प्रकाश भटनागर
वह शख्स यकीनन घाघ होने की हद तक चतुर है, जो राहुल गांधी के लिए वैचारिक खुराक का बंदोबस्त करता है। वो लोग यकीनन तरस खाने की हद तक मजबूर हैं, जो इस खुराक से हुई वमन वाली प्रक्रिया की सफाई के लिए पाबंद किए गए हैं। इसका विस्तार आगे करेंगे। पहली बात यह कि कांग्रेस के बेहद थिक (मोटी) चमड़ी वाले स्वयंभू थिंक टैंक राहुल गांधी ने एक बार फिर वक्ता और विचारक के रूप में अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया है। इंडियन स्टेट के खिलाफ संघर्ष वाली राहुल की बात बताती है कि कांग्रेसजनों के इन बिन ब्याहे पिताश्री की अक्ल आज भी रह-रहकर उनसे अलग उस जगह चली जाती है, जहां चारों तरफ भरपूर घास का प्रबंध रहता है।
जरा सोचिए भारतीय राज्य के खिलाफ ही युद्ध जैसी यह बात उस पार्टी का कर्णधार कर रहा है, जो पार्टी यह कहते हुए थकती नहीं है कि उसने देश को स्वतंत्र कराने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। जो रोज संविधान को हाथ में लेकर घूमते हुए उसकी रक्षा की सौगंध खा रहे हैं। इस कथन के चलते राहुल के लिए किसी संबोधन की तलाश में अपनी कलम गंदी किए जाने से बेहतर है कि इसके निहितार्थ तलाशे जाएं। पूरी फिक्र के साथ यह समझना बहुत जरूरी है कि तीन भूतपूर्व प्रधानमंत्रियों और तीन वर्तमान सांसदों वाले परिवार के इस चश्मो-चिराग की नीयत क्या है और वह देश को किस नियति की तरफ धकेलने की मंशा रख रहा है?
यदि आप सत्ता में आने के लिए देश से ही जंग लड़ने के मंसूबे पाल रहे हैं तो फिर यह मामला दिमागी जंग वाला कहकर खारिज नहीं किया जा सकता। हर बात इस तर्क और स्थापित तथ्य की आड़ में खारिज नहीं की जा सकती कि राहुल अक्लमंद होने की बजाय मंद अक्ल की स्थिति का शिकार होकर आएं-बाएं-शाएं कुछ भी बोल जाते हैं। भाजपा और कांग्रेस के आम तौर पर खिलाफ रही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टियों ने भी आज तक कुछ ऐसा नहीं कहा, जो राहुल कह गए हैं। यकीनन कांग्रेस का पंजा आज वामपंथ से आगे नक्सलवादी लकीरों से सन चुका है। इस पार्टी में कांग्रेसजनों की जगह कॉमरेडों का कब्जा हो चुका है। शायद इसीलिए राहुल नए मुल्ले की तर्ज पर दनादन प्याज खाने की शैली में वह कहे और किए जा रहे हैं, जिसे लाल सलाम वालों ने भी खुलकर कहने और करने में हमेशा ही परहेज किया है।
यहीं से उस शख्स की बात आती है जो घाघ होने की हद तक चतुर होकर राहुल गांधी के लिए बयान लिखता/सुझाता है। वो इंसान अपनी विचारधारा का इस देश और लोकतंत्र के खिलाफ बेहद घातक एजेंडा लेकर आगे बढ़ रहा है। वह जानता है कि संघ, भाजपा और मोदी के विरोध में जुबान पर मिर्ची रखकर घूम रहे राहुल के मुंह में कोई भी बात रख दो, वो उसे खुद ही ऐसा तड़का लगा देंगे, जिससे एजेंडे वाले विषय को भरपूर तरीके से विषैला रूप मिल जाएगा। ऐसा ही हो भी रहा है। ऐसा होने का राहुल पहले भी कई बार व्यावहारिक रूप से परिचय दे चुके हैं।
खैर, राहुल की बेचारगी पर भी सहानुभूति के साथ विचार किया जाना चाहिए। वे मानसिक रूप से बेहद शोचनीय अवस्था के शिकार हैं। वह इंसान कमजोर है, जिसकी अपनी कोई विचारधारा नहीं है, लेकिन वह इंसान तो राहुल ही हो सकता है, जिसके सिस्टम में विचार प्रक्रिया वाली मशीन तो दूर, उसका बटन तक नहीं है। किसी सामान्य दिखने वाले, पढ़े-लिखे और संभ्रांत परिवार के व्यक्ति के साथ कुदरत ऐसा मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट वाला अत्याचार कर सकती है, यह सोचकर मुझे राहुल से पूरी सहानुभूति हो रही है। सहानुभूति उनसे भी, जिनका शुरू में उल्लेख हुआ। वो लोग, जो दिल से कांग्रेस से जुड़े हैं और उन्हें रह-रहकर उस दलदल में उतरना पड़ता है, जहां राहुल के ऐसे कहे और किए की खतरनाक कीचड को हलुए के रूप में जस्टिफाई करने की बड़ी चुनौती से जूझना होता है।
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा था, ‘बुद्धिमान कहने से पहले सोचता है और मूर्ख कहता पहले और सोचता बाद में है।’ चुनावी मौसम में खुद को सनातनी बताने की विवशता के बीच शायद कभी यह सद्वाक्य राहुल ने भी पढ़ा/सुना होगा। लेकिन उन्होंने इसे सिरे से खारिज कर दिया होगा। क्योंकि वो तो ऐसे शख्स हैं, जो न बोलने के पहले और न ही बोलने के बाद सोचते हैं। आचार्य जी अब इस दुनिया में नहीं हैं। वरना बहुत संभव था कि राहुल को देखने और सुनने के बाद वे अपने कहे में संशोधन करते।