आखिर ये लोग क्या चाहते हैं?
ये मामला जैसा दिख रहा है, वैसा नहीं है। अक्सर कोई बात जल्दी ही उसके शुरुआती और मूल स्वरूप से एकदम ही पूरी तरह बदल जाती है। फिर यदि स्थिति किसी उद्देश्य के साथ किये गए परिवर्तन की हो, बल्कि षड़यंत्र (Conspiracy) के तहत पैदा किये गए किसी बदलाव की हो तो विषय बहुत संगीन हो जाता है।
सागर जिले के नरयावली (Narywali of Sagar District) में क्या हुआ था और अब क्या हो रहा है, यह भी शुरू में की गयी बात के जैसा ही गंभीर मामला है। हत्या (Murder) के एक मामले में आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की गयी। यह इस घटनाक्रम का मूल और आरंभिक स्वरूप था। लेकिन बाद में स्थिति स-प्रयास नहीं, बल्कि स-साजिशन बदल दी गयी। ये सब इतना गड्डमगड्ड कर दिया गया कि एक पल को तो इस पर कुछ तथ्यात्मक लिखना भी मुश्किल जान पड़ता है। क्योंकि ये उलझन पैदा कर दी गयी है कि किसी युवक को जिन्दा जलाकर मार देने वालों को उनका नाम लेकर उनकी शिनाख्त करें या फिर केवल यह पहचान बतायें कि वह सभी ब्राह्मण (Brahmin) हैं। इस के बाद पुलिस ने जो कुछ किया, उसे न्याय-व्यवस्था का मामला कहें अथवा जाति-व्यवस्था से जोड़ कर देखें? वैसे तो इस तरह के भ्रम की कोई स्थिति थी ही नहीं। प्रेम संबंधों से नाराज एक परिवार ने एक युवक पर पेट्रोल छिड़ककर उसे जिन्दा जला दिया। पीड़ित ने मृत्यु-पूर्व बयान में जिन लोगों के नाम लिए, सभी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। मामला जघन्य था। मृतक के परिजन आपा खो बैठे। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि आरोपियों के मकान नहीं ढहाए गए तो वे अपने परिजन का अंतिम संस्कार नहीं करेंगे।
स्थिति नियंत्रण से बाहर होने का पूरा खतरा था। इधर, नाराज पक्ष की आरोपियों के मकान तोड़ने की मांग भी अस्वाभाविक नहीं थी। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) ने आपराधिक तत्वों की कमर तोड़ने के लिए उनके अवैध निर्माण ढहाने का अभियान चला रखा है।
लेकिन अब मामला कहीं से कहीं पहुंचा दिया गया है। यकायक कुछ ऐसा किया गया कि राज्य सरकार को ब्राह्मण-विरोधी बताकर आरोपियों के खिलाफ की गयी कानूनी कार्रवाई को ही गलत ठहराया जाने लगा है। इस फ़ितरत को ज़रा गौर से समझने की जरूरत है। जिन्दा जलाकर मार दिया गया युवक पिछड़े वर्ग (Backward class) से था। मरने से पहले उसने जिन लोगों के नाम बताये, वह सभी ब्राह्मण वर्ग के हैं। अब अवैध निर्माण तोड़ने के खिलाफ दो दिन पहले हुए प्रदर्शन की फितरत को समझिये। इसमें जो नारे लगे (जिनमें से ज्यादातर नारे लगवाए गए) उनमें यही धमकी छिपी हुई थी कि हत्या जैसे संगीन मामले में भी किसी ब्राह्मण के खिलाफ यदि कार्रवाई हुई तो उसे सहन नहीं किया जाएगा। कहीं न कहीं इन नारों के नेपथ्य में यह उलाहना भी सुनाई देता है कि खासकर यदि ब्राह्मण आरोपियों का शिकार कोई शोषित-वंचित वर्ग का हो, तब तो उनके विरुद्ध कार्रवाई की बात तक सोची नहीं जाना चाहिए।
यह प्रदर्शन मानसिक जहालत का राजनीतिक फायदा उठाने का एक बड़ा दुखद उदाहरण है। यदि जाति को किसी अपराध की गंभीरता को कम अथवा ज्यादा आंकने का पैमाना मान लिया जाए तो फिर मानव सभ्यता का आज तक का सफर निरर्थक माना जाना चाहिए। निश्चित ही यह देश महात्मा गांधी (Mahatama Gandhi) जी की ‘पाप से घृणा करो, पापी से नहीं’ वाली अवधारणा का अनुयायी है, किन्तु गांधी जी ने यह तो नहीं कहा था कि ‘जाति से घृणा करो, पापी से नहीं।’
शिवराज सिंह चौहान मामले की सीबीआई (CBI) जांच के आदेश दे चुके हैं। मृतक के मृत्यु पूर्व बयान में बताये गए नामों के अनुसार ही आरोपियों को पकड़ा गया है। इस सबके बाद किसी विरोध की आखिर क्या गुंजाइश रह जाती है! लेकिन राजनीतिक लाभ उठाने की गुंजाइश तो हर कहीं रहती है। ऐसा ही यहां भी हो रहा है। एक जाति विशेष को एक अन्य जाति विशेष के नाम पर गलत तरीके से भड़काकर पूरे समाज की शांति के साथ ज्यादती करने जैसा घृणित जतन किया जा रहा है। आखिर ये लोग क्या चाहते हैं?