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बंगाल का संग्रामः पीके बोले-सरकारों के लिए सबसे बड़ी चुनौती अंतिम व्यक्ति तक योजनाएं पहुंचाने की

नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में आधा चुनाव बीत चुका है और आधे के लिए राजनीतिक दल जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं। भाजपा हर चुनाव रैली में ममता सरकार के भ्रष्टाचार को मुद्दा बना रही है, जबकि तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) जवाब दे रही है। बीजेपी के इन आरोपों का टीएमसी के साथ ही उसके चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी काउंटर कर रहे हैं।

एक इंटरव्यू में प्रशांत किशोर ने बंगाल में चलाए गए द्वारे सरकार मुहिम के बारे में बताते हुए कहा कि पूरे भारत में जहां भी सरकारें चल रही हैं, उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती अंतिम व्यक्ति तक अपनी योजनाएं पहुंचाने की है, द्वारे सरकार से एक दिन में यह ठीक नहीं हो जाएगा, हमने द्वारे सरकार मुहिम से समस्याओं को दूर करने की कोशिश की।





दूसरे दलों के लोगों को योजनाओं का लाभ न मिलने के सवाल पर प्रशांत किशोर ने आंध्र प्रदेश का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां चंद्रबाबू नायडू ने हर गांव में जन्मभूमि बनाया था, जिसका काम सरकार को योजनाओं की जमीनी हकीकत बताना था, लेकिन धीरे-धीरे जन्मभूमि से जुड़े लोग अपने लोगों की ही बात करने लगे, जिसका नुकसान पार्टियों को उठाना पड़ता है।

प्रशांत किशोर ने आगे कहा कि आंध्र प्रदेश की ही तरह बंगाल या किसी और राज्य में भी ऐसा हुआ, जिसका नुकसान बंगाल में वाम दलों को उठाना पड़ा, टीएमसी में भी निचले स्तर पर एंटी इनकम्बैंसी की बात जो सामने आ रही है, वह निचले स्तर के कार्यकर्ताओं के इसी रवैये कारण है, जिसका नुकसान निचले स्तर पर पार्टी को हुआ है।





जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार के सवाल पर प्रशांत किशोर ने कहा कि ऐसा नहीं है, कई बार सत्ता में आने के बाद पार्टियां अपने कार्यकर्ताओं को किनारे कर देती है, इससे लगता है कि सत्ता ब्यूरोक्रेसी चला रही है, वहीं अगर कार्यकर्ताओं को पॉवर देते हैं तो देखते हैं कि कहीं गड़बड़ी हो रही है, ऐसे में सत्ता का बैलेंस बनाना ही महत्वपूर्ण है।

प्रशांत किशोर ने कहा कि सभी राजनीतिक दलों के सामने चुनौती है कि वह अपने कार्यकर्ताओं को संभाले रहें, उनकी भागीदारी बनी रहे, लेकिन उनकी भागीदारी आपके लिए परेशानी बन जाए, वो भी नहीं होना चाहिए, कहीं पार्टी कार्यकर्ता की सुनी नहीं जाती तो कहीं पार्टी के कार्यकर्ता की ही सुनी जाती है, यह परेशानी हर जगह है।

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