मंदसौर में है रावण की ससुराल,रावण प्रतिमा के आगे घूंघट में जाती हैं महिलाएं ,उतारती हैं आरती
देशभर में दशहरा पर रावण दहन या रावन वध की परंपरा है, लेकिन कुछ जगहों पर इस दिन रावण की पूजा करने की भी मान्यता है ऐसे ही मंदसौर जिले को रावण का ससुराल माना जाता है, यानी उसकी पत्नी मंदोदरी का मायका।मान्यता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी मंदसौर की रहने वाली थीं। प्राचीन समय में मंदसौर का नाम मंदोत्तरी हुआ करता था, इसीलिए मंदसौर रावण की ससुराल है। पूर्व में इस जिले को दशपुर के नाम से पहचाना जाता था। यहां के खानपुरा क्षेत्र में रुण्डी नामक स्थान पर रावण की प्रतिमा स्थापित है, जिसके 10 सिर हैं। मंदसौर में नामदेव समाज की महिलाएं आज भी रावण की प्रतिमा के सामने घूंघट करती हैं। महिलाएं रावण के पैरों पर लच्छा (धागा) बांधती हैं। मान्यता है कि धागा बांधने से बीमारियां दूर होती हैं। यहां दशहरे के दिन रावण की पूजा की जाती है। हर साल दशहरे पर रावण के पूजन का आयोजन मंदसौर के नामदेव समाज द्वारा किया जाता है।
गधे का सिर लगाया
नामदेव समाज के लोगों के अनुसार खानपुरा में करीब 200 साल से भी पुरानी रावण की प्रतिमा लगी हुई थी। 2006-07 में आकाशीय बिजली गिरने से यह प्रतिमा खंडित हो गई। उसके बाद नगर पालिका ने रावण की दूसरी प्रतिमा की स्थापना कराई। हर साल नगर पालिका प्रतिमा का रखरखाव कराती है। रावण की प्रतिमा पर 4-4 सिर दोनों तरफ व एक मुख्य सिर है। मुख्य सिर के ऊपर गधे का एक सिर है। बुजुर्गों की मांने तो रावण की बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी, उसके इसी अवगुण को दर्शाने के लिए प्रतिमा पर गधे का भी एक सिर लगाया गया है।
300 से ज्यादा साल से होती है पूजा
नामदेव समाज पिछले 300 से ज्यादा वर्षों से दशानन रावण की पूजा करता आ रहा है। नामदेव समाज रावण की पत्नी मंदोदरी को अपनी बेटी मानता है। इस नाते समुदाय के लोग रावण को अपना जमाई मानते हैं और पूजा भी करते हैं। मंदसौर में नामदेव छिपा समाज के अध्यक्ष राजेश मेडतवाल बताते हैं कि रावण की पत्नी मंदोदरी नामदेव परिवार की ही बेटी थीं, इसलिए रावण को दामाद की तरह सम्मान दिया जाता है।
धागा बांधने से दूर होती है बीमारी
यहीं नहीं मान्यता है कि यहां रावण के पैर में धागे बांधने से बीमारियां दूर होती है। इस गांव में लोग रावण को बाबा को कहकर पूजते हैं। धागा दाहिन पैर में बांधी जाती है। साथ ही क्षेत्र की खुशहाली, समाज सहित शहर के लोगों को बीमारियों से दूर रखने एवं प्राकृतिक प्रकोप से बचाने के लिए प्रार्थना करते हुए पूजा-अर्चना करते हैं।
घूंघट में आती हैं महिलाएं
रावण यहां का दामाद है। इसलिए महिलाएं जब भी प्रतिमा के सामने पहुंचती हैं तो घूंघट डाल लेती हैं। जमाई के सामने कोई महिला सिर खोलकर नहीं निकलती है। रावण के पैरों पर लच्छा (धागा) बांधती हैं।
सुबह पूजा, शाम को वध
दशहरे के दिन नामदेव समाज ढोल नगाड़ों के साथ जुलूस के रूप में रावण की प्रतिमा स्थल तक आते हैं। यहां दामाद रूपी रावण की पूजा आराधना कर सुख समृद्धि की कामना की जाती है। इसके बाद शाम को समाज रावण का वध किया जाता है। इसके पीछे मान्यता यह हैं कि अच्छाई होने पर की पूजा की जाती है और बुराई हो तो वध कर दिया जाता है।
क्षमा मांगते हैं
रावण के वध से पहले लोग रावण के सामने खड़े होकर क्षमा-याचना करते हैं। इस दौरान कहते हैं कि आपने सीता का हरण किया था, इसलिए राम की सेना आपका वध करने आई है। उसके बाद प्रतिमा स्थल पर अंधेरा छा जाता है और फिर उजाला छाते ही राम की सेना जश्न मनाने लगती है।