नज़रिया

ऐसी भी क्या मोहब्बत, जो छोड़ी न जाए ?

प्रयोग में हिस्सा लेने वाले 23 लोगों ने 25 मिनट के भीतर ही अपना मोबाइल चेक किया था। जब उनसे पूछा गया कि इतना क्या महत्वपूर्ण था जो वो खुद को 25 मिनट तक मोबाइल से दूर नहीं रख सकें और प्रयोग के समय उन्होंने मोबाइल में ऐसा क्या देखा। तो जवाब चौंकाने वाला था मोबाइल देखने वालों ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं था वो बस चेक कर रहे थे

उज्जैन के बड़नगर में एक बुजुर्ग किसान के ब्लास्ट में चिथड़े उड़ गए। ऐसी जानकारी मिली है कि चार्जिंग पर लगे मोबाइल के फटने से उनकी जान चली गई। किसान के शव को देखकर पुलिस ने कहा कि ये पहली बार मोबाइल ब्लास्ट के चलते लाश की ऐसी हालत देखी है। मोबाइल आज के समय की सबसे बड़ी जरूरत बन गया है। लेकिन इसके साथ ही मोबाइल के उपयोगकर्ता को उसी मोबाइल से जुड़े खतरों के बारे में भी पता होना चाहिए। जिसके साथ वो अपना हर दिन गुजरता है। इस खतरनाक मोबाइल में वो हर जानकारी मौजूद है जिसे आप किसी दूसरे के साथ साझा नहीं करना चाहते हैं। मोबाइल की वजह से रिश्ते टूट रहे हैं। बच्चों की आँखों पर लगे भारी भरकम चश्मे लगातार मोबाइल देखने के कारण लगे हुए हैं। मोबाइल के साइबर क्राइम की दर लगातार बढ़ती जा रही है। लेकिन इस सबके बाद भी मोबाइल हाथ से छूटने का नाम नहीं लेता है। लोग मोबाइल की आदत छोड़ने के वीडियो भी मोबाइल पर ही देख रहे हैं। क्या बच्चे, क्या जवान और क्या बुजुर्ग हर किसी की आदत बन चुका है, ये जानलेवा मोबाइल। जानसेवा इसलिए क्योंकि उज्जैन के बड़नगर में एक बुजुर्ग किसान के ब्लास्ट में चिथड़े उड़ गए। इस खबर को पढ़ने – देखने के बाद जरूर लोगों ने मोबाइल का विकल्प तलाश करने की कोशिश नहीं की होगी। जबकि उसी मोबाइल में इस बात को सर्च जरूर किया होगा कि मोबाइल क्यों फटता है? मोबाइल क्यों गर्म होता है? मोबाइल चार्ज करते समय क्यों बात नहीं करनी चाहिए?

 

उज्जैन के बड़नगर में हुई घटना जैसी घटनाएं पहले भी देश में हो चुकी है। लेकिन सवाल है कि ऐसी कौन सी वो जरुरी बात होती है। जो कुछ देर बाद नहीं हो सकती है। ऐसा क्या है जिसे कुछ देर बाद नहीं देखा जा सकता है। ऐसा क्या है जो नींद न आने का बहाना बनाकर अंधेरे में मोबाइल पर देखा जा रहा है। फिर कहा जाता है कि मुझे नींद नहीं आती है, इसलिए मोबाइल चलाता हूँ। क्यों माता पिता उन मासूम बच्चों के नन्हें हाथों में मोबाइल थमा देते है। जिन्हें मोबाइल चलाना तक नहीं आता है। फिर जब वो बच्चा मोबाइल चलाना सीख जाता है। तो फिर उसे इसलिए मारते हैं क्योंकि वो उनकी बात नहीं सुनता है। आज के समय में चाहें वो ट्रेन हो, कार हो, सार्वजनिक कार्यक्रम हो फिर घर ही क्यों न हो। मोबाइल अघोषित रूप से परिवार का अनचाहा सदस्य बन गया है, जो आप के लिए बेहद जरुरी है फिर चाहें उसे घर में रखने की कीमत किसी व्यक्ति की जान ही क्यों न हो।

एक निजी कंपनी ने मोबाइल की आदतों को जानने के लिए एक प्रयोग किया था। उस कंपनी ने 25 लोगों का एक ग्रुप बनाकर उसके सभी सदस्यों से कहा कि वे केवल 25 मिनट तक अपने मोबाइल को एक टेबल पर सामने रख दें और बेहद जरुरी होने पर ही मोबाइल को चेक करें। इस प्रयोग में हिस्सा लेने वाले 23 लोगों ने 25 मिनट के भीतर ही अपना मोबाइल चेक किया था। जब उनसे पूछा गया कि इतना क्या महत्वपूर्ण था जो वो खुद को 25 मिनट तक मोबाइल से दूर नहीं रख सकें और प्रयोग के समय उन्होंने मोबाइल में ऐसा क्या देखा। तो जवाब चौंकाने वाला था मोबाइल देखने वालों ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं था वो बस चेक कर रहे थे कि कोई मैसेज तो नहीं आया। कंपनी के द्वारा किया गया यह प्रयोग बता रहे हैं कि हम मोबाइल के कितने आदी हो चुके हैं। एक दौर था जब घरों में लैंडलाइन फोन होते थे उसके साइड में फोन की घंटी की आवाज कम या ज्यादा करने का बटन होता था। जब कई दिनों तक फोन की घंटी नहीं बजती थी तब उसे चेक किया जाता था। लेकिन आज तो मोबाइल हाथ में रहता है उसके बाद हर मिनट में मोबाइल को चेक कर जानने की कोशिश रहती है कि कोई मैसेज या फोन तो नहीं आया।

उज्जैन के बड़नगर जैसी घटनाएं पहले भी कई बार हो चुकी हैं। लेकिन उसके बाद भी मोबाइल कंपनियां धड़ाधड़ नए मॉडल लांच कर रही हैं। क्योंकि वे जानती है कि उनके मोबाइलों का खरीददार बाजार में मौजूद है। जो व्यक्ति पढ़ नहीं सकता है तकनीक ने उसे भी मोबाइल का उपयोग करना सिखा दिया है। मोबाइल आज परिवार से ज्यादा जरुरी हो गया है। रोज इस तरह की खबरें आती हैं कि मोबाइल नहीं दिया तो बच्चे ने फांसी लगा ली। सवाल यह है कि ऐसा मोबाइल में है ऐसा क्या है? जो सुबह उठने से लेकर रात में सोने के पहले तक जरुरी है। मोबाइल से ऐसी क्या मोहब्बत है जो छोड़ी नहीं जाती है। सवाल तो कई हो सकते हैं लेकिन जवाब किसी के पास नहीं है। लेकिन जवाब को ढूंढना जरुरी है। वक़्त रहते इस मोबाइल बम का उपयोग करने का तरीका नहीं बदला गया तो बड़नगर जैसी घटनाएं होती रहेगी और हम मोबाइल छोड़ने की तरीकों को भी मोबाइल पर देखते रहेंगे

वैभव गुप्ता

वैभव गुप्ता मध्यप्रदेश की पत्रकारिता में जाना-पहचाना नाम हैं। मूलतः ग्वालियर निवासी गुप्ता ने भोपाल को अपनी कर्मस्थली बनाया और एक दशक से अधिक समय से यहां अनेक प्रतिष्ठित संस्थानों में उल्लेखनीय सेवाएं दी हैं। वैभव गुप्ता राजनीतिक तथा सामाजिक मुद्दों पर भी नियमित रूप से लेखन कर रहे हैं।

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