क्या ये तैयारी है जीत की या फिर है कोई दूसरी बात ?
भोपाल – भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी(Narendra Modi) और गृहमंत्री अमित शाह(Amit shah) के गृह राज्य गुजरात में अब भूपेंद्र पटेल(bhupendra patel) की सरकार है। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के इस्तीफे से लेकर नए मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल के नाम के ऐलान के बीच मुख्यमंत्री के नाम पर तमाम नेताओं के नाम सामने आए लेकिन भूपेन्द्र पटेल के नाम पर किसी भी चर्चा में शामिल नहीं था। गुजरात भाजपा की विधायक दल की बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने भूपेन्द्र पटेल का नाम प्रस्तावित किया और पर्यवेक्षक के रूप में गुजरात पहुंचे केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने उनके नाम की घोषणा कर दी। असम, उत्तराखंड, कर्नाटक और गुजरात में नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने जिस तरह से बिगड़ती परिस्थिति को देखकर समय चूकने से पहले बदलाव किए है, उससे कांग्रेस की सीखने और समझने की जरूरत है, क्योंकि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए विपक्ष का मजबूत होना का बेहद जरूरी है। लेकिन कांग्रेस जिस तरह से एक राजनीतिक दल की तरह न चलकर एक कॉरपोरेट कंपनी की तरह का काम कर रही है उसके फायदे तो केवल गांधी – नेहरू परिवार को ही सकते हैं। क्योंकि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के ‘गांधी’ (Gandhi) और ‘नेहरू’ उपनाम नहीं होने वाले नेता भी कई बार पार्टी में बदलाव के लिए अपनी बात अपने ही नेताओं तक पहुंचा चुके हैं, लेकिन उनकी सलाह ने उन्हें ही पार्टी से साइड लाइन कर दिया।
विकास से नहीं कोई समझौता –
वर्तमान में वैश्विक स्तर पर राजनीति में बदलाव हो रहे है और वक्त – परिस्थिति के साथ बदलाव करने वाली पार्टियां लोकतंत्र की जरूरत बन गई हैं। भारतीय जनता पार्टी ने असम, उत्तराखंड, कर्नाटक और गुजरात के मुख्यमंत्रियों को बदल कर एक नई लाइन खींच दी है। असम में सर्बानंद सोनोवाल की सरकार में विकास कार्य ठीक तरीके से हो रहे थे लेकिन असम में शुरुआत से ही सरकार का चेहरा हेमंत बिस्व सरमा ही थे, तो असम में बीजेपी नेतृत्व ने बदलाव कर संकेत दिया कि हमारे यहां मेहनत का फल जरूर मिलता है। उत्तराखंड में रावत सरकार विकास की रफ्तार नहीं पकड़ पा रही थी, जिसकी जानकारी केंद्रीय नेतृत्व को लगातार मिल रही थी तो वहां से त्रिवेन्द्र सिंह रावत से इस्तीफा लेकर पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री बनाकर मोदी – शाह की जोड़ी ने स्पष्ट संकेत दे दिया था कि विकास से समझौता किसी कीमत पर नहीं हो सकता है। असम और उत्तराखंड के बाद कर्नाटक में बीजेपी की एंट्री कराने वाले कद्दावर नेता और मुख्यमंत्री येदियुरप्पा के कारण पार्टी में खेमेबाजी लगातार बढ़ती जा रही थी तो मोदी – शाह ने येदियुरप्पा से इस्तीफा बसवराज बोम्मई को कमान सौंप दी। गुजरात में पांच साल तक सरकार चलाने वाले विजय रूपाणी की धमक कहीं नजर नहीं आ रही थी तो केंद्रीय नेतृत्व ने भूपेन्द्र पटेल को गुजरात की कमान सौंप दी।
मजबूत केन्द्रीय नेतृत्व का असर –
असम, उत्तराखंड, कर्नाटक और गुजरात में हुए बदलाव पर गौर किया जाए तो एकाएक मुख्यमंत्री बदलने के बाद कहीं भी किसी तरह का असंतोष देखने को नहीं मिला। कर्नाटक जैसा राज्य हर बदलाव पर हो हल्ला होना जैसे आम बात हो लेकिन वहां इतनी शांति के साथ सत्ता हस्तांतरण हो गया कि विपक्ष भी सोच नहीं पाया कि ये कैसे संभव हुआ। कांग्रेस के साथ ही देश के प्रमुख विपक्षी दलों के नेताओं ने इस बदलाव को लेकर अपने बयान या फिर ट्विटर – फेसबुक पर बहुत कुछ लिखा और कहा लेकिन यह बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की मजबूती का ही असर है कि इतना बड़ा बदलाव होने के बाद भी कोई असंतोष कहीं नजर नहीं आ रहा है। गुजरात में तो अभी चुनाव होने में वक्त है लेकिन उत्तराखंड तो चुनाव के मुहाने पर ही खड़ा है ऐसे में पार्टियां बदलाव से बचती है लेकिन बीजेपी ने जो बदलाव किया है वो बताता है कि अब वक्त का फैसले लेकिन और कार्यकर्ताओं को हर समय चुनाव के लिए तैयार रखना ही बीजेपी की मजबूती है।
कब तक कांग्रेसी करेंगे इंतजार –
बीजेपी ने चार राज्यों में मुख्यमंत्रियों को बदलने को लेकर कांग्रेस के नेता तमाम तरह की बातें कर रहे हैं लेकिन क्या वे अपनी ही पार्टी के नेताओं से यह सवाल करने में सक्षम है कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में क्या हो रहा है। राजस्थान में कांग्रेस विधायकों और कार्यकर्ताओं की मांग है कि अब कमान अशोक गहलोत से लेकर सचिन पायलट को सौंप देनी चाहिए लेकिन सोनिया,राहुल और प्रियंका इस मामले पर चुप है ? छत्तीसगढ़ में सत्ता हस्तांतरण को लेकर टीएस सिंहदेव और भूपेश बघेल की जंग कहीं छिपी नहीं है, हाल में छत्तीसगढ़ के विधायकों की कांग्रेस आलाकमान के सामने परेड हो चुकी है जिसमें भूपेश बघेल भले ही विजयी रहे हो, लेकिन जिस तरह के तेवर टीएस सिंहदेव के नजर आ रहे हैं उसे देखकर लगता नहीं है कि यह शांति लंबे समय तक रहेगी। ऐसे में बदलती राजनीति के बीच अगर कांग्रेस को अपने अस्तित्व को बनाए रखना है तो उसे बीजेपी से सीखना ही होगा। क्योंकि भारतीय जनता पार्टी जहां मुख्यमंत्री बदलकर भविष्य में होने वाले चुनावों की रूपरेखा तैयार कर रही है तो देश कांग्रेस अभी भी कार्यकारी अध्यक्ष के भरोसे ही चल रही है।