ग्वालियरमध्यप्रदेश

श्योपुर के इन मासूमों की तस्वीर सोशल मीडिया में हुई वायरल, भोपाल तक मचा हड़कंप

फोटो सोशल मीडिया से समाचार पत्रों व टीवी चैनलों तक पहुंच गया। भोपाल से इस फोटो लेकर कलेक्टर से जानकारी मांग ली गई, लेकिन जिस मीडियाकर्मी ने यह फोटो खींचा था उसने महिला को फोटो खींचने और उसे बच्चों के लिए चप्पल पहनाने के लिए आर्थिक मदद देने के लिए अलावा कोई जानकारी नहीं ली।

श्योपुर। सोशल मीडिया पर गरीबी और बेबसी को बयां करता एक फोटो ऐसा वायरल हुआ कि उस फोटो ने श्योपुर से लेकर भोपाल तक हलचल मचा दी। आनन—फानन में अधिकारियों ने महिला के परिवारों को तलाशकर उसे उन योजनाओं से लाभांवित कर दिया, जिन योजनाओं का लाभ उसे पात्र होते हुए भी पूरी जिंदगी नहीं मिल रहा था। दरअसल, उक मीडियाकर्मी ने रुकमणी का बाजार में घूमते हुए फोटो सोशल मीडिया में शेयर किया था। जिसमें रुकमणी एक बच्चे को गोद लिए हुई थी और दो बच्चे जो रुकमणी की अंगुली पकड़ चल रहे थे, उन्हें तपती जमीन से बचाने के लिए पैरों में चप्पल के बजाए पॉलीथिन पहनाई हुई थी।

फोटो सोशल मीडिया से समाचार पत्रों व टीवी चैनलों तक पहुंच गया। भोपाल से इस फोटो लेकर कलेक्टर से जानकारी मांग ली गई, लेकिन जिस मीडियाकर्मी ने यह फोटो खींचा था उसने महिला को फोटो खींचने और उसे बच्चों के लिए चप्पल पहनाने के लिए आर्थिक मदद देने के लिए अलावा कोई जानकारी नहीं ली। प्रशासन पर भोपाल से महिला को तलाशने का दवाब बन गया था। आनन—फानन में कलेक्टर शिवम वर्मा के निर्देश पर सभी सरकारी कर्मचारियों के कामकाज करने वाले व्हाट्सएप ग्रुप पर उक्त महिला का फोटो डाला गया, जिसकी शिनाख्त वार्ड नं. 08 की कार्यकर्ता पिंकी जाटव ने रुकमणी पत्नी सूरज आदिवासी निवासी टेलीफोन एक्सीचेंज के पास झुग्गी-झोपड़ी के रुप में की।

प्रशासन ने महिला की ली तत्काल खबर
सूचना मिलने के बाद प्रशासन ने तत्काल महिला की खैरखबर ली, लेकिन प्रशासन जब तक महिला के घर पहुंचता तब तक महिला बच्चों को छोड़कर मजदूरी के लिए राजस्थान के जयपुर पलायन कर चुकी थी। महिला की गैर मौजूदगी में कलेक्टर शिवम वर्मा ने महिला के पति सूरज को बुलाकर उसे तत्काल 10 हजार रुपए आर्थिक सहायता देते हुए एसडीएम को उसके परिवार का नाम बीपीएल सूची में जोड़ने मुफ्त अनाज के लिए पात्रता पर्ची जारी करने, बच्चों को फोस्टर केयर योजना से जोड़ने के निर्देश दिए। सरकार की सुविधाओं का लाभ मिलने से परिवार सरकार और कलेक्टर प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते नहीं थक रहा हैं, लेकिन प्रश्न यह उठ रहा है कि, जिस तरह मीडिया रुकमणी की दरिद्रता और गरीबी को सामने लाया उसी तरह कई परिवार होंगे जो इस तरह गुमनामी में जी रहे होंगे।

पात्र नहीं होने पर भी दी मदद
हालांकि, प्रशासन ने रुकमणी के परिवार को भरपूर सहायता देते हुए उसे सरकारी योजनाओं का वो लाभ दिया, जिसकी वह पात्र नहीं थी। इनमें तीनों बच्चों को फोस्टर केयर योजना से जोड़ना शामिल हैं। इस योजना में उन बच्चों को शामिल किया जाता हैं जो अनाथ होते हैं लेकिन पिता के गंभीर बीमार होने की वजह से कलेक्टर ने विशेष अधिकार का उपयोग करते हुए रुकमणी के तीनों बच्चों को फोस्टर केयर योजना से जोड़कर उनकी पढ़ाई—लिखाई की व्यवस्था शिक्षा विभाग और पोषण की व्यवस्था महिला बाल विकास विभाग को सौंपी।

सहायता मिली पर प्रश्नचिन्ह जरूर छोड़ गई रुकमणी
भले ही रुकमणी के परिवार को कलेक्टर शिवम वर्मा के प्रयास से भरपूर सहायता मिल गई, लेकिन इस तरह की बेबसी से जीवन जी रही रुकमणी की कहानी ने शासन—प्रशासन की कवायदों पर प्रश्नचिन्ह भी लगा दिया हैं। सरकार ऐसे ही परिवारों के लिए मुख्यमंत्री जनसेवा अभियान चलाया जा रहा हैं। शासन—प्रशासन का दावा है कि इस अभियान की पहुंच प्रशासनिक अधिकारियों की हर नागरिक तक बनी हुई हैं। समस्याओं का सुनने और उसका समय सीमा में निराकरण करने वाली इस योजना का दूसरा चरण भी शुरू हो गया हैं, लेकिन रुकमणी के परिवार के पास इस अभियान के दोनों चरणों में एक बार भी दल का नहीं पहुंचना व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा हैं।

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