इस टनल में 32 वर्कर्स के अभी भी फंसे होने की आशंका है।
उम्मीद इसलिए कायम: एसडीआरएफ के कमांडर पीके तिवारी के हवाले से कुछ रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि टनल के अंदर कुछ लोग अभी भी जीवित हैं। तिवारी ने कहा कि हम अपने अनुभव के आधार पर अभी भी निराश नहीं हुए हैं। हमें लगता है कि टनल में अभी भी आॅक्सीजन मौजूद है और ऐसे गैप भी जिनमें लोग जिंदा रह सकते हैं। हमारे 100 से ज्यादा साइंटिस्ट लगातार रास्ते तलाशने में लगे हुए हैं और इन पर तुरंत अमल किया जा रहा है। टीम टनल में 130 मीटर तक पहुंच चुकी है।
इस टनल से लगी एक सुरंग में शुक्रवार और शनिवार को होल किया गया है। इसका मुहाना 75 मिमी चौड़ा है। अब कोशिश इसे 300 मिमी चौड़ा करने की है ताकि कैमरा और पानी बाहर फेंकने वाला पाइप इन्स्टॉल किया जा सके।
सुबह मिले दोनों शवों की पहचान हुई: जिला प्रशासन के अनुसार, सुबह मिले दोनों शव उत्तराखंड के निवासी थे। शवों की शिनाख्त अनिल सिंह निवासी कालसी और आलम सिंह निवासी लोयर गांव, गुल्लर घाटी के रूप में हुई है। आलम सीनियर इलेक्ट्रॉशियन था, जबकि अनिल वेल्डर था। अन्य लोग सुरंग से कुछ दूर हो सकते हैं।
तलाशी अभियान जारी है।
ग्लेशियर टूटने से बनी झील खतरनाक नहीं: एक बड़ी राहत की बात है। ग्लेशियर टूटने से बनी झील से अभी कोई खतरा नहीं है। एसडीआरएफ के कमांडेंट नवनीत भुल्लर ने 14 हजार फीट की ऊंचाई पर ऋषिगंगा में बनी इस झील का जायजा लिया। ये झील आपदा के बाद ग्लेशियर के टूटने से बन गई है। एरियल व्यू और सैटेलाइट इमेज आने के बाद आशंका जताई जा रही थी कि झील से अचानक पानी का बहाव हो सकता है और फिर से बाढ़ जैसे हालात हो जाएंगे। नवनीत ने झील के पास से ही एक वीडियो बनाकर जारी किया है।
उन्होंने बताया कि झील से पर्याप्त मात्रा में पानी डिस्चार्ज हो रहा है, ऐसे में अब कोई खतरा नहीं है।
अभी 154 लोग लापता, सर्च आॅपरेशन तेज: उत्तराखंड पुलिस के मुताबिक, आपदा के बाद कुल 206 लोगों के लापता होने की शिकायत दर्ज कराई गई थी। इनमें अभी 154 लोगों की तलाश जारी है। ऋषिगंगा, धौलीगंगा और आस-पास की नदियों में लोगों को तलाशने का काम तेज कर दिया है।
ड्रोन और रिमोट सेंसर की मदद भी ली जा रही: रेस्क्यू टीम टनल में अंदर के हाल जानने के लिए ड्रोन और रिमोट सेंसिंग उपकरणों की मदद भी ले रही है। इस टनल की लंबाई करीब ढाई किलोमीटर है। इसका ज्यादातर हिस्सा आपदा में आए मलबे से भरा पड़ा है।