विश्लेषण

मुस्कुराइए कि आप मध्यप्रदेश में हैं

धिक्कार है! हजार बार धिक्कार है!! आईडी चौरसिया (ID Chaurasia) की पेशानी पर कोई बल नहीं दिख रहा. मेरी परेशानी उसके परेशान न होने को लेकर नहीं है। न ही मैं इस बात से नाखुश हूँ कि यह डॉक्टर बर्खास्त करना तो दूर, निलंबन की कार्यवाही तक की चपेट में नहीं आया है। शिकवा-शिकायत किसी और बात का है. हमीदिया अस्पताल Hamidia Hospital) के अधीक्षक पद से हटाया गया यह शख्स राज्य सरकार की कमजोरी का सशक्त परिचायक बनकर सामने उभरा है।

कोरोना से बचने के लिए  जरूरी इंजेक्शन की हमीदिया अस्पताल से चोरी हो जाती है. ‘उल्टा लटका दूंगा’ ‘जमीन में गाड़ दूंगा’ वाली सरकार केवल यह कर पाती है कि अस्पताल के अधीक्षक को पद से हटा दिया जाता है। हो गया उलटा लटकाना ! हो गया जि़ंदा गाडऩा!! उल्टा तो पूरा का पूरा सिस्टम लटका दिख रहा है और उसके साथ ही आम जनता की उम्मीदें भी जमीन के भीतर गाड़ दी गयी साफ़ दिख रही हैं।





डॉक्टर चौरसिया ने मीडिया से कहा कि उन्हें अधीक्षक पद से हटाया नहीं गया है, बल्कि वे तो खुद ही ऐसा किये जाने के लिए आवेदन कर रहे थे. यह तेवर बताते हैं कि सरकार की कार्यवाही से चौरसिया की सेहत पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ा है. मेरी मंशा भी उनके साथ ऐसा होने के नहीं है। मगर इससे यह तो  साफ़ हो ही   जाता है कि कोरोना (Corona) जैसे काल में भी राज्य सरकार की  मशीनरी में उसका खौफ उस स्तर का  नहीं है, जैसा दिखाने का पुरजोर प्रयास किया जाता है।

विश्व की सबसे बड़ी त्रासदी का समय। मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में मौत का हर जगह तांडव। उसके बीच राजधानी के अस्पताल से इंजेक्शनों  की चोरी। घटनाक्रम सामने आते ही सरकार की तो जैसे भृकुटि तन गयी थी। इस प्रवृत्ति पर प्रहार करने के लिए शासन की मु_ी भिंच गयी थी। ऐसा लगा कि स्वास्थ्य आग्रह वाले हुक्मरान इस दिशा में सुधार आग्रह वाले कदम उठा लेंगे। मुमकिन है कि अधीक्षक पद पर  चेहरा बदल देने मात्र को सरकार ‘बेहद सख्त कार्यवाही’ का आदर्श मापदंड मानती हो, लेकिन चौरसिया के तेवर देखकर साफ़ है कि इस फैसले से सरकार नामक संस्था से खौफ खाने जैसा कोई सन्देश तो प्रसारित नहीं ही हुआ है। यह वाकई धिक्कार का विषय है।





राज्य का हाई कोर्ट शासन को लताड़  लगा रहा है। जज जब यह कहते हैं कि ऐसे चिंताजनक हालत में कोर्ट चुप नहीं बैठ सकती तो इसका साफ़ मतालब होता है कि हालात से निपटने के लिए जिन्हें कुछ करना है, वे नाकाम साबित हुए हैं। और अदालत की ऐसे तीखी टिप्पणी तथा उससे भी कड़क निर्देशों के चौबीस घंटे से भी कम समय के भीतर मीडिया के सामने पूरी तसल्ली और ठसक से बात कर रहे डॉक्टर चौरसिया इस बात को साफ़ बताते हैं कि कोरोना को लेकर दिखाई जा रही चिंता तथा गंभीरता वाकई में कितनी उथली स्वरूप की हैं. क्योंकि यदि आपके किसी कदम से गलत के भीतर बहुत सही किस्म की सनसनी का प्रसार नहीं होता तो इसका फिर कोई अर्थ नहीं रह जाता है।  मेरी यह अभिव्यक्ति शायद अतिशयोक्ति लगे. लेकिन यह है सही, यकीन न हो तो रेमडेसिविर (Remdesivir) इंजेक्शन की कमी से जूझ रहे किसी परिवार के सामने चौरसिया को पद से हटाने वाली नोटशीट लेकर चले जाइये। वो परिवार या तो उस कागज़ पर गुस्से से  थूक देगा और या फिर बेबस होकर खून के आंसुओं से उस कागज़ को लाल कर देगा। क्योंकि उसे ऐसी दिखावटी कार्यवाही से न न्याय मिला है और न ही तसल्ली।

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दरअसल यह केवल आज की बात नहीं है. सरकारों द्वारा समय-समय पर कार्यवाही के नाम पर ‘पिक एंड चूज’ (Pick and choose) वाला व्यवहार किया ही जाता रहा है। विंध्य क्षेत्र के एक शख्स को केवल क्षेत्रवाद के आधार पर एक विश्वविद्यालय का कुलसचिव बना दिया जाता है। बाद में वही अफसर भ्रष्टाचार सहित कदाचार के नित नए अध्याय  बेख़ौफ़ होकर रचता चला जाता है। रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ाया एक अफसर इस घबराहट से दम तोड़ देता है। तब क्षेत्रवाद के चलते  ही उसकी पत्नी को राज्य सरकार में ए क्लास का पद दे  दिया जाता है. अपनी त्याज्य बहुत की आत्महत्या के मामले में सीधा-सीधा घिरा होने के बाद भी कोई शख्स ठप्पे से मंत्री बना रहता है. तो जब पूरे कुँए में हमेशा से ही ऐसी भांग घुली हुई हो तो इसका विलाप करने से क्या हासिल हो जाएगा! लगे रहिये डॉक्टर चौरसिया, और मुस्कुराइए, क्योंकि आप मध्यप्रदेश में हैं।

 

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