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विशिष्ट कलात्मक कलाकृतियों से सुसज्जित हैं सांबा द्वारा समर्पित सूर्य देव का मंदिर

कोणार्क सूर्य मंदिर भारत के ओडिशा के तट पर, पुरी से लगभग 35 किलोमीटर दूर उत्तर पूर्व कोणार्क में स्थित है। हिंदूओं के देवता भगवान सूर्य को समर्पित यह एक विशाल मंदिर है और भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है।

धर्म डेस्क : भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्वी तट पर स्थित कोणार्क का सूर्य मंदिर, मंदिर की वास्तुकला और कला के उत्कृष्ट उदाहरणों में से एक है जो इसकी अवधारणा, पैमाने और अनुपात में और इसके मूर्तिकला अलंकरण की उदात्त कथा शक्ति में प्रकट होता है।कोणार्क सूर्य मंदिर भारत के ओडिशा के तट पर, पुरी से लगभग 35 किलोमीटर दूर उत्तर पूर्व कोणार्क में स्थित है। हिंदूओं के देवता भगवान सूर्य को समर्पित यह एक विशाल मंदिर है और भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। इस प्राचीन मंदिर को देखने के लिए भारी संख्या में विदेशी सैलानी भी आते हैं। कोणार्क दो शब्दों कोण और अर्क से मिलकर बना है। जहां कोण का अर्थ कोना और अर्क का अर्थ सूर्य से है। दोनों को संयुक्त रूप से मिलाने पर यह सूर्य का कोना यानि कोणार्क होता है।

कोणार्क सूर्य मंदिर के निचले भाग की तुलना मे ऊपरी भाग एवं छत मे कला के बड़े और अधिक महत्वपूर्ण कार्य किए गये हैं। जिस के अंतर्गत संगीतकारों और पौराणिक व्याख्यानों के साथ-साथ हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां भी शामिल हैं, हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों मे मायावी दैत्य महिषासुर का वध करती हुई माता दुर्गा (शक्तिरूप), विष्णु अपने जगन्नाथ रूप मे (वैष्णववाद) एवं अत्यधिक क्षतिग्रस्त शिव (शैव) हैं।

मंदिर के अन्य अद्भुत नाम

कोणार्क को सूर्य देवालय भी कहा जाता है, यह कलिंग वास्तुकला तथा ओडिशा वास्तुकला शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यूरोपीय नाविक खातों में, इस मंदिर को 1676 की शुरुआत में ब्लैक पैगोडा कहा जाता था क्योंकि इसका श्रेष्ठ शिखर लाल-काला दिखाई देता है। यह हिंदुओं के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यहाँ प्रत्येक वर्ष फरवरी के महीने में चंद्रभागा मेले का आयोजन होता है।कोणार्क के सूर्य मंदिर को यूनेस्को ने 1984 में विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी है।

कोणार्क सूर्य मंदिर किसने बनवाया 

ब्राह्मण मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 13 वीं शताब्दी में पूर्वी गंगा राजवंश के राजा नरसिम्हदेव प्रथम (1238-1250 CE) द्वारा किया गया था और यह सूर्य देव को समर्पित था। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण के पुत्र साम्ब को उनके श्राप से कोढ़ रोग हो गया था। सूर्यदेव, जो सभी रोगों के नाशक थे, उन्होंने इनके इस रोग का भी निवारण कर दिया था। तब साम्ब ने सूर्य देव को सम्मानित करने के लिए कोणार्क सूर्य मंदिर को निर्मित किया, क्योंकि भगवान ने उनके कुष्ठ रोग को ठीक कर दिया था। कोणार्क सूर्य मंदिर को UNSECO वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में भी जोड़ा गया है।

 कहाँ स्थित है मंदिर  

कोणार्क सूर्य मंदिर भारत के ओडिशा के तट पर पुरी से लगभग 35 किलोमीटर उत्तर पूर्व में कोणार्क में 13 वीं शताब्दी का एक प्रतिष्ठित सूर्य मंदिर है। जो चंद्रभागा नदी के किनारे स्थित है।

कोणार्क के सूर्य मंदिर का इतिहास –

13 वीं शताब्दी के मध्य में निर्मित कोणार्क का सूर्य मंदिर कलात्मक भव्यता और इंजीनियरिंग की निपुणता का एक विशाल संगम है। गंग वंश के महान शासक राजा नरसिम्हदेव प्रथम ने अपने शासनकाल 1243-1255 ई. के दौरान 1200 कारीगरों की मदद से कोणार्क के सूर्य मंदिर का निर्माण कराया था। चूंकि गंग वंश के शासक सूर्य की पूजा करते थे, इसलिए कलिंग शैली में निर्मित इस मन्दिर में सूर्य देवता को रथ के रूप में विराजमान किया गया है तथा पत्थरों को उत्कृष्ट नक्काशी के साथ उकेरा गया है।

