शख्सियत

नहीं रहे पंजाब की राजनीति के ‘पितामह’, जानें इस शख्सियत के बारे में सब कुछ

भारत की राजनीति में एक और युग का अंत हो गया। पंजाब की राजनीति के ‘पितामह’ कहे जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का 95 वर्ष की आयु में मंगलवार की शाम मोहाली के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया।

भारत की राजनीति में एक और युग का अंत हो गया। पंजाब की राजनीति के ‘पितामह’ कहे जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का 95 वर्ष की आयु में मंगलवार की शाम मोहाली के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। उन्हें सांस लेने में तकलीफ के बाद 16 अप्रैल को मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां 25 अप्रैल को रात 7.42 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। भारत की सियासत में उनका कद कितना बड़ा था, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि केंद्र सरकार ने उनके निधन पर जहां दो दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की है, वहीं पंजाब सरकार ने एक दिन का राजकीय अवकाश घोषित किया है। प्रकाश सिंह बादल का राजनीतिक जीवन 1947 में भारत की आजादी के तुरंत बाद शुरू हुआ था। वह एक प्रशासनिक अधिकारी बनना चाहते थे, लेकिन अकाली नेता ज्ञानी करतार सिंह से प्रेरित होकर सियासत में आने का फैसला किया। ऐसे में ये जानना जरुरी हो जाता है कि आखिर इस शख्सियत को पंजाब की राजनीति के ‘पितामह’ की उपाधि क्यों दी गई? आखिर इनका राजनीति सफर कैसा रहा ?

ऐसा था प्रकाश सिंह बादल का राजनीतिक सफर

1927 में जन्मे प्रकाश सिंह बादल ने पंजाब के बठिंडा जिले के बादल गांव के सरपंच बनने के साथ अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी। उन्होंने सरपंच का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। तब वे सबसे कम उम्र के सरपंच बने थे। 1957 में उन्होंने पहला विधानसभा चुनाव लड़ा। 1969 में उन्होंने दोबारा जीत हासिल की। 1969-70 तक वे पंचायत राज, पशु पालन, डेयरी आदि मंत्रालयों के मंत्री रहे। प्रकाश सिंह बादल ने अपनी सियासी पारी उसी साल शुरू की थी। जब देश आजाद हुआ था। इसके बाद वह पंजाब के पांच बार के मुख्यमंत्री बने। 1970-71, 1977-80, 1997-2002 में पंजाब के मुख्यमंत्री बने। वे 1972, 1980 और 2002 में विरोधी दल के नेता भी बने। मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री रहते वे सांसद भी चुने गए। 2022 का पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ने के बाद वे सबसे अधिक उम्र के उम्मीदवार भी बने। वे एक ऐसे जननेता थे जिन्होंने 1969 से 1992 तक किसी भी विधानसभा चुनाव में हार का मुंह तक नहीं देखा था। इसके बाद 1992 में उन्होंने खुद ही चुनाव न लड़ने का एलान कर दिया था।

सिख राजनीति के हीरो थे बादल

प्रकाश सिंह बादल को सिख राजनीतिक का हीरो ऐसे ही नहीं कहा जाता था। प्रकाश सिंह बादल हालांकि सिखों का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी अकाली दल के नेता थे, लेकिन उन्होंने हिंदुत्व की राजनीति करने वाली भारतीय जनता पार्टी के साथ गठजोड़ करके सत्ता हासिल की। राजनीति के गलियारों में उनके कई किस्से काफी मशहूर हैं। चाहे विपक्षी दलों के लिए अपने ही घर के बाहर तंबू लगवा देना हो या विपक्ष के धरने पर पहुंचकर खुद उनसे बातचीत करना हो।

आंदोलनों के लिए जेल भी गए बादल

अकाली दल का शुरू से ही संघर्ष के साथ गहरा रिश्ता रहा है। बादल को पार्टी का अनुशासित और वफादार कैडर माना जाता था। 1980 के दशक में लंबे उग्रवाद तक उन्होंने बहुत कुछ झेला। वह विभिन्न मोर्चों (आंदोलनों) के लिए जेल भी गए थे। बादल के बारे में कहा जाता है कि वह बिना झिझक के फैसले लेने में हमेशा आगे रहे थे। प्रकाश सिंह बादल ज्ञानी करतार सिंह को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।

