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आईएफएस परफार्मेंस रिपोर्ट को लेकर मप्र सरकार का आदेश सुप्रीम कोर्ट से रद्द

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सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश सरकार के उस आदेश को ‘‘अवमाननापूर्ण’’ करार देकर रद्द कर दिया जिसमें भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को राज्य में भारतीय वन सेवा के अधिकारियों की प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्टों की समीक्षा करने का निर्देश दिया गया था।

रिकॉर्ड में यह बात सामने आई है कि मप्र में ऐसे तौर-तरीकों का पालन किया जाता था जिसमें जिला कलेक्टरों या वरिष्ठ अधिकारियों समेत भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी भारतीय वन सेवा (आईएफएस) अधिकारियों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट दर्ज करते थे।

शीर्ष अदालत ने कहा कि 29 जून, 2024 का सरकारी आदेश (जीओ) शीर्ष अदालत के निर्देशों का पूरी तरह उल्लंघन है।

मुख्य न्यायाधीश द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया है, ‘हमें यह मानने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि विवादित सरकारी आदेश की प्रकृति अवमाननापूर्ण है, क्योंकि यह सरकारी आदेश इस न्यायालय के 22 सितंबर, 2000 के आदेशों का उल्लंघन है और… इसे इस न्यायालय से स्पष्टीकरण/संशोधन मांगे बिना ही जारी कर दिया गया है।’

उल्लेखनीय है कि 22 सितंबर, 2000 को उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया था कि अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक के पद तक के अधिकारियों के लिए रिपोर्टिंग प्राधिकारी वन विभाग में उससे ऊपर का वरिष्ठ अधिकारी होना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने कहा था कि केवल प्रधान मुख्य वन संरक्षक के मामले में रिपोर्टिंग प्राधिकारी वन सेवा से संबंधित व्यक्ति के अलावा कोई अन्य व्यक्ति होगा, क्योंकि भारतीय वन सेवा में उनसे वरिष्ठ कोई नहीं होता।

बुधवार को पीठ ने कहा कि मध्यप्रदेश को छोड़कर अन्य सभी राज्य सितंबर 2000 के आदेश में शीर्ष अदालत द्वारा जारी निर्देशों का ईमानदारी से पालन कर रहे हैं।

पीठ ने कहा कि वह इस तरह के सरकारी आदेश जारी करने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ अवमानना ​​की कार्यवाही शुरू कर सकती थी, लेकिन “हम ऐसा करने से खुद को रोक रहे हैं। उक्त सरकारी आदेश इस अदालत के निर्देशों का उल्लंघन है, इसलिए इसे रद्द और अमान्य करार दिया जाना चाहिए।”

इसके बाद शीर्ष अदालत ने सरकारी आदेश को रद्द कर दिया और मध्यप्रदेश सरकार को सितंबर 2000 में शीर्ष अदालत द्वारा जारी निर्देशों का सख्ती से पालन करते हुए एक महीने में नियमों को फिर से तैयार करने का निर्देश दिया।

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