धर्म

भाद्रपद माह का शनि प्रदोष व्रत कल,जानें पूजा के लिए शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार हर माह में प्रदोष व्रत दो बार शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को आता है। जब त्रयोदशी तिथि के साथ शनिवार का दिन भी हो तो इसे शनि प्रदोष व्रत कहते हैं। भाद्रपद मास का अंतिम प्रदोष व्रत 18 सितंबर को है। संयोग से भाद्रपद मास का दोनों प्रदोष व्रत शनि प्रदोष है। शनि प्रदोष व्रत के दिन संध्या मुहूर्त में भगवान शिव और माता पार्वती की ​विधि विधान से पूजा की जाती है। इस व्रत को संतान प्राप्ति के लिए रखा जाता । इस व्रत को रखने वाले भक्तों के जीवन से दु:ख दरिद्रता भी दूर होती है। इस दिन प्रदोष काल में विधिवत्त तरीके से भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है, सब संकट दूर हो जाते हैं और मान-सम्मान बढ़ता है।

शनि प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त

शनि शुक्ल प्रदोष व्रत- 18 सितंबर 2021 शनिवार को
त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ – 18 सितंबर 2021 को 06:54 एएम बजे
त्रयोदशी तिथि समाप्त – 19 सितंबर 2021 को 05:59 एएम बजे
प्रदोष पूजा मुहूर्त – 18 सितंबर को शाम 06:23 बजे से 08:44 बजे तक
अवधि – 02 घण्टे 21 मिनट

शनि प्रदोष व्रत पूजा कब होगी?
त्रयोदशी तारीख प्रदोष काल के समय समाप्त होती है। उस दिन व्रत किया जाता है। प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में करना शुभ होता है। यह सूर्यास्त से आरंभ होता है। जब त्रयोदशी और प्रदोष साथ होते हैं। उस समय भगवान शिव की पूजा करने से जातकों को दुखों से मुक्ति मिलती है। परिवार में खुशीहाली आती है और लंबे समय से किसी बीमारी से परेशान है, तो उससे भी राहत मिलती है।

शनि प्रदोष व्रत महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शनि प्रदोष व्रत संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है। जिन लोगों के कोई बच्चे नहीं होते या वंश बढ़ाने के लिए ज्योतिषाचार्य शनि प्रदोष व्रत रखने को कहते हैं। प्रदोष व्रत से व्यक्ति को शिवजी की कृपा से सुख, समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है।

प्रदोष व्रत की पूजा विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प करें। शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग पर अथवा घर पर ही बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव की पूजा करें। शिवजी की कृपा पाने के लिए भगवान शिव के मन्त्र ॐ नमः शिवाय का मन ही मन जप करते रहें। प्रदोष बेला में फिर से भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक करने के बाद गंगाजल मिले हुए शुद्ध जल से भगवान का अभिषेक करें। शिवलिंग पर शमी, बेल पत्र, कनेर, धतूरा, चावल, फूल, धूप, दीप, फल, पान, सुपारी आदि अर्पित करें। इसके बाद शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करें एवं शिव चालीसा का पाठ करें। तत्पश्चात कपूर प्रज्वलित कर भगवान की आरती कर भूल-चूक की क्षमा मागें।

प्रदोष व्रत कथा
प्राचीन समय में एक नगर में एक सेठ अपने परिवार के साथ निवास करता था। विवाह के काफी समय बाद भी उसे संतान सुख नहीं मिला। इससे सेठ और सेठानी दुखी थे। एक दिन दोनों ने तीर्थ यात्रा पर जाने का फैसला किया। शुभ मुहूर्त में दोनों तीर्थ यात्रा पर निकल पड़े। रास्ते में एक महात्मा मिले। दोनों ने उस महात्मा से आशीष लिया। ध्यान से विरक्त होने के बाद उस साधु ने दोनों की बातें सुनीं। फिर दोनों को शनि प्रदोष व्रत करने का सुझाव दिया। तीर्थ यात्रा से आने के बाद उन दोनों ने विधि विधान से शनि प्रदोष का व्रत किया। भगवान शिव की पूजा की। कुछ समय बाद सेठानी मां बनी और उसने एक बच्चे को जन्म दिया। शनि प्रदोष व्रत के प्रभाव से उन दोनों को संतान की प्राप्ति हुई।

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