सियासी तर्जुमा

मगरूरियत छोड़ सच  को देखें प्रशांत 

चार लोगों का समूह। इनमें से दो का एक-एक पैर नहीं हो। बाकी के दो एक-एक हाथ खो चुके हों। ये चारों दावा करें कि एक-दूसरे की शारीरिक कमी पूरी करते हुए वे मिलकर एक अच्छे धावक बन जाएंगे। तो ऐसे दावे पर क्या हंसी नहीं आएगी? क्योंकि यहां एक अदद मुकम्मल जिस्म की दरकार है। प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) पहले मशहूर थे। अब मगरूर भी हो गए हैं। इस अवस्था को प्राप्त इंसान अक्सर प्रलयंकारी गलतियां कर गुजरता है। किशोर भी ऐसा ही कर रहे हैं। वे कई आधे-अधूरों को आपस में जोड़कर एक कम्प्लीट कंस्ट्रक्शन करने की कोशिश में हैं। किशोर शरद पवार (Sharad Pawar), ममता बनर्जी (Mamta Banerjee), फारूक अब्दुल्ला (Farooq Abdullah), अरविन्द केजरीवाल (Arvind Kejriwal) आदि को मिलाकर एक तीसरे मोर्चा (Third Front) बनाने की दिशा में आगे बढ़ गए हैं। ये वो जमावड़ा है, जिसमें शामिल होने की इकलौती अघोषित योग्यता नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) का घनघोर विरोधी होना ही है। इसलिए देश के राजनीतिक और सामाजिक गलियारों में जितने भी लोग आपको अपने लोगों के बीच प्रभावी दिखें, उन सभी को आप इस मोर्चे से जुड़ा हुआ मान सकते हैं। ऐसा करने में कोई जोखिम नहीं है। क्योंकि यदि इनमें से कोई इस मोर्चे से संबद्ध नहीं है, तब भी वह आपकी राय पर  यह सोचकर निहाल हो जाएगा कि उसे मोदी-विरोधी मानने वालों की संख्या बढ़ रही है।

