यह राज्य आबकारी विभाग के नियमों का सीधा उल्लंघन था, जिसका जिक्र विभाग की जांच रिपोर्ट में भी साफ किया गया है।
यहां से ही मनमानी और उसके संरक्षण की नयी श्रंखला शुरू होती है। निरीक्षण बीते साल यानी 20 नवंबर, 2020 को किया गया था। गड़बड़ियां मिलीं तो विभाग ने सोम प्रबंधन से कहा कि वह एक महीने में इनमें सुधार कर इसकी सूचना दे। सोम समूह ने इस निर्देश को ताक पर रख दिया। सुधार करने की बजाय उसने आबकारी विभाग को एक खत लिखकर संबंधित नियमों में ही बदलाव का सुझाव दे डाला। विभाग ने इस पर सख्ती दिखाने के नाम पर भी रोचक कदम उठाया। उसने सोम के मालिकान को सात दिन में यह जवाब देने का निर्देश दिया कि स्प्रिट टैंक के मामले में क्यों न उसका लायसेंस निरस्त कर दिया जाए।
मोहलत के बाद मोहलत और खतो-किताबत के इस दौर के बीच सोम समूह को कानूनी कार्यवाहियों के लिए मौका मिल चुका था। एक सप्ताह के नोटिस के खिलाफ सोम समूह जबलपुर हाई कोर्ट पहुंच गया। कोर्ट ने राज्य में वाणिज्यिक कर विभाग की प्रमुख सचिव को आदेश दिया कि वह इस मामले में हस्तक्षेप कर सुनवाई करें। अब आगे मामला और रोचक हो जाता है। सोम के प्रतिनिधि ने चालू साल की 28 जनवरी को प्रमुख सचिव दीपाली रस्तोगी से आधिकारिक रूप से मुलाकात की। इस से संबंधित सरकारी प्रोसीडिंग की एक लाइन गौरतलब है। प्रमुख सचिव के हवाले से लिखा गया है, इकाई (सोम की फैक्ट्री) के प्रतिनिधि द्वारा बताया गया कि एक्स्ट्रा न्यूट्रल अल्कोहल और रेक्टिफायड स्प्रिट उसी श्रेणी के हैजर्डस मटेरियल (घातक पदार्थ) की श्रेणी में आते हैं, जिस श्रेणी में पेट्रोल को रखा गया है।
' यानी यूनिट ने भी प्रमुख सचिव के सामने यह माना कि उसके यहां जिस स्प्रिट को असुरक्षित तरीके से रखना पाया गया था, वह पेट्रोल की तरह भयानक ज्वलनशील और विस्फोटक फितरत वाली होती है। लेकिन प्रतिनिधि ने यह दलील भी दे दी कि ऐसे पदार्थ को पूरी तरह कवर करके रखना भी खतरनाक हो सकता है।
इस बीच आल इंडिया डिस्टलरीज एसोसिएशन भी मामले में सक्रिय हो गई। उसके डीजी वीएन रैना ने एक पत्र जारी किया। इसमें दावा किया गया कि मध्यप्रदेश के उद्योगों पर रेक्टिफायड स्प्रिट और एक्स्ट्रा न्यूट्रल अल्कोहल के रखरखाव के संबंध में केंद्र सरकार का एमएसआईएचसी नियम लागू नहीं होता है। सोम ने इसके विपरीत दलील दी कि यह एमएसआईएचसी नियम डिस्टलरियों पर लागू होता है। जब खुद डिस्टलरी का प्रबंधन ही यह दलील दे रहा है कि टैंकों में संग्रहित स्प्रिट पेट्रोलियम पदार्थ की तरह ही ज्वलनशील है तो फिर उससे पेट्रोलियम पदार्थों के संग्रहण के लिए लगने वाला लायसेंस भी तो मांगा जाना चाहिए। मध्यप्रदेश सहित देश की किसी भी अन्य डिस्टलरी में स्प्रिट को खुले टैंकों में संग्रहित नहीं किया जाता है। सभी जगह कवर्ड स्टोरेज हैं और हर जगह यह आबकारी विभाग के अधीन होते हैं। इस मामले में यह भी गौर किया जाना चाहिए कि मुरैना में जहरीली शराब कांड में स्प्रिट की तस्करी ही एक खास वजह थी। उसी से शराब का निर्माण कर सस्ते में बेचा जा रहा था।
दीपाली रस्तोगी की छवि बेहद सख्त और ईमानदार अफसर की है। ऐसे में यह उम्मीद की जा रही थी कि घोषित रूप से ज्वलनशील और विस्फोटक स्प्रिट के रखरखाव को लेकर वे सख्त कार्यवाही करेंगी। लेकिन हैरतअंगेज रूप से ऐसा नहीं हुआ।
प्रमुख सचिव ने मामले के निपटारे के लिए केंद्र सरकार को पत्र भेजने का सुझाव दिया है, जिसमें कहा जाएगा कि केंद्र मध्यप्रदेश की आसवनियों पर भी एमएसआईएचसी नियम लागू करे। जहां तक सोम का सवाल है तो प्रमुख सचिव ने उसे केवल यह निर्देश देकर बक्श दिया कि वहअपनी आसवानी में स्प्रिट प्लांट के आसपास कम से कम तीस फीट की दीवार बनाए। कुल जमा मामला यह कि लोगों की जान माल से खिलवाड़ का जो खुला खेल मध्यप्रदेश में पकड़ा गया था, उसके आरोपियों को लचर सिस्टम की आड़ में बचाने का प्रबंध कर दिया गया है।
