विश्लेषण

मेनका का ये आपातकालीन व्यवहार 

देश में आपातकाल (Emergency) के समय संजय गांधी (Sanjay Gandhi) कई वजहों से अपयश के भागी बने।उनके ख़ास लोग भी फिर आज तक इस बदनामी से मुक्त नहीं हुए हैं कि उन्होंने गांधी का उस समय की तमाम अपयशकारी गतिविधियों में साथ दिया। तब एक चेहरा ऐसा भी था, जो इन गतिविधियों का अप्रत्यक्ष रूप से सहयोगी और समर्थक होने के बावजूद खुद के दामन को तोहमत के दागों से बचा ले गया। बात मेनका गांधी (Maneka Gandhi) की हो रही है। जिन्होंने पति संजय की अकाल मृत्यु के बाद अपनी सास इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) से मतभेदों के चलते उस परिवार से अलग होने का निर्णय ले लिया। इधर-उधर के कई पड़ावों से गुजरने के बाद आज मेनका भाजपा की सांसद हैं। उनका बेटा वरुण गांधी (Varun Gandhi) भी इसी दल से इसी पद पर शोभायमान है। मेनका केंद्र सरकार में मंत्री भी रह चुकी हैं। बीते लंबे समय से वे अपने पुराने राजनीतिक वैभव से वंचित हैं। उनके वास्तविक व्यवहार से दो-चार हो चुके लोग इस बारे में चर्चा करते समय ‘बेहद बदतमीज और अकड़ू’ का इस्तेमाल जरूर करते हैं। वह भी इतने सटीक उदाहरणों के साथ कि ऐसा लगने लगा है कि यदि ये शब्द इस्तेमाल नहीं किये गए तो लगेगा ही नहीं कि बात मेनका गांधी की हो रही है।

एक ऑडियो क्लिप वायरल है। इसमें श्रीमती गांधी आगरा के एक पशु चिकित्सक का अपनी पूरी बेसिक इंस्टिंक्ट (Basic Instinct) के साथ अपमान कर रही हैं। मेनका इस बात पर आपा खो रही हैं कि उस पशु चिकित्सक ने एक डॉग के इलाज में लापरवाही बरती। इस संवाद में मेनका भाषायी मर्यादा को किसी बदनाम गली वाले माहौल तक ले जाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। तमाम ऐसे शब्दों को वे पूरी निपुणता के साथ इस्तेमाल कर रही हैं, जिन्हें  यहां लिखा भी नहीं जा सकता है।

मेनका का इंसानों के प्रति व्यवहार कमोबेश सदैव ही चर्चा में रहा है। कुछ साल पहले उन्होंने एक व्यक्ति को सिर्फ इसलिए अपनी मदद के लायक नहीं समझा था, क्योंकि वह मुस्लिम समुदाय का था। इस वर्ग से होने के चलते मेनका को यकीन था कि वह व्यक्ति उन्हें वोट नहीं देता होगा, लिहाजा उसे कोई हक़ नहीं है कि वह श्रीमती गांधी से किसी सहायता की उम्मीद रखे। ऐसे और भी मौखिक और अलिखित असंख्य उदाहरण उनके इस व्यक्तित्व का प्रदर्शन करते हैं। यहां याद दिला दें कि वरुण गांधी भी एक चुनावी सभा में अल्पसंख्यकों के लिए पर्याप्त खतरनाक मात्रा में विष-वमन करते हुए दिखाई दे चुके हैं। अलबत्ता, श्रीमती गांधी के पशु प्रेम की मिसाल नहीं है। देश में जानवरों की हिफाजत और उनके जीवन अधिकार को लेकर मेनका ने जो काम किये हैं, वह उन्हें मानवीय संवेदनाओं का घोर पक्षधर बताता है। बहुत संभव है कि इसी वजह से ताजा मामले में श्रीमती गांधी ने आपा खो दिया। लेकिन जिस तरह से उन्होंने बात की, उसे किसी भी तरह से उचित नहीं कहा जा सकता है। किसी को फ़ोन पर यूं गाली देना, उसकी पैदाइश को लेकर खालिस बाजारू अंदाज में तोहमत लगाना और सड़क छाप गुंडे वाली भाषा में डॉक्टर को धमकी देना कम से कम किसी पढ़े-लिखे और संस्कारवान इंसान की निशानी तो नहीं ही है। गाली चाहे किसी भी भाषा में दी जाए, वह केवल इस लिहाज से आपकी तारीफ़ की वजह बन सकती है कि आपकी भाषा पर अच्छी पकड़ है, लेकिन है तो वह गाली ही। इस ऑडियो में कहीं हिंदी तो कहीं अंग्रेजी में अपना गुस्सा दिखाती मेनका ने मर्यादाओं की चिन्दी-चिन्दी कर दी है।