स्कूल में विज्ञान की पढ़ाई को रोचक बनाने के लिए एक काम होता था। किताब में किसी क्रिया को समझाने के लिए ‘आओ इसका पता लगाएं’ कॉलम का सहारा लिया जाता था। तो राजनीति विज्ञान (Political Science) की इस प्रयोगशाला को भी यूं ही समझते हैं। आओ इसका पता लगाएं कि शरद पवार के भौतिक और रासायनिक गुण क्या हैं? न कांग्रेस (Congress) में रहते हुए और न ही कांग्रेस से बाहर वे महाराष्ट्र (Maharashtra) के अलावा कहीं और प्रभावी हो पाए। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी  (NCP) वाली घड़ी के कांटों की टिकटिकी भी इस प्रदेश की सीमाओं के बाहर न के बराबर ही सुनी गयी है। ममता बनर्जी हालिया विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की कोशिशों को धूल चटाने में सफल रहीं। इसके बावजूद देशव्यापी मास अपील का माद्दा उनमें नहीं है। उनका प्रभाव क्षेत्र भी पश्चिम बंगाल (West Bengal) की सरहद का अतिक्रमण नहीं कर पाया है। यही स्थिति केजरीवाल की दिल्ली को लेकर है। फारूख अब्दुल्ला भी इसी तरह की लिमिटेशंस में कैद हैं। तो फिर ये समूह किस चेहरे की दम पर मोदी का मुकाबला करने की बात सोच रहा है?
फिर बहुत बड़ी कमजोर कड़ी या कि कांग्रेस को आगे लिए बगैर इस मोर्चे को खड़ा करने की कोशिश की जा रही है। यह प्रशांत किशोर की अपरिपक्वता को दिखाता है। देश के बहुत सारे राज्यों में आज भी भाजपा का मुकाबला केवल कांग्रेस से ही है। कभी गौर कीजिये तो आप पाएंगे कि मोदी से लेकर समूची भाजपा तक बाकी विरोधी दलों के मुकाबले आज भी कांग्रेस पर ही सीधे हमले करती है। यह भी बताता है कि आज भी यही पार्टी भाजपा को अपने लिए खतरा दिखती है। तो फिर कांग्रेस को साथ लिए बगैर आगे बढ़ने की कोशिश किस तरह सफल हो पाएगी। शरद पवार घनघोर रूप से चतुर राजनीतिज्ञ हैं। वे जानते हैं कि यदि मोर्चे पर पंजे का शिकंजा कैसा, तो उनकी केंद्र सरकार को लेकर बरसों की दबी महत्वाकांक्षा फिर कुचल दी जाएगी। यही डर सुश्री बनर्जी को खाये जा रहा है। लेकिन पवार और बनर्जी, ये दोनों भी कांग्रेस की जरूरत से इंकार नहीं कर सकते। इसलिए मुमकिन है कि फिलहाल की कवायद का मकसद कांग्रेस को दबाव में लाकर तीसरे मोर्चे में उसकी एंट्री घुटने के बल करवाना हो, ताकि शीर्ष स्तर का राजनीतिक लाभ चाहने वालों की फेहरिस्त को कुछ छोटा रखा जा सके।
चूंकि तीसरे मोर्चे के वर्तमान में किसी भी चेहरे के पास मोदी के विरोध को लीड करने की ताकत नहीं है, इसलिए दो ही विकल्प शेष दिखते हैं। या तो ये सभी दल कांग्रेस के पीछे खड़े हो जाएं और या फिर कांग्रेस उससे अलग होकर अधिक ताकतवर हुए चेहरों को फिर से खुद में शामिल कर सके। जैसे कि शरद पवार और ममता बनर्जी। मगर पेंच तो यहां भी है। कांग्रेस चाहे इन दलों के साथ आना चाहे या इनके नेतृत्व की तरफ बढ़े, उसे ‘सोनिया जी’ (Sonia Gandhi) जैसे वर्तमान से लेकर ‘राहुल जी’ (Rahul Gandhi) जैसे अतीत और ‘रेयान जी’ (Ryan Vadra) जैसे भविष्य वाली फितरत से निजात पाना होगी। यह टेढ़ी खीर वाला मामला है। इतने वजनदार मेंढकों से भरी तराजू को थामने की ताकत तो सौ साल से ज्यादा अनुभवी पंजे के पास भी नहीं है। कोई घड़ी ऐसी नहीं, जिसका गजर समय की कसौटी पर इस वजन को थाम सके। कोई तृणमूल में आज की तारीख में वह क्षमता नहीं दिखती कि इस मोर्चे को ठोस मूल प्रदान कर सके। इन नामों के बीच केजरीवाल का जिक्र करना ठीक नहीं होगा। क्योंकि गंभीर राजनीतिक विश्लेषण में ‘जिधर बम, उधर हम’ जैसी फितरत को शामिल करना ठीक  नहीं है।
देश में निश्चित ही मोदी के लिए असंतोष के स्वर बुलंद हो रहे हैं। मगर एक सर्वमान्य चेहरे के अभाव में इन स्वरों को सही आरोह-अवरोह दे पाना नामुमकिन दिखाई देता है। प्रशांत किशोर यदि अपनी मगरूरियत को कुछ कम कर पाएं तो वह देखेंगे कि  इस सियासी रेस में वह  उस घोड़े को दौड़ाने की जुगत में लगे हैं, जो घोड़ा अनिश्चितताओं से भरे तबेले में बंधा हुआ है।

प्रकाश भटनागर

मध्यप्रदेश की पत्रकारिता में प्रकाश भटनागर का नाम खासा जाना पहचाना है। करीब तीन दशक प्रिंट मीडिया में गुजारने के बाद इस समय वे मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश में प्रसारित अनादि टीवी में एडिटर इन चीफ के तौर पर काम कर रहे हैं। इससे पहले वे दैनिक देशबंधु, रायपुर, भोपाल, दैनिक भास्कर भोपाल, दैनिक जागरण, भोपाल सहित कई अन्य अखबारों में काम कर चुके हैं। एलएनसीटी समूह के अखबार एलएन स्टार में भी संपादक के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। प्रकाश भटनागर को उनकी तल्ख राजनीतिक टिप्पणियों के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button