ताज महल! प्रेम की निशानी या कला और कलाकारों के सम्मान की कब्र
सामान्य तौर पर हमारे देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी ताजमहल को प्यार की निशानी के तौर पर देखा जाता है, लेकिन इन सबसे परे एक सच ऐसा भी है। जिसे आजतक दबाया या फिर यों कहे कि छिपाया गया है।

नज़रिया : सामान्य तौर पर हमारे देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी ताजमहल को प्यार की निशानी के तौर पर देखा जाता है, लेकिन इन सबसे परे एक सच ऐसा भी है। जिसे आजतक दबाया या फिर यों कहे कि छिपाया गया है। जिसे आने वाली पीढ़ी के लिए जानना उतना ही ज्यादा जरूरी है। हमने और आपने अक्सर सुना होगा कि शाहजहां ने ताजमहल के निर्माण के बाद उन कारीगरों के हाथ काट दिए थे।जिन्होंने इस ताजमहल जैसी बेतहाशा खूबसूरत इमारत को खड़ा किया था। कारण महज़ इतना था कि वे कारीगर कुदरत के नायब फरिश्तों में से एक थे। जिनके पास अद्भुत कलाकृति को संजोने का हुनर था, लेकिन अफसोस उनका ये वरदान न केवल उनके लिए बल्कि उनके परिवार और खास तौर से उनके घर की बहु, बेटियों और औरतों के लिए अभिशाप बन गया। हम कह सकते है कि ताजमहल कला और कलाकारों के सम्मान की कब्र बन गया। दरअसल जब शाहजहां ने अपनी बेगम के लिए ताजमहल बनवाया। उसके बाद उसने इसे बनाने वाले तमाम कारिगरों के हाथ कटवा दिए थे। जिसकी वजह से उन कारीगर के परिवार को अपना और परिवार का पेट पालने के लिए देह व्यापार जैसे धंधों में फंसना पड़ा।
शराफत का चोला ओढ़े लोग पहुंचते है यहां
रेड लाइट एरिया की महिलाओं को सभी ओछी नजरों से देखते है, लेकिन न जाने कितने मर्द हर रोज वहां अपनी हवस मिटाने जाते है और शराफत का चोला ओढ़े ये समाज उन महिलाओं को हैरानी की नजरों से देखता है, जबकि अपनी प्यास बुझाने इन शरीफ खानदानों के मर्द ही उन जगहों पर जाकर उन औरतों पर जुर्म मानसिक और शारीरिक तौर पर जुल्म ढाते है। भला कौन ही औरत इन देह व्यापार के धंधे में फंसना चाहती है, लेकिन ये पापी पेट का सवाल है। जो औरतों को अपने परिवार और बच्चों के लालन-पालन के लिए इस धंधे में धकेल देता है।
एशिया का सबसे बड़ा रेड लाइट एरिया
एशिया का सबसे बड़ा रेल लाइट एरिया सोनागाछी है। जिसमें ताज मोहल्ला बहुत ज्यादा फेमस है। इस ताज मोहल्ले में पैदा होते ही एक बच्ची वैश्या बन जाती है। ताज मोहल्ले से निकलने वाली चीखे आम मर्दों के लिए पैसों के बदले जिस्म का सौदा है, लेकिन उस महिला के लिए ये हर सौदे के पीछे की दर्द भरे आंसू है। जिसे वो चाहकर भी सबके सामने गिरा नहीं सकती। ताज मोहल्ला ऐसा मोहल्ला है जहां महिलाओं के लिए घना अंधेरा छाया हुआ है। न वहां कोई सितारा है और न ही कोई चांद है। जो इन महिलाओं को रोशनी के जरिये घनघोर अंधेरे से बाहर निकाल सके।
लोग बड़ी ही दबी जुबान से रेड लाइट एरिया का नाम लेते है। लाल रंग में बहुत उष्मा होती है, हमारे सामान्य जीवन में यह खतरे का संकेत होता है, हमें रुकने और सुस्ताने का इशारा करता है, लेकिन इसके आकर्षण का संवरण उतना ही मुश्किल है। सोनागाछी में एशिया का सबसे बड़ा देह व्यापार का केंद्र है। एक कच्चे अनुमान के अनुसार 10000 से ज्यादा सेक्स वर्कर यहां काम करती हैं। हर उम्र…हर क्षेत्र और धर्म की लड़कियां यहां उस धंधे से जुड़ी हैं, जिसकी चर्चा करते हुए हमारा समाज मुंह बिचकाता है, अच्छा नहीं कहता है, लेकिन फिर भी इस इलाके की मौजूदगी को लेकर सरकारों और शासन में एक तरह की स्वीकारोक्ति है। इन्हें यहां से कोई हटा नहीं सकता।