मेनका सांसद हैं। वे चाहतीं तो सभ्य और कानूनी तरीके से भी इस मामले का हल निकाल सकती थीं। लेकिन उन्होंने वही किया, जो प्रायः लोग अपनी असलियत दिखाने में कर गुजरते हैं। बात ये नहीं है कि आप किसी को कलेक्टर की धौंस देकर उसका क्लिनिक बंद करने की चेतावनी दे रहे हैं, बात ये है कि आपका लहजा ‘घर से उठवा लूंगी’ के आसपास वाला है। आप चेतावनी नहीं, धमकी दे रही हैं। एक डॉक्टर की डिग्री को नहीं, उसकी मां, पिताजी और सारी क्षमताओं को दो कौड़ी का भी नहीं समझ रही हैं। खुद ही जज बनकर फैसला सुनाये दे रही हैं। डॉग के इलाज में लगे पैसे को यूं वापस देने की बात कह रही हैं, जैसे कि मामला रंगदारी टैक्स मांगने का हो। उसे वसूलने के लिए अपनाये जाने वाले तौर-तरीकों का हो। भला इस सब को किस लिहाज से उचित कहा जा सकता है? क्या ये वही आपातकाल वाली सोहबत का असर है? या फिर क्या ऐसा इसलिए कि केंद्र में मंत्री पद से खुद और बेटे के वंचित किये जाने की भड़ास एक डॉक्टर पर निकाल दी गयी है? बहुत चर्चा थी कि सन 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद मेनका को ही लोकसभा का अध्यक्ष बनाया जाएगा। लेकिन कहा जाता है कि मुस्लिम युवक से किये गए संवाद ने मेनका के इन अरमानों पर पानी फेर दिया। तो क्या इस तरह से एक डॉक्टर की इज्जत का पानी उतारकर मेनका अपनी ही खीझ को उजागर कर रही हैं? वह चाहतीं तो उत्तरप्रदेश सरकार को बतौर सांसद एक पत्र लिखकर उस डॉक्टर की शिकायत कर सकती थीं। उसके खिलाफ पुलिस में शिकायत कर सकती थीं। इसके बाद का काम सरकार और कानून का होता, मगर श्रीमती गांधी ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने वैसा किया, जैसा सहने के लिए आपातकाल में देश की जनता अभिशप्त रही थी। वजह चाहे जो भी हो, लेकिन किसी सांसद का ऐसा आचरण विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए लज्जा का विषय ही कहा जा सकता है। मेनका के आपातकाल की काली छाया में रचे-बसे इस आचरण की जितनी निंदा की जाए, वह कम है।

रत्नाकर त्रिपाठी

रत्नाकर त्रिपाठी बीते 35 वर्ष से लगातार पत्रकारिता तथा लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हैं। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में जन्मे एवं पले-बढ़े रत्नाकर ने इसी प्रदेश को अपनी कर्मभूमि भी बनाया है। वह दैनिक भास्कर और पत्रिका सहित ईटीवी (वर्तमान नाम न्यूज 18) राष्ट्रीय हिंदी दैनिक 'राष्ट्रीय सहारा' एवं पीपुल्स समाचार में भी महत्वपूर्ण पदों पर सेवाएं दे चुके हैं। त्रिपाठी को लेखन की विशिष्ट शैली के लिए खास रूप से पहचाना जाता है। उन्हें आलेख सहित कहानी, कविता, गजल, व्यंग्य और राजनीतिक तथा सामाजिक विषयों के समीक्षात्मक लेखन में भी महारत हासिल है। उनके लेखन में हिन्दू सहित उर्दू और अंग्रेजी के कुशल संतुलन की विशिष्ट शैली काफी सराही जाती है। संप्रति में त्रिपाठी मध्यप्रदेश सहित छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश के न्यूज चैनल 'अनादि टीवी' के न्यूज हेड के तौर पर कार्यरत हैं।

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