इस मंदिर का निर्माण लाल रंग के बलुआ पत्थरों तथा काले ग्रेनाइट पत्थरों से हुआ है। पूरे मन्दिर स्थल को बारह जोड़ी चक्रों के साथ, सात घोड़ों द्वारा खींचते हुए निर्मित किया गया है। जिसमें सूर्य देव को विराजमान दिखाया गया है। वर्तमान समय में सात घोड़ों में से सिर्फ एक ही घोड़ा बचा हुआ है। आज जो मंदिर मौजूद है वह आंशिक रूप से ब्रिटिश भारत युग की पुरातात्विक टीमों के संरक्षण के कारण बच पाया है।

सूर्य मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान कृष्ण के पुत्र सांबा को अपने पिता के श्राप के कारण कुष्ठ रोग हो गया था। साम्बा ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर कोणार्क में 12 वर्षों तक तपस्या की और सूर्य देव को प्रसन्न किया था। जिससे उनकी बीमारी ठीक हो गई थी। इसका आभार प्रकट करने के लिए उन्होंने सूर्य के सम्मान में एक मंदिर बनाने का फैसला किया। अगले दिन नदी में नहाते समय उन्हें भगवान की एक प्रतिमा मिली, जो विश्वकर्मा द्वारा सूर्य के शरीर से निकाली गई थी। सांबा ने यह चित्र मित्रवन में उनके द्वारा बनाए गए मंदिर में स्थापित किया।  जहाँ उन्होंने भगवान को प्रवचन दिया। तब से यह स्थान पवित्र माना जाता है और कोणार्क के सूर्य मंदिर के रूप में जाना जाता है।

 

मंदिर के बारे में रोचक तथ्य

  • मंदिर के शीर्ष पर एक भारी चुंबक रखा गया था और मंदिर के हर दो पत्थर लोहे की प्लेटों से सुसज्जित हैं। कहा जाता है कि मैग्नेट के कारण मूर्ति हवा में तैरती हुई दिखायी देती है।
  • सूर्य देव को ऊर्जा और जीवन का प्रतीक माना जाता है। कोणार्क का सूर्य मंदिर रोगों के उपचार और इच्छाओं को पूरा करने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
  • कोणार्क का सूर्य मंदिर ओडिशा में स्थित पांच महान धार्मिक स्थलों में से एक माना जाता है जबकि अन्य चार स्थल पुरी, भुवनेश्वर, महाविनायक और जाजपुर हैं।
  • कोणार्क के सूर्य मंदिर की विशेषता यह है कि इस मंदिर के आधार पर 12 जोड़ी पहिए स्थित हैं। वास्तव में ये पहिये इसलिए अनोखे हैं क्योंकि ये समय भी बताते हैं। इन पहियों की छाया देखकर दिन के सटीक समय का अंदाजा लगाया जा सकता है।
  • इस मंदिर में प्रत्येक दो पत्थरों के बीच में एक लोहे की चादर लगी हुई है। मंदिर की ऊपरी मंजिलों का निर्माण लोहे की बीमों से हुआ है। मुख्य मंदिर की चोटी के निर्माण में  52 टन चुंबकीय लोहे का उपयोग हुआ है। माना जाता है कि मंदिर का पूरा ढांचा इसी चुंबक की वजह से समुद्र की गतिविधियों को सहन कर पाता है।
  • माना जाता है कि कोणार्क मंदिर में सूर्य की पहली किरण सीधे मुख्य प्रवेश द्वार पर पड़ती है। सूर्य की किरणें मंदिर से पार होकर मूर्ति के केंद्र में हीरे से प्रतिबिंबित होकर चमकदार दिखाई देती हैं।
  • कोणार्क सूर्य मंदिर के प्रवेश द्वार के दोनों और दो विशाल शेर स्थापित किए गए हैं। इन शेरों द्वारा हाथी को कुचलता हुआ प्रदर्शित किया गया है। प्रत्येक हाथी के नीचे मानव शरीर है। जो मनुष्यों के लिए संदेश देता हुए मनमोहक चित्र है।
  • कोणार्क के सूर्य मंदिर परिसर में नाटा मंदिर यानि नृत्य हाल भी देखने लायक है।
  • मंदिर की संरचना और इसके पत्थरों से बनी मूर्तियां कामोत्तेजक मुद्रा में हैं जो इस मंदिर की अन्य विशेषता को प्रदर्शित करता है।

