रायसीना डॉयलॉग में यूक्रेन संकट पर बोले जयशंकर: युद्ध को रोकने बातचीत पर देना होगा जोर, रूस पर भारत के रुख का भी दिया जवाब
नयी दिल्ली। यूक्रेन संकट से निपटने के लिए सबसे बढ़िया तरीका लड़ाई रोकने और बातचीत पर जोर देना होगा। यह बात भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को भारत की विदेश नीति एवं भू-आर्थिक सम्मेलन ‘रायसीना डॉयलॉग’ में चर्चा के दौरान एक सवाल के जवाब में कही। साथ ही उन्होंने कहा कि संकट को खत्म करने भारत का रुख इस तरह की किसी भी पहल को आगे बढ़ाना है।
जयशंकर ने यूक्रेन में रूस की सैन्य कार्रवाई पर भारत के रुख की आलोचना का जवाब देते हुए कहा कि पश्चिमी शक्तियां पिछले साल अफगानिस्तान में हुए घटनाक्रम सहित एशिया की मुख्य चुनौतियों से बेपरवाह रही हैं।उन्होंने कहा, हमने यूक्रेन मुद्दे पर कल काफी वक्त बिताया और मैंने न सिर्फ यह विस्तार से बताने की कोशिश की कि हमारे विचार क्या हैं।
बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि हमें लगता है कि आगे की सर्वश्रेष्ठ राह लड़ाई रोकने, वार्ता करने और आगे बढ़ने के रास्ते तलाशने पर जोर देना होगा। हमें लगता है कि हमारी सोच, हमारा रुख उस दिशा में आगे बढ़ने का सही तरीका है। उल्लेखनीय है कि भारत ने यूक्रेन पर किये गये रूसी हमले की अब तक सार्वजनिक रूप से निंदा नहीं की है और वार्ता एवं कूटनीति के जरिये संघर्ष का समाधान करने की अपील करता रहा है।
जयशंकर ने अपने संबोधन में भारत की आजादी के बाद के 75 वर्षों के सफर के बारे में चर्चा की और इस बात को रेखांकित किया कि देश ने दक्षिण एशिया में लोकतंत्र को बढ़ावा देने में किस तरह से भूमिका निभाई है। विदेश मंत्री ने मानव संसाधन और विनिर्माण पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिये जाने का जिक्र किया और कहा कि विदेश नीति के तहत बाहरी सुरक्षा खतरों पर शायद ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया।
विदेश मंत्री ने कहा, हम कौन हैं, इस बारे में हमें आश्वस्त रहना होगा। मुझे लगता है कि हम कौन हैं… इस आधार पर विश्व के देशों से बात करना बेहतर होगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि भारत अपनी प्रतिबद्धताओं, जिम्मेदारियों और अगले 25 वर्षों में अपनी भूमिकाओं के संदर्भ में अत्यधिक अंतरराष्ट्रीय होगा। यह पूछे जाने पर कि भारत विश्व से क्या उम्मीद करता है। जयशंकर ने कहा, ‘‘हमारी विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखला के बारे में काफी बातें की जाती हैं और लोग पारर्दिशता एवं कसौटी पर खरी उतरी प्रौद्योगिकी के बारे में बात करते हैं।
भारत और भी कार्य कर सकता है और शेष विश्व को प्रर्दिशत कर सकता है कि भारत से विश्व को कहीं अधिक लाभ हो रहा है।’’ उन्होंने भारत की 75 वर्षों की सफल लोकतांत्रिक यात्रा का जिक्र करते हुए कहा कि भारत ने जो विकल्प चुने उसका व्यापक वैश्विक प्रभाव पड़ा है। उन्होंने कहा, यदि आज वैश्विक स्तर पर लोकतंत्र है…तो मुझे लगता है कि कहीं न कहीं इसका श्रेय भारत को जाता है। उन्होंने कहा कि पीछे मुड़ कर यह देखना भी जरूरी है कि देश किस क्षेत्र में पीछे छूट गया।
उन्होंने कहा, एक तो यह कि, स्पष्ट रूप से हमने अपने सामाजिक संकेतकों, हमारे मानव संसाधन, जैसा कि होना चाहिए था, पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। दूसरा यह कि, हमने विनिर्माण और प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित नहीं किया, जैसा कि करना चाहिए था। और तीसरा यह कि, विदेश नीति के संदर्भ में, विभिन्न रूप में, हमने बा‘ सुरक्षा खतरों पर उतना ध्यान नहीं दिया, जितना कि हमें देना चाहिए था। जयशंकर ने कहा कि भारत ने दक्षिण एशिया में लोकतंत्र का प्रसार करने में योगदान दिया।