रीवा: आयुर्वेद महाविद्यालय को 50 साल बाद भी नहीं मिला दधीच, नकली बॉडी से पढ़ाई कर छात्र बन रहे डॉक्टर
रीवा में आयुर्वेद महाविद्यालय को संचालित होते करीब 50 वर्ष पूरे होने को हैं। तब से लेकर अब तक इस कॉलेज ने हजारों आयुर्वेद चिकित्सक देश को दिया है। कई चिकित्सक तो देश के बाहर भी काम कर नाम रोशन कर रहे हैं। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि यहां आज तक एक भी मृत मानव शरीर नहीं मिला, जिससे छात्र पढ़ाई कर सकें।

रीवा। सन 1972 से रीवा में आयुर्वेद महाविद्यालय संचालित हो रहा है। 14 विभागों वाले इस महाविद्यालय में बीएएमएस की 75 सीटे संचालित हो रही है। यनी वर्तमान में करीब 3 सौ से अधिक छात्र अध्ययनरत हैं। लेकिन हैरानी की बात है कि इन आयुर्वेद छात्रों को पढ़ाई के लिए अब तक एक भी दधीच यानी मृत मानव शरीर नहीं मिला है। नकली बॉडी में प्रेक्टिकल कर छात्र डॉक्टर बन रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण एनाटॉमी एक्ट की कठिनाईयों को बताया जा रहा है।
रीवा में आयुर्वेद महाविद्यालय को संचालित होते करीब 50 वर्ष पूरे होने को हैं। तब से लेकर अब तक इस कॉलेज ने हजारों आयुर्वेद चिकित्सक देश को दिया है। कई चिकित्सक तो देश के बाहर भी काम कर नाम रोशन कर रहे हैं। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि यहां आज तक एक भी मृत मानव शरीर नहीं मिला, जिससे छात्र पढ़ाई कर सकें। पढ़ाई के लिए मेडिकल कॉलेज प्रबंधन नकली बॉडी मंगाता है, उसी से पढ़ाई कर छात्र डॉक्टर बन रहे हैं। ऐसा नहीं कि कॉलेज प्रबंधन की ओर से मृत मानव शरीर मिलने का प्रयास नहीं किया जा रहा है। इसके लिए कॉलेज के प्राचार्य द्वारा देश के कई महानगरों के मेडिकल कॉलेज, पुलिस व एफएसएल विभाग से पत्राचार किया गया और मानव शरीर की डिमांड की गई है, लेकिन आज तक किसी ने पत्रों पर अमल नहीं किया। लिहाजा आज भी यहां पढ़ने वाले छात्र नकली मानव शरीर में प्रैक्टिकल कर रहे हैं।
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आयुर्वेद महाविद्यालय में 14 विभाग संचालित हो रहे हैं। इसमें मुख्य रूप से काय चिकित्सा, शल्य तंत्र, शालाक्य, स्त्री प्रसूती, पंचकर्म, क्रिया शरीर, रचना शरीर यानी एनाटॉमी, अगध तंत्र, निदान समेत 14 विभाग शामिल हैं। इन विभागों के लिए 75 सीटें हैं, जिसमें छात्र एवं छात्राएं शामिल हैं।
नहीं पूरी हुई मांग
आयुर्वेद कॉलेज के शरीर रचना विभाग द्वारा श्यामशाह मेडिकल कॉलेज के डीन को पत्र लिख कर मानव शरीर के अंगों की मांग की गई थी, लेकिन मानव अंग कम होने के कारण कॉलेज प्रबंधन ने पत्र लिख कर मानव अंग उपलब्ध कराने में विवशता जता दी थी। हालांकि एसएस मेडिकल कॉलेज ने कुछ मानव अंग दिए थे, लेकिन यह पूरी तरह से खराब थे, जिसमें मेडिकल कॉलेज के छात्र पहले ही पढ़ाई कर चुके थे। ऐसे में यह अंग आयुर्वेद छात्रों के काम नहीं आए।