कोणार्क सूर्य मंदिर कैसे पहुंचें

ओडिशा राज्य में चंद्रभागा नदी के किनारे स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर पर्यटन स्थल घूमने के लिए फरवरी से अक्टूबर तक का समय बेहतर माना जाता है। चूंकि कोणार्क एक छोटा सा स्थान है,जहां यह मंदिर स्थित है इसीलिए पहले आसपास के शहरों तक पहुंचकर फिर कोणार्क मंदिर जाना पड़ता है।

हवाई जहाज से कोणार्क सूर्य मंदिर कैसे पहुंचें

कोणार्क भुबनेश्वर हवाई अड्डे से 65 किमी दूर है। भुवनेश्वर नई दिल्ली, कोलकाता, विशाखापत्तनम, चेन्नई और मुंबई जैसे प्रमुख भारतीय शहरों के लिए उड़ानों से जुड़ा हुआ है। इंडिगो, गो एयर, एयर इंडिया जैसी सभी प्रमुख घरेलू एयरलाइनों से भुबनेश्वर के लिए दैनिक उड़ानें हैं। आप हवाई जहाज से भुबनेश्वर पहुंचकर फिर वहां से बस या टैक्सी द्वारा कोणार्क मंदिर जा सकते हैं।

ट्रेन से कोणार्क सूर्य मंदिर कैसे पहुंचें

कोणार्क का निकटतम रेलवे स्टेशन भुबनेश्वर और पुरी हैं। कोणार्क भुवनेश्वर से पिपली के रास्ते 65किलोमीटर और पुरी से 35किमी मैरिन ड्राइव रोड पर है। पुरी दक्षिण पूर्वी रेलवे का अंतिम प्वाइंट है। पुरी और भुबनेश्वर के लिए कोलकाता, नई दिल्ली, चेन्नई, बंगलौर, मुंबई और देश के अन्य प्रमुख शहरों और कस्बों के लिए फास्ट और सुपरफास्ट ट्रेनें हैं जिसके माध्यम से आप यहां आने के बाद टैक्सी या बस से कोणार्क पहुंच सकते हैं।

बस से कोणार्क सूर्य मंदिर कैसे पहुंचें

कोणार्क भुवनेश्वर से पिपली होते हुए करीब 65 किमी लंबा रास्ता है और यहां से कोणार्क पहुंचने में कुल दो घंटे लगते हैं। यह पुरी से 35 किमी है और एक घंटे का समय लगता है। कोणार्क के लिए पुरी और भुवनेश्वर से नियमित बस सेवाएं संचालित होती हैं। सार्वजनिक परिवहन के अलावा पुरी और भुवनेश्वर से निजी पर्यटक बस सेवाएं और टैक्सी भी उपलब्ध हैं।

कोणार्क में कहां रूकें 

कोणार्क में ठहरने के लिए सीमित विकल्प हैं। यात्री शहर में अपने बजट के अनुसार होटलों में ठहर सकते हैं। यहां ठहरने के लिए ट्रैवलर्स लॉज, कोणार्क लॉज, सनराइज, सन टेम्पल होटल, लोटस रिजॉर्ट और रॉयल लॉज जैसे निजी प्रतिष्ठान उपलब्ध हैं। जहां आप ठहर सकते हैं। इसके अलावा ओटीडीसी  द्वारा संचालित पंथनिवास यात्रि निवास में सरकारी आवास भी उपलब्ध है, जहां रूकने की सुविधा है।

कोणार्क सूर्य मंदिर के आसपास घूमने की जगह

कोणार्क सूर्य मंदिर के अलावा कोणार्क शहर के आसपास सुंदर समुद्र तट, प्रसिद्ध मंदिर और प्राचीन बौद्ध स्थल हैं। जो कोणार्क मंदिर जाने वाले पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं। आप यहां चंद्रभागा समुद्र तट, रामचंडी मंदिर, बेलेश्वर, पिपली, ककटपुर, चौरासी, बालीघई सहित कई पर्यटन स्थल घूम सकते हैं। ये सभी स्थल कोणार्क के सूर्य मंदिर से चार से पांच किलोमीटर की दूरी पर ही स्थित हैं जो देखने लायक हैं।

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