सियासी तर्जुमा

हमें तो अपनों ने मारा, हमने तो अपनों को मारा…

इन दिनों इंदौर

गपसच

ललित उपमन्यु

 ऐसी ही कुछ शेर-शायरी है मरने-मारने की। पर इधर हिंसा नहीं हो रही, तिकड़म हो रही है। कहानी देपालपुर विधानसभा की है। बार-बार लड़ने और हारते-जीतते रहने वाले पुराने भाजपा विधायक मनोज पटेल फिर टिकट की तरफ टकटकी लगाए बैठे हैं। पटेल इस बार नहीं टिक पाएं इसलिए देपालपुर में दूसरे, तीसरे..चौथे और न जाने कितने गुट तैयार हो गए हैं। टिकट दो..टिकट दो..। साथ में पुछल्ला जोड़ दिया है लोकल को दो..। इस बार शहरी नहीं मंगता..समझा क्या..। बस इसी की ले-दे मची हुई है और जो होर्डिंग-पोस्टर हटाने, फाड़ने, नाम-फोटू गायब करने से लेकर एक-दूसरे को थाना-कचहरी में उलझाने तक पहुँच गई। ना..जी..ना..। काँग्रेसी कुछ नहीं कर रहे वहाँ तो विशाल बाबू इकलौते हैं, ये पराक्रम तो भाजपाई ही आपस में कर रहे हैं। बोले तो…टिकट की बहुत मारा-मारी है भाई इस बार बड़े गाँव में।

दे-दे..समाज के नाम पर दे दे

 कांग्रेस के सबसे अल्प अवधि के शहर अध्यक्ष अरविंद बागड़ी जिस तरह से बनते ही रोके गए हैं उसके बाद कांग्रेस में उनके समर्थकों से ज्यादा समाज वालों में गुस्सा है। पहले ये गुस्सा बागड़ी की अध्यक्ष की कुर्सी के आसपास बागड़ खींचने को लेकर निकला। वहाँ मामला फाइल में दबते ही कहानी तीन नंबर विधानसभा पर आकर अटक गई है। बागड़ी के टूटे दिल वाले समर्थक कह रहे हैं अध्यक्ष नहीं तो तीन नंबर से टिकट-विकट का ही सोच लो। इस कहे के पीछे वजन यह है कि तीन नंबर का बड़ा हिस्सा वैश्य समाज से होकर गुजरता है..बोले तो सपना-संगीता से लेकर पालदा तक। बाकी कांग्रेस का पक्का वोट तो है ही। अरे, बागड़ी एंड कंपनी जी..। सारे वैश्य आप ही ले जाओगे तो वो चटकीले और मासूम विधायक आकाश विजयवर्गीय क्या लूडो खेलेंगे। घर-घर तक पहुँच गए है चार साल में। अभी आठ महीने बाकी हैं। सोच लो।

 तोमर के घर में सिंधिया

 ना-ना..ग्वालियर में नहीं, इंदौर में। सुना तो होगा ही कि एक नंबर के दो बारी भाजपा विधायक और इस बार अटक गए सुदर्शन गुप्ता के तार ग्वालियरी बड़े नेता और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर तक पहुँचते हैं। ये भी सुना होगा कि ग्वालियर वाले ही बड़े नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और तोमर के रिश्तों में गर्मजोशी आती-जाती रहती है, तो फिर तोमर के टीमधारी गुप्ता के क्षेत्र में सिंधिया क्या कर रहे थे। जी.., दो दिन पहले सिंधिया एक नंबर विधानसभा में कामों के पत्थर गाड़ गए हैं..हार-फूल भी हो गए हैं। कहने वाले कह रहे हैं इसके पीछे सिंधिया के इंदौर हनुमान तुलसी सिलावट का हाथ है। हाथ हो के दिमाग हो..जो हुआ अच्छा हुआ। सिंधिया ने जिस तरह भाजपा में आने के बाद अपनी कदमताल बदली है, उसके बाद तो ऐसे नजारे आम हो गए हैं। ये सिंधियाजी और भाजपा दोनों के लिए गुणकारी औषधि है। वैसे भी सिंधिया सारे गुटों से पार के नेता हैं। जनता के नेता। यहाँ जाएं कि वहाँ जाए,..जलवा बरकरार रहता है।

दो दिल मिल रहे हैं, दिलों की भीड़ में…

 इस बार इंदौर में भाजपा-काँग्रेस के दो नेताओं में शादी का खूब मजमा जमा। भाजपा के राऊ वाले पुराने विधायक जीतू जिराती के साहबजादे की शादी का मजमा चले ही जा रहा है। 21 को अंजाम पर पहुँचेगा। लोकल में बुलावा राऊ, इंदौर शहर वालों को तो है ही, महू तक भी बड़ी पुकार पहुँची है। नेता की यही मुसीबत है, दिल से कुछ करे तो भी लोग कहते हैं कि दिमाग से काम लिया है। अरे महू में भी रिश्तेदारी है जी जीतू भैया की। काहे टिकट-टिकट कर रहे हो। वैसे भी वो इतने नर्म दिल और मीठी जुबां के हैं कि किसी को भी अपना बना लेते हैं, फिर ये तो बेटे की शादी है जी। मजमा तो बनता है। दूसरी शादी काँग्रेस नेता राजेश चौकसे के बेटे की रही। भाई ने बाने से लेकर बरात और खान-पान से लेकर ताम-झाम तक लंबी-चौड़ी श्रृंखला चलाकर बता दिया कि तीस साल की राजनीति में उन्होंने कितना बो रखा है। खूब मेहमान..खूब तारीफें..। राजनीति छोड़ों..। ये देखों कि दोनों नेताओं ने कितने सारों को अपना बना रखा है।

कुछ सुना क्या..

आम आदमी पार्टी प्रदेश की सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी । इधर के कटे टिकट. उधर टिकट लेकर मैदान में उतर सकते हैं। इस घोषणा का लब्बोलुआब यही है। तो हो जाएं तैयार। इधर से उधर होने के लिए।

 

 

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