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श्री कृष्ण के जन्म का खीरे से क्या है संबंध ,खीरे के बिना क्यों अधूरी रहेगी कृष्ण जन्माष्टमी

भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है। जन्माष्टमी के दिन खीरे का बड़ा महत्व होता है। खीरे के बिना जन्माष्टमी की पूजा अधूरी होती है। बता दें कि भगवान श्री कृष्ण को भगवान विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है। श्री कृष्ण का जन्मोत्सव भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में मनाया जाता है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व कल यानी 30 अगस्त 2021 को पूरे देश के साथ विदेशों में भी मनाया जाएगा। यह पर्व हिंदू धर्म के अनुयायियों में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वैसे तो हर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत महत्वपूर्ण होता है। परंतु इस बार जन्माष्टमी पर 101 साल बाद महा संयोग एवं 27 साल बाद जयंती योग बन रहा है. ऐसे में इस बार की जन्माष्टमी और अधिक महत्वपूर्ण हो गयी है।

खीरे के बिना जन्माष्टमी की पूजा क्यों रहती है अधूरी
मान्यता है कि खीरे से भगवान श्री कृष्ण बहुत प्रसन्न होते हैं। खीरा चढ़ाने से नंदलाल भक्तों के सारे कष्ट हर लेते हैं। जन्माष्टमी की पूजा में उस खीरे का उपयोग किया जाता है जिसमें डंठल और हल्की सी पत्तियां भी लगी हो।

मान्यता है कि जब बच्चा पैदा होता है तब उसको मां से अलग करने के लिए गर्भनाल को काटा जाता है। ठीक उसी प्रकार से खीरे को डंठल से काटकर अलग किया जाता है। यह भगवान श्री कृष्ण को मां देवकी से अलग करने का प्रतीक माना जाता है। यह करने के बाद ही भगवान श्री कृष्ण की विधि विधान से पूजा शुरू की जाती है।

क्यों लाना चाहिए इस तरह का खीरा
इस दिन खीरे का कीमत कई गुना ज्यादा होती है। इसके साथ ही आपने देखा होगा कि खीरे के साथ थोड़ा सा डंठल होती है। मान्यताओं के अनुसार, जन्मोत्सव के समय इसे काटना शुभ माना जाता है। अब आपके दिमाग में घूम रहा होगा कि आखिर खीरे को काटना क्यों शुभ माना जाता है। हम आपको बता दें कि जिस तरह एक मां की कोख से बच्चे के जन्म के बाद मां से अलग करने के लिए ‘गर्भनाल’ को काटा जाता है। उसी तरह खीरे और उससे जुड़े डंठल को ‘गर्भनाल’ माना काटा जाता है जोकि कृष्ण को मां देवकी से अलग करने के लिए काटे जाने का प्रतीक है।

कैसे करें भगवान श्री कृष्ण की खीरे संग पूजा
सबसे पहले तो आप बाजार जाएं और खीरा ले आएं। उसको अच्छी तरह से धो लें। पूजा करने के समय उसको कृष्ण जी के पास रखें। रात के 12 बजते ही खीरे के डंठल को किसी भी सिक्के से काटें। इसके बाद पूरे 3 बार शंक जरूर बजाएं।

ऐसे करें नाल छेदन
खीरे को काटने की प्रकिया को नाल छेदन के नाम से जाना है। इस दिन खीरा लाकर कान्हा के झूले या फिर भगवान कृष्ण के पास रख दें। जैसे ही 12 बजें यानी भगवान कृष्ण का जन्म हो, उसके तुरंत बाद एक सिक्के की मदद से खीरा औऱ डंठल को बीच से काट दें। इसके बाद शंख जरूर बजाए।

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