सोम पर सरकार की मेहरबानी का यह अकेला किस्सा तो है नहीं। ज्यादा समय नहीं हुआ जब डायरेक्टर जनरल आफ जीएसटी इंटेलिजेंस ने करोड़ों की टैक्स चोरी के मामले में सोम के मालिकों को गिरफ्तार किया था। उन्हें जेल में होना चाहिए था लेकिन दोनों ने भोपाल के हमीदिया अस्पताल में समय काट लिया। जाहिर है टैक्स चोरी के मामले में इन आर्थिक अपराधियों पर केन्द्र सरकार की एजेंसी सख्त थी। लेकिन बीजेपी सरकार में सोम के इन मालिकों पर कोई तो मेहरबान हो ही गया था। हालांकि मध्यप्रदेश सरकार को उनसे टैक्स ही नहीं, कई पुरानी उधारियां वसूलनी हैं। लेकिन न जाने क्या वजह है कि गलत के लिए कठोर कदम उठाने का दावा करने वाले शिवराज सरकार भी अरोड़ा बंधुओं के आगे बरसों से कमजोर दिख रही है। सोम के प्रकरणों में 'अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान' कैसे होता है, इसकी एक मिसाल देखिए। 1996 में मुरैना सेल्स टैक्स बेरियर पर आबकारी विभाग के अफसरों ने तीन ट्रकों में भरी सोम डिस्टलरी की सन्नी माल्ट व्हिस्की की 616 पेटियां बरामद की। यह शराब जारी परमिट की समयसीमा खत्म होने के बाद भी रायसेन से दिल्ली परिवहन की जा रही थी।
शराब के परिवहन के लिए जारी परमिट सिर्फ एक साल के लिए ही जारी हुआ था। 23 साल पुराने इस मामले के तीन आरोपी तो फरार हैं लेकिन डिस्टलरी के मालिक जगदीश अरोड़ा को कोर्ट ने दिन भर की कार्यवाही तक के कारावास की सजा सुनायी। जाहिर है कि जब अभियोजन पक्ष यानी सरकार ने ही कड़ी सजा की मांग नहीं की तो दंड के नाम पर ऐसा मजाक तो होना ही था। जबकि यह वह अपराध है, जिसमें अभियोजन पक्ष ताकत लगाता तो अरोड़ा सहित अन्य आरोपियों को कम से कम तीन महीने की सजा होना तय था।
जब जगदीश अरोड़ा सजायाफ्ता हो ही गए तो उनकी डिस्टलरी का लाइसेंस कायदे से निरस्त किया जाना चाहिए था। लेकिन तब भी ऐसा नहीं हुआ। ये कहानी कमलनाथ सरकार के दौर की है। हां, खानापूर्ति के तौर पर आबकारी आयुक्त ने सोम डिस्टलरी को नोटिस देकर एक सप्ताह में यह जवाब मांगा था कि क्यों न उनकी डिस्टलरी का लाइसेंस निरस्त कर दिया जाए। लेकिन आज तक सोम का लायसेंस सरकार ने निरस्त करने का कोई कदम नहीं उठाया। बल्कि आपदा काल में उसे जीएसटी चौरी का मौका और दे दिया। सोम समूह कई मामलों में विवादास्पद है और आबकारी विभाग की 2007 से लेकर 2019-20 तक की काली सूची में दर्ज है। यह भाजपा सरकार के दौरान का ही किस्सा है। सोम समूह शराब उत्पादन के अलावा शराब के विक्रय के लिए भी प्रदेश के अधिकांश जिलों में ठेके लेता रहा है। इस दौरान बनी आबकारी नीति के उल्लंघन के कारण काली सूची में दर्ज होने के बाद भी कभी उसे आबकारी विभाग शराब बैचने के धंधे से बाहर नहीं कर सका। मजेदार तथ्य यह भी है कि राज्य के औद्योगिक विकास निगम को सोम डिस्टलरी से पौने तीन सौ करोड़ रूपए की वसूली करना है। यह दिग्विजय सिंह सरकार के दौरान का किस्सा है। यह प्रकरण दिल्ली की अदालत में बरसों से चल रहा है। सरकार के हक में कोर्ट के फैसले के बाद भी निगम के अफसर सोम से वसूली नहीं कर पाए और ना ही उसकी संपत्ति कुर्क करने का साहस दिखा सके हैं। तो ऐसे असरदार शराब कारोबारी का सरकार पर भारी पड़ना क्या बड़ी बात है। पहले कमलनाथ और अब शिवराज भी राज्य से माफिया को खत्म करने की हांक मार रहे हैं। हो क्या रहा है, यह सिर्फ एक इस उदाहरण से ही साफ दिख रहा है।