ज्योतिष

कल है शरद पूर्णिमा,जानें इस दिन क्‍यों बनाई जाती है खीर

हिंदू मान्यताओं के अनुसार अश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है।इस साल कल यानी 19 अक्टूबर 2021 के दिन शरद पूर्णिमा मनाई जाएगी। इससे कोजागरी और राज पूर्णिमा भी कहा जाता है।चंद्रमा यानी कल सोलह कलाओं से परिपूर्ण होकर अमृत बरसाएगा। मान्यता है कि इस दिन आसमान से अमृत की वर्षा होती है। इस दिन चंद्रमा की पूजा की जाती है. कहते हैं कि इस दिन से सर्दियों की शुरुआत हो जाती है. मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा धरती के सबसे करीब होता है। पूर्णिमा की रात चंद्रमा की दूधिया रोशनी धरती को नहलाती है। और इसी दूधिया रोशनी के बीच पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इस सफेद उजाले के बीच पूर्णिमा मनाई जाती है।हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस दिन का काफी महत्व है।  इस दिन खीर बनाई जाती है इसके पीछे की क्या वजह है ये हम आपको बताने जा रहे हैं।

ये है धार्मिक महत्व
इस दिन का धार्मिक महत्व भी काफी ज्यादा है। ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन ही मां लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी। इस धनदायक माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करने आती हैं। जो लोग इस दिन रात में मां लक्ष्मी का आह्वान करते हैं उन पर मां की विशेष कृपा रहती है। शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की चांदनी में अमृत की बरसात होती है। इन्हीं मान्यताओं के आधार पर ऐसी परंपरा बनाई गई कि शरद पूर्णिमा को खीर खुले आसमान में रखने पर उसमें अमृत समा जाता है।

शरद पूर्णिमा के दिन क्यों बनाते हैं खीर
शरद पूर्णिमा की रात को खीर बनाकर खुले आसमान में रखने की मान्यता है। इसके पीछे का तर्क है कि दूध में भरपूर मात्रा में लैक्टिक एसिड होता है। इस कारण चांद की चमकदार रोशनी दूध में पहले से मौजूद बैक्टिरिया को बढ़ाने में सहायक होती है। वहीं, खीर में पड़े चावल इस काम को और आसान बना देते हैं। चावलों में पाए जाने वाला स्टार्च इसमें मदद करते हैं। इसके साथ ही, कहते हैं कि चांदी के बर्तन में रोग-प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है।

खीर में आ जाते हैं औषधीय गुण-
शरद पूर्णिमा पर रात 10 बजे से 12 बजे तक चंद्रमा की किरणों का तेज अधिक रहता है। इस बीच खीर के बर्तन को खुले आसमान में रखना फलदायी होता है। खीर में औषधीय गुण आ जाते हैं और वह मन, मस्तिष्क व शरीर के लिए अत्यंत उपयोगी मानी जाती है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। सूर्य तुला राशि में नीचे होकर मेष राशि में स्थित चंद्रमा पर पूर्ण दृष्टि डालता है। इससे चंद्रमा को अधिक शक्ति मिलती है। चंद्र की शक्ति से मनुष्य को स्वास्थ्य लाभ होता है।

ऐसे की जाती है पूजा
शरद पूर्णिमा को चंद्रमा की पूजा करने का विधान भी है, जिसमें उन्हें पूजा के अन्त में अर्ध्य भी दिया जाता है। भोग भी भगवान को इसी मध्य रात्रि में लगाया जाता है। इसे परिवार के बीच में बांटकर खाया जाता है। सुबह स्नान-ध्यान-पूजा पाठ करने के बाद इसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। लक्ष्मी जी के भाई चंद्रमा इस रात पूजा-पाठ करने वालों को शीघ्रता से फल देते हैं। अगर शरीर साथ दे, तो अपने इष्टदेवता का उपवास जरूर करें। इस दिन की पूजा में कुलदेवी या कुलदेवता के साथ श्रीगणेश और चंद्रदेव की पूजा बहुत जरूरी मानी जाती है।

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