समुदाय का बहुत बड़ा हिस्सा इस कानून के विरोध में है। जबकि देश में समान नागरिक संहिता लागू होने से सबसे ज्यादा फायदा मुस्लिम समुदाय के लोगों को ही होगा। खास तौर से उन महिलाओं को जिनके शौहर उनके जिंदा रहने और शादी के बंधन में बंधे होने के बावजूद दूसरा निकाह कर लेते है। ऐसी महिलाओं को समान नागरिक संहिता के लागू होने से बहुत बड़ा लाभ मिलेगा।
मप्र दौरे पर पीएम ने किया यूसीसी का जिक्र
देश के प्रधानमंत्री ने हाल ही में मध्यप्रदेश दौरे के दौरान भी यूसीसी का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था कि देश एक है,लेकिन कानून धर्म के आधार पर अलग-अलग है। उन्होंने तंजिया लहजे में ये भी कहा था कि घर में अलग-अलग सदस्यों के लिए अलग-अलग कानून होंगे क्या? उनके मप्र में यूसीसी का जिक्र करने का बहुत कारण ये था कि 1985 में शाहबानो केस के विवादित समस्या का हल यूसीसी ही था,लेकिन अफसोस हमारे देश में आज भी धर्म के आधार पर कानूनों का बंटवारा हो रखा है। जिसकी वजह से मुस्लिम महिलाओं को समान सम्मान और अधिकार नहीं मिल पा रहा है।
क्या है शाहबानो केस का इतिहास?
दरअसल मध्य प्रदेश के इंदौर की रहने वाली शाहबानो का निकाह इंदौर के मोहम्मद अहमद खान से हुआ था जो जाने माने वकील थे। शाहबानो के साथ खुशहाल शादी में रहने और 5 बच्चे होने के बावजूद अहमद ने दूसरी निकाह कर लिया और शाहबानो को घर से बाहर निकाल दिया। हालांकि शुरुआत में अहमद खान ने शाहबानो को गुजारे के लिए कुछ पैसे दिए थे,लेकिन बाद में उसने गुजारा भत्ता देना बंद कर दिया। जिसके चलते शाहबानो ने नियमित गुजारे भत्ते के लिए केस दायर किया। इसके बाद अहमद ने शाहबानो को तलाक दिया और मेहर की रकम देकर गुजारा भत्ता देने से इन्कार कर दिया। बाद में शाहबानो ने मजिस्ट्रेट कोर्ट में बानो के पक्ष में निर्णय दिया, लेकिन रकम महज 20 रुपये तय की। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में मामला पहुंचा तो गुजारे की रकम 179 रुपये तय हुई। इसके बाद अहमद खान ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। मामला संविधान पीठ तक पहुंचा। जिसकी अगुवाई तत्कालीन सीजेआई वाई वी चंद्रचूड़ कर रहे थे। उन्होंने हाईकोर्ट के फैसले पर मोहर लगाते हुए समान नागरिक संहिता का जिक्र किया था। उस समय शाहबानो केस का फैसला सुनाते वक्त तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया वाई वी चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने यूसीसी लागू न होने पर अफसास जताया था। उस समय पीठ ने सरकार से इस दिशा में कदम बढ़ाने की अपील की थी।
क्या है समान नागरिक संहिता
समान नागरिक संहिता में सभी धर्मों के लिए एक कानून की व्यवस्था होगी। हर धर्म का पर्सनल लॉ है। जिसमें शादी, तलाक और संपत्तियों के लिए अपने-अपने कानून हैं। UCC के लागू होने से सभी धर्मों में रहने वालों लोगों के मामले सिविल नियमों से ही निपटाए जाएंगे। UCC का अर्थ शादी, तलाक, गोद लेने, उत्तराधिकार और संपत्ति का अधिकार से जुड़े कानूनों को सुव्यवस्थित करना होगा। समान नागरिक संहिता भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 का हिस्सा है। संविधान में इसे नीति निदेशक तत्व में शामिल किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना सरकार का दायित्व है। अनुच्छेद 44 उत्तराधिकार, संपत्ति अधिकार, शादी, तलाक और बच्चे की कस्टडी के बारे में समान कानून की अवधारणा पर आधारित है।