धर्म

क्या है खरमास,इसका नाम क्यों पड़ा खरमास,पढ़ें यह पौराणिक कथा

सूर्य जब गुरु की राशि धनु या मीन में भ्रमण करते हैं तो इस समय को खरमास कहा जाता है। हर वर्ष खरमास लगता है तो मांगलिक कार्यों पर पाबंदी लग जाती है। इस वर्ष धनु सं​क्रांति (Dhanu Sankranti) 16 दिसंबर से शुरु हो रही है, इसके साथ ही खरमास भी एक माह के लिए लग जाएगाशास्त्रों के मुताबिक इस समय काल में व्यक्ति को अपना अधिक से अधिक आध्यात्म में लगाना चाहिए. खरमास में सूर्य देव (Surya Dev) की गति धीमी हो जाएगी, जिससे उनका प्रभाव भी कम हो जाता है। आज आपको बताते हैं कि खरमास का नामकरण कैसे हुआ? इसे खर मास ही क्यों कहते हैं? इससे जुड़ी सूर्य देव की एक पौराणिक कथा है, जिसमें इसका वर्णन मिलता है।

क्या है ये खरमास?

खरमास को खर मास कहने के पीछे भी पौराणिक कथा है। खर का तात्पर्य गधे से है।। सीधे-सीधे कहें, तो अप्रिय महीना। इस माह में महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत सूर्य निस्तेज और क्षीणप्राय हो जाता है। सूर्य 16 दिसंबर को जब वृश्चिक राशि की यात्रा समाप्त करके धनु राशि में लंगर डालेंगे, खरमास का आगाज होगा। अनोखी बात यह है कि देवगुरु बृहस्पति की राशि धनु या मीन में जब सूर्य चरण रखते हैं, वह काल खंड सृष्टि के लिए सोचनीय हो जाता है। यह जीव और जीवन के लिए उत्तम नहीं माना जाता। शुभ कार्य इस काल में वर्जित कहे जाते हैं, क्योंकि धनु बृहस्पति की आग्नेय राशि है। इसमें सूर्य का प्रवेश विचित्र, अप्रिय, अप्रत्याशित परिणाम का सबब बनता है। अंतर्मन में नकरात्मकता प्रस्फुटित होने लगती है।

खरमास का नाम कैसे पड़ा इसके पीछे भी कई कथाएं प्रचलित हैं. एक कथा के अनुसार खर का अर्थ गर्दभ यानी गधे से है। सूर्य अपने सात घोड़ों पर सवार रहते हैं। ये घोड़े कभी रुकते नहीं है। लगातार दौड़ते रहते हैं। लेकिन सूर्य के ये सातों घोडे़। हेमंत ऋतु में जब थकने लगते हैं तो एक तालाब के निकट रुक जाते हैं। लेकिन जैसे ही जल पीने के लिए रुकते हैं तभी उन्हें अपनी जिम्मेदारी याद आ जाती है कि उन्हें तो रुकना ही नहीं है। क्योंकि अगर वे रूक जाएंगे तो सृष्टि पर कोई संकट न आए. इसलिए सूर्य भगवान तालाब के पास खड़े दो गधों को रथ में जोड़ देते हैं और यात्रा जारी रखते हैं।

खरमास की पौराणिक मान्यताएं
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस महीने में सूर्य के रथ के साथ महापद्म और कर्कोटक नाम के दो नाग, आप तथा वात नामक दो राक्षस, तार्क्ष्य एवं अरिष्टनेमि नामक दो यक्ष, अंशु व भग नाम के दो आदित्य, चित्रांगद और अरणायु नामक दो गन्धर्व, सहा तथा सहस्या नाम की दो अप्सराएं और क्रतु व कश्यप नामक दो ऋषि संग संग चलते हैं।

खर मास में करें इस मंत्र का जाप
धर्म ग्रंथों में ऐसे कई श्लोक भी बताए गए हैं जिनका जाप खर मास में किया जाए तो पुण्य मिलता है। प्राचीन काल में श्रीकौण्डिन्य ऋषि ने यह मंत्र बताया था। मंत्र जाप किस प्रकार करें इसके बारे में भी बताया गया है। मंत्र जाप करते समय विष्णु भगवान का ध्यान करना चाहिए। ऐसा ध्यान करना चाहिए कि वो नवीन और मेघ के समान श्याम हैं। वो दो भुजधारी हैं। पीले वस्त्र पहने हुए हैं और बांसुरी बजा रहे हैं। श्रीराधिकाजी के सहित ऐसे श्रीपुरुषोत्तम भगवान का ध्यान करना चाहिए।

 

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