…..तो अब राम भरोसे है श्रीलंका
भोपाल – भारत का मुख्य पड़ोसी देश श्रीलंका अब बर्बादी के मुहाने पर पहुंच चुका है। जनता ही अब श्रीलंका में सरकार बन गई है, और श्रीलंकाई लोग राष्ट्रपति निवास को अपनाघर समझकर मौज मस्ती करने में लगे हुए हैं। रामायण में जिस लंका को सोने की लंका बताया गया था वह आर्थिक संकट के ऐसे मोड़ पर पहुंच गई है, जहां से सुधार की संभावनाएं लगभग शून्य होती नजर आ रही है। संकट दौर में पहुंच चुका श्रीलंका पूरी तरह से दिवालिया हो चुका है। नाम के लिए काम कर रही सरकार के पास बजट के नाम पर इतने भी पैसे नहीं हैं कि वो जरूरत के लिए जरूरी पेट्रोल – डीजल खरीद सकें। सरकार की तो छोड़िए श्रीलंकाई लोगों के पास कुछ नहीं बचा है। तेल की कमी के कारण छात्र पढने के लिए स्कूल तक जाने में सक्षम नहीं है। संकट के समय हर कोई अपने पैर पीछे खींच लेता है,ठीक वैसे ही हमेशा संकट के समय साथ खड़ा होने का वादा करने वाले इंटरनेशनल मॉनीटरी फंड यानि IMF ने अब तक के सबसे बुरे आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे श्रीलंका की मदद करने से साफ इंकार कर दिया है। श्रीलंका जिस अभूतपूर्व संकट के दौर से गुजर रहा है, उसने लाओस और पाकिस्तान से लेकर वेनेजुएला और गिनी देश की अर्थव्यवस्थाओं के लिए खतरे की घंटी बजा दी है।
संकट के दौर में फंसा श्रीलंका दुनिया के सामने चीन की ऋणपाश नीति का एक जीता जागता उदाहरण है। चीन ने श्रीलंका में चल रही कई विकास की योजनाओं के लिए कर्ज दिया है। एक अनुमान के मुताबिक श्रीलंका पर अकेले चीन के ही 5 बिलियन डॉलर से ऊपर से का कर्जा है। चीन ने श्रीलंका का यह कर्ज विकास के नाम पर दिया पर हकीकत में तो चीन ने श्रीलंका पर आर्थिक कब्जा करने के उद्देश्य से यह कर्जा दिया था। श्रीलंका पर केवल चीन नहीं भारत और जापान जैसे देशों के अलावा आईएमएफ जैसे संस्थानों का भी उधार है। श्रीलंकाई सरकारी आंकड़ों के अनुसार श्रीलंका पर साल 2021 के अप्रैल महीने तक 35 बिलियन डॉलर का विदेशी कर्ज है। मुश्किल के दौर से गुजर रहे श्रीलंका के सामने इस विदेशी कर्ज और उसका ब्याज व किश्तों को चुकाने का भी बोझ है, जिसने हालातों को और ज्यादा बिगाड़ दिया ।
देश की बेहतर बनाने के लिए जनता वोट देकर सरकार चुनती है, लेकिन उसी सरकार के द्वारा लिए गए खराब फैसले देश को सालों पीछे पहुंचाने के लिए काफी होते हैं। ऐसा ही श्रीलंका में हुआ है। यहां पर निवृतमान गोटबाया राजपक्षे सरकार के हालिया फैसले को श्रीलंका के तबाह होने का कारण माना गया है। दरअसल राजपक्षे सरकार ने देश में 100 फीसदी ऑर्गेनिक खेती के लिए केमिकल फर्टिलाइजर्स को पूरी तरह से बैन कर दिया। एकदम से लिए गए इस सरकारी फैसले ने श्रीलंका के एग्रीकल्चर सेक्टर को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया। इस खराब फैसले के कारण श्रीलंका का प्रोडक्शन एक झटके के साथ आधा होकर रह गया है। श्रीलंका में इस वक्त चीनी और चावल की किल्लत हो गई है। गोटबाया राजपक्षे सरकार के इस फैसले के के कारण अनाज की जमाखोरी की गई, जिसके समस्या को और विकराल बना दिया है।
श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में टूरिज्म सेक्टर का भी अहम योगदान रहा है। आंकड़ों के मुताबिक श्रीलंका की जीडीपी में 10 प्रतिशत का योगदान पर्यटन का रहता है। लेकिन कोविड के चलते पिछले दो सालों से यह टूरिज्म सेक्टर पूरी तरह से तबाह हो चुका है। श्रीलंका में सबसे ज्यादा टूरिस्ट भारत, ब्रिटेन और रूस से आते हैं। लेकिन कोरोना के कारण लगाए गए प्रतिबंधों ने हालातों को और ज्यादा बिगाड़ दिया। इस बीच श्रीलंका में बिगड़े हालातों में बीच कई देशों अपने नागरिकों को श्रीलंका की यात्रा करने टालने की सलाह दी जिसके कारण श्रीलंका का टूरिज्म सेक्टर पूरी तरह से बर्बाद हो गया।
विश्व का हर देश चाहता है कि वो दूसरे देशों से आगे निकल जाए, लेकिन आगे बढ़ने के लिए कीमत भी चुकानी पड़ती है। श्रीलंकाई की गोटाबाया सरकार ने चीन से कर्जा लेकर उसे विकास की रास्ते पर आगे बढ़ाने का जो फैसला लिए और उसी फैसले के कारण गोटाबाया के सरकारी आवास को श्रीलंकाई सार्वजनिक मौज मस्ती का स्थान समझकर घूम फिर रहे हैं। श्रीलंका में आया आर्थिक संकट एक तरह से खतरे की घंटी विश्व के कई देशों के लिए है, क्योंकि चीन की फैलाववादी नीति के चलते नफे नुकसान को न समझकर जिस चीनी कर्ज को लेकर वे आगे बढ़ने की सोच रहे हैं। उसी ड्रेगन ने उन्हें समय के साथ निगलने की पूरी तैयारी कर रखी है। भारत का पड़ोसी देश तो इस वक्त राम भरोसे है, लेकिन चीन के ऋणपास में फंसे दूसरे देशों ने इस आर्थिक संकट से सबक नहीं लिया तो आने वाले वक्त में लाओस, लेबनान, म्यांमार, पाकिस्तान, तुर्की और जिम्बाब्वे में स्थिति श्रीलंका जैसी ही होगी।