शख्सियत

फिर भी मुबारकबाद उस तबस्सुम को …

तबस्सुम तो अपने ज्ञान का इस्तेमाल हौले से किए जाने वाले इशारे की तरह करती थीं और फिर वही इशारा न जाने कितनी स्मृतियों, घटनाओं और सन्दर्भों के जरिए उस बातचीत को अविस्मरणीय बना देता था।

वह शख्सियत शांत हो गयी, जिसने विलियम शेक्सपियर को अपने 78 साल के जीवन में लगभग हर क्षण गलत साबित किया। शेक्सपियर ने लिखा था, ‘नाम में क्या रखा है?’ और तबस्सुम ने बताया कि नाम में सब कुछ रखा है। तबस्सुम का अर्थ होता है ‘मधुर मुस्कान’ और फिल्म तथा टीवी जगत की इस सदाबहार शख्सियत ने अपनी ऐसी मुस्कुराहट से ही ख़ास पहचान तथा लोकप्रियता हासिल की। अन्य अनगिनत प्रतिभाओं की तरह ही तबस्सुम को भी सुपर सितारा वाली प्रसिद्धि नहीं मिली, लेकिन एक अदद मुकाम उन्होंने जरूर हासिल किया और उस पर अंत तक स्थापित भी रहीं।
एक फिल्म में युवा की मौत पर तमाशबीनों से नाखुश नायिका उनसे कहती है, ‘पास आ कर देखिए कि जिनकी जीने की उम्र है, वो मरने के बाद कैसे दिखते हैं।’ वह दृश्य पीड़ादायी था और एक पीड़ा से अब मैं भी जूझ रहा हूं। मैं तबस्सुम के निर्जीव शरीर को देखना चाहता हूं। देखना चाहता हूं कि जिस चेहरे और मुस्कान के बीच हाथ और हथेली जैसा अभिन्न रिश्ता रहा, वह चेहरा शांत होने के बाद कैसा दिख रहा है? शायद तबस्सुम भी अपनी जिंदगी-भर की इस पहचान के लिए अंतिम दम तक सजग रहीं। तभी तो उन्होंने परिवार से कहा कि उनकी मृत्यु के सूचना अंतिम संस्कार के बाद ही सार्वजनिक की जाए।
किसी साक्षात्कार में अमूमन होता यही है कि जिससे बात की जा रही है, उसके जवाब और एक्सप्रेशन पर अधिक ध्यान दिया जाए। लेकिन तबस्सुम के मामले में ऐसा नहीं रहा। दूरदर्शन पर ‘फूल खिले हैं गुलशन गुलशन’ में तबस्सुम अपने सवालों और उनमें मुस्कान-मिश्रित शोखी से वह माहौल बनाती थीं कि दर्शक प्रश्न-उत्तर के बीच पूरे समय इधर से उधर वाली गुदगुदाहट से आनंद में डूबते-तिरते रहते थे। मुझे आज भी याद है कि इसी कार्यक्रम में एक अभिनेत्री एक दिवंगत अभिनेता के लिए अपने नाकाम प्रेम की स्मृति में डूबकर रुआंसी हो गयी थीं। तब यह तबस्सुम ही थीं, जिन्होंने एक सेकंड के भी बहुत छोटे हिस्से में अगला ऐसा प्रसंग छेड़ा कि कार्यक्रम का भारीपन उस स्टूडियो के किसी कोने में कहीं जा दुबका।
‘तबस्सुम टॉकीज’ देखना तो और भी अद्भुत अनुभव रहा। फिर ‘अभी तो मैं जवान हूं’ का क्या कहना। जो लोग आज अपने फ़िल्मी ज्ञान के लिए रेडियो या टीवी सहित समाचार माध्यमों में भारी विद्वत्ता वाला आडंबर ओढ़े रहते हैं, उन्हें तबस्सुम के इन कार्यक्रमों को देखने का समय निकालना चाहिए। ताकि वे समझ पाएं कि कुछ जानने के गुरूर और सुरूर को परे रखकर भी किस तरह जानकारी-परक और बेहद प्रभावी प्रस्तुति दी जा सकती है। तबस्सुम तो अपने ज्ञान का इस्तेमाल हौले से किए जाने वाले इशारे की तरह करती थीं और फिर वही इशारा न जाने कितनी स्मृतियों, घटनाओं और सन्दर्भों के जरिए उस बातचीत को अविस्मरणीय बना देता था।
लेकिन जिस सुपर सितारा वाले आभामंडल का आरंभ में उल्लेख किया गया, तबस्सुम उसकी हकदार होने के बाद भी उससे वंचित ही रहीं। फिर भी मुबारकबाद उस तबस्सुम को जिसने तबस्सुम को सचमुच तबस्सुम बनाकर ही आजन्म कायम रखा। विनम्र श्रद्धांजलि।

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