दो तरह के सोना मिल रहा मर्दों को
सोनागाछी का अर्थ है सोने का पेड़। यानि कि इस गली में दो तरह से सोने का पेड़ मिल रहा है। सोना(नींद) औऱ सोना(किसी के साथ बिस्तर शेयर करना) है। यदि हर मर्द अपनी पत्नी को ही सोना समझ ले, तो उसे रेड लाइट एरिया में जाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। या ये कह सकते है कि महिलाओं को ऐसे व्यापार या अंधकार में मजबूरन नहीं घुसना पड़ेगा। जहां ये सब गैर कानूनी काम होते हो।
सोनागाछी यानी सोने का पेड़
जैसा कि नाम ही बताता है. सोनागाछी यानी सोने का पेड़. आखिर इस इलाके का नाम सोनागाछी कैसे पड़ा? तो क्या इस इलाके में सोने के पेड़ जैसा कुछ है? हम तो यही जानते हैं कि सोना निर्जीव वस्तु है. कीमती धातु है और इसका कोई पेड़ नहीं होता तो फिर शोभाबाजार के पास सोने का गाछ कहां से आया? दरअसल किवंदतियां हैं कि एशिया के सबसे बड़े रेडलाइट का नाम एक मुस्लिम वली (संत) के नाम पर पड़ा है।
सोनागाछी का इतिहास
300 साल पहले का समय, तब कलकत्ता नया-नया बसा था। हुगली नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित ये क्षेत्र व्यापार का फलता-फूलता केंद्र था। इस इलाके में सनाउल्लाह नाम का एक खूंखार डकैत अपनी मां के साथ रहा करता था। कुछ दिन बाद उस डकैत की मौत हो गई। एक दिन सनाउल्लाह की रोती हुई मां ने अपनी झोपड़ी से एक आवाज सुनी। झोपड़ी से आवाज आ रही थी, “मां तुम मत रो…मैं एक गाजी बन गया हूं। इस तरह निकला सनाउल्लाह से सोना गाजी का लेजेंड।
लोग करने लगे थे इबादत
लेजेंड यानी कि किंवदंती, माने…इतिहास की बेतरतीब घटनाओं के आधार पर लोकजीवन में प्रचलित कथा कहानियां। जल्द ही कथा आस-पास फैलने लगी। इस झोपड़ी में लोग पहुंचने लगे और इबादत करने लगे. यहां आकर कथित रूप से लोग बीमारियों से चंगे होने लगे। कहते हैं लोगों को यहां रुहानी एहसास होता था.। इस तरह से कालांतर में किंवदंतियों में डकैत सनाउल्लाह को कथित रूप से संतत्व प्राप्त हुआ।
इतिहासकार कहते हैं कि सनाउल्लाह की मां ने अपने बेटे की याद में यहां एक सुंदर मस्जिद बनवा दी। इसे सोना गाजी के मस्जिद के नाम से जाना जाने लगा। कुछ दिन के बाद सनाउल्लाह की मां की मौत हो गई। इसके बाद इस मस्जिद की देखभाल करने वाला कोई नहीं रहा और धीर-धीरे लंबे कालखंड के बाद ये मस्जिद पूरी तरह से गायब हो गई। इस मस्जिद की वजह से पड़ोस के इलाके का नाम मस्जिद बाड़ी पड़ा। जबकि सनाउल्लाह गाजी बदलकर सोना गाजी हुआ और फिर बदलते-बदलते सोनागाछी हो गया।
किसी के लिए प्यार की तो किसी के लिए श्राप की निशानी है ताजमहल
सोनागाछी में आज एशिया का सबसे बड़ा रेड लाइट एरिया है। ऐसे में हम कह सकते है कि ताज महल जैसे कितनी और इमारतें होंगी। जिनकी वजह से सोनागाछी जैसे रेड लाइट एरिया ने जन्म लिया होगा। किसी के लिए ताजमहल प्यार की निशानी जरूर होगी, लेकिन उन तमाम महिलाओं के लिए ये किसी श्राप से कम नहीं है। जिनके पति, भाई, पिता ने इसे बनाने के कारण अपने हाथों को खोया होगा।