कल है ईद-ए-मिलाद का पर्व,जानिए इस दिन का क्या है महत्व
ईद मिलादुन्नबी का त्यौहार 19 अक्टूबर को मनाया जाएगा। दुनियाभर में मिलाद उन-नबी (eid milad 2021) एक ऐसा त्योहार है जो इस्लाम के मानने वाले हर व्यक्ति के लिए खास महत्व रखता है.मान जाता है कि इस दिन ही इस्लाम के आखिरी पैगंबर हजरत मुहम्मद का जन्म हुआ था, और इसी दिन उनका इंतकाल भी हुआ था। ईद-ए-मिलाद-उन-नबी को रातभर दुआएं होती हैं और जुलूस भी निकाले जाते हैं।लोग मस्जिदों व घरों में पवित्र कुरान को पढ़ते हैं और नबी के बताए नेकी के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित होते हैं। पैगंबर हजरत मोहम्मद के जन्मदिवस पर घरों को तो सजाया ही जाता है, इसके साथ ही मस्जिदों में खास सजावट होती है। जकात इस्लाम में बेहद अहम माना जाता है। मान्यता है कि जरूरतमंद व निर्धन लोगों की मदद करने से अल्लाह प्रसन्न होते हैं।
हजरत मोहम्मद पूरी दुनिया में बसे मुसलमानों के लिए श्रद्धा का केंद्र
दरअसल, ईद मिलाद-उन-नबी (बारावफात) एक ऐसा त्योहार है जो इस्लाम को मानने वाले के लिए बेहद जरूरी है। इस्लामिक कैलेंडर के तीसरे महीने रबी अल-अव्वल की 12वीं तारीख, 571 ईं. के दिन पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब का जन्म हुआ था। ईद-ए-मिलाद-उन-नबी को दुनियाभर के मुसलमान बेहद खुशी के साथ मनाते हैं। इस दिन रातभर इबादत, दुआओं का सिलसिला रहता है और जुलूस निकाले जाते हैं। जाहिर है कि पैगम्बर हजरत मोहम्मद पूरी दुनिया में बसे मुसलमानों के लिए श्रद्धा का केंद्र हैं। इस दिन को ही ईद मिलाद-उन-नबी या फिर बारावफात कहा जाता है। मुस्लिम अपने पैगंबर के पवित्र वचनों को पढ़ते हैं और इन पर अमल करने का अहद करते हैं।
ईद मिलाद उन-नबी का इतिहास
कहा जाता है कि पैगंबर मोहम्मद साहब का जन्म मक्का में इस्लामिक कैलेंडर के तीसरे माह की 12वीं तारीख को हुआ था। उनके जन्मदिन को मिलाद उन-नबी के नाम से बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। पैगंबर मोहम्मद साहब का पूरा नाम पैगंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहुअ अलैही वसल्लम था। उनकी मां का नाम अमीना बीबी और पिता का नाम अब्दुलाह था। मान्यता है कि पैगंबर हजरत मोहम्मद ही थे जिन्हें अल्लाह ने सबसे पहले पवि. कुरान अता की थी। फिर पैगंबर साहब ने पवित्र कुरान का संदेश जन-जन तक पहुंचाया। हजरत मोहम्मद साहब का कहना था कि सबसे नेक इंसान वही है, जिसमें मानवता होती है।
ईद मिलाद उन-नबी का महत्व
पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के जन्मदिन को ईद मिलाद उन-नबी का के रूप में मनाया जाता है। ईद मिलाद उन-नबी के मौके पर रातभर प्राथनाएं होती हैं और जगह-जगह जुलूस भी निकाले जाते हैं। इस्लाम को मानने वाले इस दिन हजरत मोहम्मद के पवित्र वचनों को पढ़ते हैं। घरों में व मस्जिदों में कुरान पढ़ी जाती है। ईद मिलाद उन-नबी के मौके पर घर और मस्जिद को सजाया जाता है और मोहम्मद साहब के संदेशों को पढ़ा जाता है। साथ ही गरीबों में दान भी दिया जाता है। इस्लामिक धर्म के अनुसार मान्यता है कि ईद मिलाद उन-नबी के दिन दान और जकात जरूर करना चाहिए. ऐसा करने से अल्लाह खुश होते हैं।
ईद-ए-मिलाद का रिवाज़
ईद-ए-मिलाद के दिन इस्लाम के मानने वाले मस्जिदों में नमाज अता करते हैं और हजरत मुहम्मद की शिक्षाओं और उपदेशों को अमल लाने का संकल्प लेते हैं। इस दिन हरे रंग के घागे बांधने या कपड़े पहनने का भी रिवाज़ है। हरे रंग का इस्लाम में बहुत महत्व होता है। इसके साथ ही इस दिन पारंपरिक खाने बनाए जाते हैं और गरीबों में बांटे जाते हैं। शिया और बरेलवी समुदाय के लोग इस दिन जुलूस भी निकालते हैं और हजरत मुहम्मद की शिक्षाओं को तख्तियों पर लिख कर सारी दुनिया को उससे रूबरू कराते हैं। जबकि सुन्नी समुदाय में ये दिन बड़ी सादगी के साथ मनाया जाता है।