विश्लेषण

इस बुजुर्ग अवस्था में कहां भटकेंगे राणा 

‘अनवर ड्राइवर’ के चिरंजीव शायर मुनव्वर राणा (Munawwar Rana) कोलकाता (Kolkata) चले जाएंगे। अपने दिवंगत पिताश्री का यह नाम खुद राणा ने ही सार्वजनिक किया है। उत्तरप्रदेश (UP) में एक दफा फिर योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) की सरकार बन गयी तो वह राज्य छोड़ देंगे। यह घोषणा खुद राणा ने की है। राणा के कुनबे का पश्चिम बंगाल (West Bengal) की राजधानी से पुराना नाता रहा है। जहां उनका भतीजा अपने कुटीर उद्योग में बम बनाते समय हुए धमाके में मारा गया था। यह बात भी स्वयं राणा ने ही मीडिया से कुछ दिन पहले साझा की है। राणा ने कभी लिखा था, ‘इश्क है तो इश्क का इजहार होना चाहिए। आपको चेहरे से भी बीमार होना चाहिए।’ राणा का इजहारे-इश्क बहुकोणीय है। कोंकण रेलवे (Konkan Railway) के उस सेक्शन की तरह, जहां पटरियां अलग-अलग सुरंगों से होकर निकलती हैं। राणा कुछ समय पहले तक ममतामयी स्नेह में डूबे हुए थे। गुजिश्ता कुछ वक़्त से वे जमीन-जायदाद और ‘पूत कपूत तो कर धन संचय’ वाली सीलन और अंधेरे से भरी गुफा में दिख रहे हैं। देश के कानून से वह खासी ना-इत्तेफ़ाक़ी रखते हैं। उनकी सुपुत्रियां पिता-जनित इस संस्कार की कई दफा सार्वजनिक रूप से नुमाइश कर चुकी हैं। फिर वो सुअवसर भी आया, जब अपने घर में आयी पुलिस का विरोध कर राणा ने व्यवस्था के खिलाफ सपरिवार ‘अविनय अवज्ञा आंदोलन’ का प्रदर्शन कर दिया। सही पढ़ा आपने। यहां ‘अविनय’ ही लिखा गया है, ‘सविनय’ नहीं। क्योंकि लखनऊ के उस घर में उस रात विनय जैसे किसी तत्व की कोई गुंजाइश ही नहीं छोड़ी गयी थी।

कोलकाता उस समय कलकत्ता (Calcutta) हुआ करता था, जब राणा का परिवार वहां रहता था। राणा के सहोदर की कुंडली आज भी वहां के पुलिस थाने में आंखें बिछाये उनकी प्रतीक्षा कर रही है। यह बात भी मुनव्वर ने ही सार्वजनिक की है। फिर यह परिवार वहां से लखनऊ चला आया। मुनव्वर राणा ने पिता के ट्रक के स्टेयरिंग की जगह कलम थामी और कमाल के शायर बन गए। अब वह वापस उसी कलकत्ता जाने को तैयार हैं। यह स्वाभाविक प्रक्रिया है। मानव स्वभाव है कि इंसान उसी जगह का दाना-पानी पसंद करता है, जहां माहौल उसके लिए अनुकूल हो। कोलकाता इस हिसाब से राणा के लिए एकदम मुफीद है। कम से कम अगले पांच साल तक तो राणा अपनी तबियत के लिए एकदम दुरुस्त माहौल में कोलकाता में रह सकते हैं। ताज्जुब है कि राणा ने अपनी फितरत से बिलकुल जुदा योगी आदित्यनाथ सरकार के राज्य में भी साढ़े चार साल रहने का साहस दिखा दिया। यह भी बड़ी हिम्मत ही कही जाएगी कि यह शायर अगले साल के चुनावी नतीजे आने तक भी वहीं डटे रहने की बात कह रहा है। वरना तो यह उस सरकार का मामला है, जिससे ‘वैचारिक मतभेद’ के चलते उपजे डर से अनेक हिस्ट्रीशीटर तक मुर्दे की तरह शांत हो चुके हैं। वे या तो अपने परिवेश या फिर उस प्रदेश से ही पलायन कर चुके हैं।

योगी ने आखिर ऐसा क्या कर दिया, जो एक शायर के बगावती सुर किताबों से कागज़ की बजाय अखबारी सफों पर उतर आये? नहीं, इस पड़ताल के केंद्र में केवल योगी को रखना अधूरी व्याख्या ही होगी। वजह यह कि राणा ने उत्तरप्रदेश छोड़कर दिल्ली या अपने राज्य की सीमा से लगे मध्यप्रदेश (MadhyaPradesh) अथवा उत्तराखंड (Uttarakhand) जाने की बात नहीं कही है। उन्होंने सीधे पश्चिम बंगाल की दिशा में मुंह करके नींद लेना शुरू कर दिया है। इसलिए बहुत आसानी से इस तथ्य पर यकीन किया जा सकता है कि मामला एक विचारधारा विशेष से छिटकने की प्रक्रिया को निर्णायक स्वरूप प्रदान करने वाला है। दिल्ली में भले ही अरविन्द केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की सरकार हो, लेकिन वहां की कानून-व्यवस्था तो वही सीएए (CAA) और एनआरसी (NRC) समर्थक एनडीए (NDA) की सरकार के पास है। इस लिहाज से यमुना (River Yamuna) का पानी भी राणा को सूट नहीं ही करेगा। पश्चिम बंगाल ही उनके लिए ठीक रहेगा। उस प्रदेश में राणा के लिए अनुकूल परिस्थितियों वाली पंचवर्षीय व्यवस्था जो कायम हो चुकी है।

इस देश का महान संविधान (Indian Constitution) नागरिकों को कहीं भी बसने की आजादी प्रदान करता है। राणा भी अपने लिए इस फैसले को लेने में स्वतंत्र हैं। लेकिन किसी व्यक्ति या विचारधारा से ना-इत्तेफ़ाक़ी के चलते आखिर कोई कब तक और कहां तक भटक सकता है? कल को यदि कोलकाता वाला सूबा भी भाजपाई हो गया तो फिर राणा क्या कहीं और जाने के लिए मंसूबा बनाने लगेंगे? आप तो साहित्यकार हैं। आपकी प्रतिष्ठा है। यदि किसी व्यवस्था से शिकायत है तो उसका तर्कपूर्ण विरोध करना आपके बाएं हाथ का खेल होना चाहिए। शायद यही समस्या है कि राणा के पास कोई तर्क नहीं है। इस बुजुर्ग अवस्था में कहां भटकेंगे राणा जी!

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