धर्म

महादेव को प्रसन्न करने के लिए करें ‘रुद्राष्टकम्’ का पाठ,हर मुराद होगी पूरी

शिव पुराण कथा के अनुसार शिव जी ऐसे भगवान हैं जो जल्द ही भक्तों पर प्रसन्न होकर उन्हें मनचाहा वर दे देते हैं। अगर आप भी भोलेनाथ को प्रसन्न करना चाहते हैं तो सोमवार को रुद्राष्टकम् का पाठ करें इसे करने से आपके सभी प्रकार के रोग-दोष, शत्रु और सकंट समाप्त हो जाते हैं। रुद्राष्टकम् का पाठ ऊर्जा और शक्ति का संचार करता है और मन को एकाग्रचित्त बनाता है जिससे बड़ी से बड़ी बाधा पार करना आसान हो जाता है। यदि आपको किसी शत्रु पर विजय प्राप्त करना हो तो लगातार 7 दिन किसी शिव मंदिर में कुशा के आसन पर बैठ कर रुद्राष्टकम् का पाठ करें। आपकी शत्रु विजय निश्चित है।

श्रीरामचरितमानस में कहा गया है कि भगवान श्रीराम ने त्रिलोक विजेता रावण से युद्ध करने से पहले रामेशवरम् में रुद्राष्टकम् गाकर भगवान शिव की स्तुति की थी. इसके बाद ही भगवान शिव के वरदान से उन्हें लंकापति रावण पर विजय की प्राप्ति हुई थी. रुद्राष्टकम् को भगवान शिव की स्तुति का सर्वोत्म उपाय माना जाता है. इसका पाठ सुनकर भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.

भगवान शिव का रुद्राष्टकम्

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं । विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ॥

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं । चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥1॥

निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं । गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।

करालं महाकालकालं कृपालं । गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥2॥

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं । मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ॥

स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा । लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥3॥

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं । प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ॥

मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं । प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ॥4॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं । अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ॥

त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं । भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥5॥

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी । सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ॥

चिदानन्दसंदोह मोहापहारी । प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥6॥

न यावद् उमानाथपादारविन्दं । भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।

न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं । प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥7॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां । नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ॥

जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं । प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥8॥

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ॥।

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