लोगों की समस्याएं सुनने जाते थे बादल

प्रकाश सिंह बादल 2012 से 2017 तक जब मुख्यमंत्री रहे तो तब वह 85-90 साल के थे तो तब भी पूरे सक्रिय थे। पूरे पंजाब में संगत दर्शन के माध्यम से लोगों की मुश्किलें सुनने के लिए जाते थे। 2017 के बाद जब पंजाब में कांग्रेस की सरकार बन गई तो तब भी वह कांग्रेस सरकार की कारगुजारी पर सवालिया निशान खड़े करते रहे हैं। लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में तो शरीरिक पक्ष से काफी बीमार थे। 2022 के चुनाव में उनके चेहरे पर वो सक्रियता नहीं दिखी,जो पिछले चुनावों में होती थी।

आजादी के बाद हर चुनाव में लिया हिस्सा

एक समय ऐसा भी आया कि जब भी पंजाब की सियासत की बात हो तो जो पहला चेहरा किसी के सामने आता वो प्रकाश सिंह बादल का ही होता। हो भी क्यों न वे अकेली ऐसी शख्सियत थे जो पंजाब के पांच बार मुख्यमंत्री रहे। वे एक ऐसे जननेता थे जिन्होंने 1969 से 1992 तक किसी भी विधानसभा चुनाव में हार का मुंह नहीं देखा। 1992 में तो उन्होंने खुद ही चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया था। दरअसल आजादी के बाद से शायद ही ऐसा कोई चुनाव पंजाब में हुआ जिसमें प्रकाश सिंह बादल ने हिस्सा न लिया हो। उन्होंने हमेशा पंजाब की सियासत को अहमियत दी। केवल एक बार जब देश में आपातकाल लगा तो उन्होंने केन्द्र की सियासत का रूख किया। मोराजी देसाई के वक्त उन्होंने कृषि मंत्रालय का कार्यभार संभाला था। पंजाब में अपनी सियासी पारी के दौरान उन्हें करीब 17 साल जेल में भी बिताने पड़े थे। बहरहाल सच्चाई ये है कि पंजाब ने अपनी सियासत के पितामह को खो दिया है।

पत्नी की मृत्यु के बाद कैंसर के खिलाफ छेड़ी मुहिम

24 मई 2011 को पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की पत्नी सुरिंदर कौर बादल का कैंसर से लंबी लड़ाई के बाद PGI में निधन हो गया था। तब सुरिंदर कौर 72 साल की थीं। सुरिंदर कौर गले के कैंसर से पीड़ित थीं। पत्नी के देहांत के बाद मुख्यमंत्री रहते हुए प्रकाश सिंह बादल ने कैंसर के खिलाफ मुहिम छेड़ दी थी। घर-घर में कैंसर के मरीजों को डायग्नोस करवाया गया था। इतना ही नहीं, सरकारी अस्पतालों में कैंसर के इलाज में तेजी बादल के कारण ही संभव हुई थी। CM रिलीफ फंड भी प्रकाश सिंह बादल ने शुरू करवाया था। जिसमें कैंसर के मरीजों की फाइल पास होने के बाद उन्हें फाइनेंशियल सहायता दी जाती थी, ताकि पीड़ित अपना इलाज करवा सकें।

पीएम मोदी ने नेल्सन मंडेला कहकर किया था संबोधित

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार प्रकाश सिंह बादल की उपस्थिति में ही उन्हें ‘भारत का नेल्सन मंडेला’ कहकर संबोधित किया था। पीएम मोदी ने कहा था कि इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पीएम मोदी ने कहा था कि ”बादल साहब यहां बैठे हैं। ये भारत के नेल्सन मंडेला हैं। बादल साहब जैसे लोगों का बस इतना ही गुनाह था कि सत्ता में बैठे लोगों से उनके विचार अलग थे।

Web Khabar

वेब खबर

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button