जब यह घटनाक्रम हुआ था, तब केन्द्र में कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार थी। उस सरकार का नरेन्द्र मोदी से छत्तीस का आंकड़ा था, यह कोई छिपी हुई बात तो है नहीं। लेकिन तबकी केन्द्र सरकार ना मोदी का कुछ बिगाड़ पाई और न नीरज वशिष्ठ का। तो इसमें दोष किसका है?
जैसे-जैसे दिग्विजय सिंह की उम्र बढ़ती जा रही है, उनकी मासूमियत भी। दिग्विजय सिंह जैसा सीनियर राजनेता धन के इस अवैध लेनदेन पर कोई सवाल नहीं खड़े कर रहा है। इस मामले में सामने आई सच्चाई पर भी कुछ नहीं कह रहा है। इस मामले को नकारने का साहस भी नहीं दिखा रहा है। बल्कि सीना ठोक कर कह रहे हैं कि जो जांच करानी है, करा लें, कांग्रेस का कार्यकर्ता डरता नहीं है। जमीन से अदालत तक लड़ाई लड़ने को तैयार हैं।
फिर यह बौखलाहट कैसी? सभी जानते हैं कि कांग्रेस हो या फिर भाजपा, राजनीति के हमाम में बराबर के खिलाड़ी हैं। चुनावी राजनीति के तमाम सिस्टम खड़े करने का काम किया तो इस देश में आखिर कांग्रेस ने ही है। बाकी तो बस उसीके दिखाए रास्ते पर चल रहे हैं। कभी चुनाव सुधार से लेकर शुचिता की राजनीति और पार्टी विद डिफरेंस का दम भरने वाली भाजपा आज अगर कई मामलों में कांग्रेस की भी बाप साबित हो रही है तो यह उसकी अपनी क्षमता है। दिखाए हुए रास्ते तो कांग्रेस के ही हैं।
कांग्रेस और दिग्विजय सिंह पिछले कुछ सालों से सांप निकलने के बाद लकीर पीटने के आदी हो गए हैं।
अब दिग्विजय सिंह अगर शिवराज के सत्ता से हटने के बाद उनके ओएसडी के तौर पर क्लास वन अधिकारी नीरज वशिष्ठ को नियम विरूद्ध उनका ओएसडी नियुक्त करने पर स्यापा कर रहे हैं तो यह रोना तो उसी समय तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ के सामने हो जाना था। अब अगर कमलनाथ पूर्व मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज को क्लास वन अधिकारी दे रहे हैं और दिग्विजय सिंह को मना कर रहे हैं तो दां त काटे की दोस्ती तो कमलनाथ और दिग्विजय सिंह में है। आखिर कांग्रेसी ही यह आरोप लगाते हैं कि कमलनाथ की सरकार को तो दिग्विजय सिंह ही चला रहे थे। दिग्विजय सिंह अगर यह कह रहे हैं कि सीबीडीटी रिपोर्ट में उन्हीं अफसरों के नाम सामने आएं हैं जो ई टेंडरिंग घोटाले की जांच कर रहे हैं। तो अब इसमें क्या किया जा सकता है।
मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव के तौर पर मनीष रस्तोगी की पोस्टिंग है और रस्तोगी ही वो अफसर हैं जिन्होंने इस घोटाले को पकड़ा था। अब शिवराज सिंह चौहान राजनीति कर रहे हैं और राजनीति का तो तरीका ही साम, दाम, दंड और भेद का है।
पन्द्रह महीने कमलनाथ और कांग्रेस को भी सरकार चलाने का मौका मिला था। अब अगर पन्द्रह साल सत्ता से बाहर रहने के दौरान वो सरकार चलाने के मूल सिद्धांतो को भूला बैठे तो कोई क्या करें? अगर कांग्रेसियों ने पन्द्रह सालों से खाली तिजोरी भरने की जल्दबाजी न करके अपनी सरकार को मजबूत करने पर ध्यान दिया होता तो इनकी बेखुदी में सिंधिया के कदम बीजेपी की तरफ उठते ही क्यों? दिग्विजय सिंह कह रहे हैं कि यदि पांच साल मौका मिला होता तो शिवराज सरकार के कई मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई होती। अब दिग्विजय सिंह के इस विलाप पर कमलनाथ पता नहीं कैसा महसूस कर रहे होंगे? बीजेपी साढ़े तीन साल के लिए सत्ता छिन ले गई तो अंतर्कलह तो कांग्रेसियों का ही था। पन्द्रह महीने में आपकी लूटमार से त्रस्त जनता ने शिवराज को ही स्थाई और मजबूत सरकार के लिए जनादेश दे दिया तो, बस विलाप ही आपके भाग्य में है। कांग्रेस की वर्तमान हालत देखते हुए इतना तो मैं अभी कह सकता हूं कि अब 2028 तक तो कांग्र्रेस को सत्ता के सपने देखना ही नहीं चाहिए।